संपादकीय

Editorial: बाजार में एसएमई आईपीओ की लहर

बीएसई और एनएसई के प्लेटफार्मों पर एसएमई आईपीओ की लिस्टिंग वित्त वर्ष 23 और वित्त वर्ष 25 के बीच 87% से अधिक बढ़ी, जबकि इश्यू का आकार 52.7% बढ़ा।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- October 26, 2025 | 10:28 PM IST

औपचारिक ऋण तक सीमित पहुंच और उच्च निगरानी लागत से लंबे समय से परेशान भारत के लघु एवं मझोले उद्यम (एसएमई) पारंपरिक रूप से वित्त के अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर रहे हैं। बैंक अक्सर सूचना की खामियों और गिरवी के अभाव के कारण उन्हें जोखिम भरा मानते हैं। इस पृष्ठभूमि में, प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश या आईपीओ के माध्यम से इक्विटी बाजार के माध्यम से धन जुटाना एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में उभरा है, जो फर्मों को विस्तार, नवाचार और पेशेवर बनने का अवसर प्रदान करता है।

जैसा कि भारतीय रिजर्व बैंक के अक्टूबर 2025 के बुलेटिन में कहा गया है, बीएसई और नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के प्लेटफार्मों पर एसएमई आईपीओ की लिस्टिंग वित्त वर्ष 23 और वित्त वर्ष 25 के बीच 87 फीसदी से अधिक बढ़ी, जबकि इश्यू का आकार 52.7 फीसदी बढ़ा। भारत में पिछले साल एशिया में सबसे अधिक आईपीओ जारी हुए।

आईपीओ सूचीबद्धता या लिस्टिंग में तेजी देश की मजबूत अर्थव्यवस्था के कारण आई है। सरलीकृत लिस्टिंग मानदंडों जैसी सरकारी नीतियों और ऐप्लिकेशन सपोर्टेड बाय ब्लॉक्ड अमाउंट (अस्बा) तथा यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) जैसी डिजिटल भुगतान प्रणालियों के एकीकरण ने छोटे जारीकर्ताओं और निवेशकों, दोनों के लिए भागीदारी को आसान बना दिया है। राज्य सरकारों, विशेष रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु और राजस्थान ने औद्योगिक विविधता, औपचारिकता और व्यापार में आसानी को बढ़ावा देकर एसएमई लिस्टिंग को प्रोत्साहित करने में सक्रिय भूमिका निभाई है। इनमें विनिर्माण का दबदबा बना हुआ है, लेकिन स्वच्छ ऊर्जा, सूचना-प्रौद्योगिकी सेवाएं, लॉजिस्टिक्स और शिक्षा जैसे नए क्षेत्र तेजी से अपनी जगह बना रहे हैं।

भारत में खुदरा निवेशकों का तेजी से बढ़ना भी एक महत्त्वपूर्ण कारक बना हुआ है। निवेशक आधार युवा हुआ है और डिजिटल रूप से अधिक जुड़ गया है। अब 30 वर्ष से कम आयु के लोग शेयर बाजार प्रतिभागियों का लगभग 40 फीसदी हिस्सा हैं। शेयर बाजार में निवेशकों की औसत आयु मार्च 2019 में 38 से घटकर इस साल जुलाई में 33 रह गई। इसका परिणाम यह हुआ है कि एसएमई आईपीओ में सबस्क्रिप्शन का स्तर अक्सर इश्यू के आकार के 100 गुना से अधिक हो जाता है। शीघ्र सूचीबद्धता से लाभ की संभावना ने इस उन्माद को और बढ़ा दिया है।

दूसरी ओर आरबीआई के अध्ययन में कई एसएमई इश्यू में भारी अधिमूल्यन की ओर इशारा किया गया है, जिनका कीमत-आय अनुपात अक्सर इस उद्योग के समकक्षों से कहीं अधिक होता है। लगभग 90 फीसदी एसएमई आईपीओ प्रीमियम पर सूचीबद्ध होते हैं, लेकिन कई सूचीबद्धता के बाद अपने प्रदर्शन को बनाए रखने में विफल रहते हैं। तीव्र शुरुआत के बाद तीव्र गिरावट का पैटर्न बताता है कि बाजार बुनियादी बातों से ज्यादा भावनाओं से संचालित होता है। संस्थागत निवेशकों की भागीदारी अभी भी सीमित होने के कारण खुदरा उत्साह मुख्य इंजन और मुख्य जोखिम बन गया है।

इसे समझते हुए, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने पिछले साल सुधारों की शुरुआत करके अच्छा किया। इसके तहत ड्राफ्ट प्रॉस्पेक्टस का सार्वजनिक खुलासा अनिवार्य किया गया, एसएमई आईपीओ में न्यूनतम प्रमोटर अंशदान की लॉक-इन अवधि बढ़ाकर पांच साल कर दी गई, ‘ऑफर फॉर सेल’ वाले हिस्से पर 20 फीसदी की सीमा तय की गई और सामान्य कॉरपोरेट खर्च पर कड़ी सीमा तय की गई। संतुलन बहाल करने के लिए ये कदम अब भी महत्त्वपूर्ण हैं। लाभप्रदता की सीमा और तिमाही खुलासे के नियमों से पारदर्शिता में और वृद्धि होने की उम्मीद है। एसएमई आईपीओ में उछाल वित्तीय लोकतंत्रीकरण का संकेत तो है ही, साथ ही उन फर्मों के लिए एक महत्त्वपूर्ण वित्तीय जीवनरेखा भी है जिन्हें लंबे समय से ऋण प्राप्त करने में कठिनाई होती रही है। लेकिन अनियंत्रित उत्साह लंबी अवधि में विश्वसनीयता को कम कर सकता है। बाजार को टिकाए रखने के लिए मौजूदा उत्साह के साथ ही मूल्यांकन अनुशासन, निवेशक शिक्षा और गहन पड़ताल भी जरूरी है।

First Published : October 26, 2025 | 10:28 PM IST