विगत दो महीनों में शेयर बाजार में आई गिरावट के कुछ अस्वाभाविक पहलू भी हैं। यह गिरावट विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) द्वारा लगातार की गई बिकवाली के कारण आई है जबकि इस अवधि में घरेलू संस्थान और खुदरा निवेशक लगातार तेजी के रुख पर रहे हैं। एक अन्य अस्वाभाविक बात यह है कि स्मॉलकैप और मिडकैप शेयरों ने लार्जकैप की तुलना में अधिक रक्षात्मक मजबूती दिखाई है।
निफ्टी जहां सितंबर के उच्च स्तर से छह फीसदी नीचे है वहीं स्मॉलकैप सूचकांक 2.5 फीसदी ही लुढ़का है। स्मॉलकैप ने सितंबर तक तेजी में भी निफ्टी को आसानी से पीछे छोड़ दिया था। जनवरी से सितंबर के बीच निफ्टी ने जहां 26 फीसदी तेजी हासिल की वहीं स्मॉलकैप ने 38 फीसदी मजबूती पाई। तेजी के दौर में छोटी कंपनियों का आगे निकल जाना आम है। परंतु मंदी के दौर में रक्षात्मक मजबूती आसान नहीं है। यह कहा जा सकता है कि देश की अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन के तरीके बदल रहे हैं।
एफपीआई की बिकवाली के कारण हो रही गिरावट भी एक वजह है जिसके चलते स्मॉलकैप का प्रदर्शन अपेक्षाकृत बेहतर रहा। एफपीआई की छोटे शेयरों में हिस्सेदारी नहीं है। उनका रुख देश की अर्थव्यवस्था की बुनियादी बातों से प्रभावित होता है और वे दूसरी तिमाही के कमजोर नतीजों से प्रभावित हुए होंगे। एफपीआई को अपने उभरते बाजार पोर्टफोलियो में चीन को भी नए सिरे से संतुलित करना होगा और वे अमेरिका में ट्रंप के आगामी प्रशासन के नीतिगत निर्णयों के बारे में भी कयास लगा रहे होंगे।
बहरहाल, जहां लार्जकैप का प्रदर्शन दूसरी तिमाही में कमजोर रहा है वहीं स्मॉलकैप के शेयरों ने वृद्धि हासिल की है। इसके पीछे यह सिद्धांत भी है कि छोटी कंपनियों के लिए जल्दी वृद्धि हासिल करना आसान होता है। बहरहाल यह भी सही है कि देश के जिन क्षेत्रों ने बीते कुछ वर्षों में तेज वृद्धि हासिल की है उनका निफ्टी में समुचित प्रतिनिधित्व नहीं है या फिर कई मामलों में तो उनका जरा भी प्रतिनिधित्व नहीं है।
वृद्धि हासिल करने वाले बड़े क्षेत्रों में हरित ऊर्जा, रक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, कई प्रकार के विनिर्माण, अधोसंरचना क्षेत्र, उपभोक्ता तकनीक और खुदरा वित्तीय क्षेत्र एवं संपत्ति प्रबंधन जैसे नए सूचीबद्ध क्षेत्र शामिल हैं। तेज विकास की संभावना वाले अन्य क्षेत्रों में शामिल हैं- इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण सेवाएं, ठेके पर औषधि निर्माण, इलेक्ट्रॉनिक कचरे को फिर इस्तेमाल करने लायक बनाना, स्मार्ट मीटर और डेटा सेंटर निर्माण। इन सभी क्षेत्रों में छोटी कंपनियों का दबदबा है। ये ऐसी कंपनियां हैं जो इतने लंबे समय से कारोबार में हैं कि वे अच्छा खासा मुनाफा और राजस्व कमा सकें। एक बार फिर परिभाषा के स्तर पर देखें तो इन क्षेत्रों में कम आधार से तेज वृद्धि संभव है।
चूंकि यह वृद्धि निफ्टी में नजर नहीं आ रही इसलिए बड़े संस्थागत कारोबारियों मसलन एफपीआई आदि के लिए उचित यही है कि वे इसके प्रति रूढ़िवादी या मंदी का रुख रखें। यकीनन चुनिंदा म्युचुअल फंड को छोड़ दें तो स्मॉलकैप में घरेलू संस्थागत निवेश भी काफी कम है। यह संभव है कि कुछ चतुर खुदरा निवेशक जिन्होंने पूरी जांच परख कर ली हो उन्होंने बड़े कारोबारियों की तुलना में अधिक पूंजीगत लाभ कमाया हो क्योंकि उन्होंने छोटे किंतु उच्च वृद्धि वाले कारोबारों में निवेश किया। कम आधार के कारण उच्च वृद्धि के पीछे जहां एक गणित है वहीं यह भी सही है कि मिडकैप और स्मॉलकैप क्षेत्र का मूल्यांकन हमेशा से बढ़ा है।
निफ्टी मिडकैप 100 वित्त वर्ष 25 की अग्रिम आय के 32 गुना पर कारोबार कर रहा है जबकि 10 सालों का औसत मूल्य आय (पीई) अनुपात 17 है। निफ्टी स्मॉलकैप 100 का मूल्य आय अनुपात 24 जबकि उसका 10 साल का अग्रिम औसत 16-17 है। छोटी कंपनियां जहां तेजी से बढ़ सकती हैं वहीं अगर समग्र वृद्धि की बात करें तो उनके पास मंदी के दौर से निपटने के लिए संसाधन भी कम होते हैं। सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़े और दूसरी तिमाही के कारोबारी नतीजे धीमेपन का संकेत दे रहे हैं। यकीनन स्मॉलकैप क्षेत्र में मूल्य और संभावित कई गुना मुनाफा देने वाले क्षेत्र भी हैं लेकिन निवेशकों को ऊंचे मूल्यांकन के कारण सतर्क रहने की भी जरूरत है।