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Editorial: रक्षा खरीद में सुधार, प्राइवेट सेक्टर और इनोवेशन को मिलेगा बढ़ावा

नया मैनुअल सशस्त्र बलों के सही ढंग से काम करने के लिए जरूरी वस्तुएं एवं सेवाएं प्रदान करने के लिए एक व्यावहारिक और सक्षम प्रणाली प्रस्तुत करता है।

Last Updated- September 15, 2025 | 11:24 PM IST
defence procurement

पिछले रक्षा खरीद मैनुअल (डीपीएम) के 16 साल बाद आ रहे नए डीपीएम 2025 में उल्लेखनीय प्रगति नजर आ रही है। यह रक्षा मंत्रालय की खरीद प्रक्रिया को व्यवस्थित और तर्कसंगत बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है, जिसकी अनुमानित लागत वर्तमान वित्त वर्ष में करीब एक लाख करोड़ रुपये है। नया मैनुअल सशस्त्र बलों के सही ढंग से काम करने के लिए जरूरी वस्तुएं एवं सेवाएं प्रदान करने के लिए एक व्यावहारिक और सक्षम प्रणाली प्रस्तुत करता है। ऐसा करके उन बार-बार सामने आने वाली चिंताओं को हल करने की कोशिश की गई है जो रक्षा क्षेत्र की कंपनियों द्वारा जताई गई थीं। उदाहरण के लिए जुर्माना, देरी और आदेशों में स्थिरता का अभाव।

मैनुअल के 2025 के संस्करण में इन मुद्दों को संबोधित किया गया है और साथ ही प्रतिस्पर्धी आत्मनिर्भरता के अहम लक्ष्य को भी बढ़ावा देने का प्रयास किया गया है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए डीपीएम 2025 में पूर्व निर्धारित क्षतिपूर्ति को काफी हद तक कम कर दिया गया है। यह वह राशि है जो किसी अनुबंधकर्ता को रक्षा मंत्रालय को उस समय चुकानी पड़ती है जब वह अनुबंध को भंग करता है। उदाहरण के लिए आपूर्ति में देरी होने पर। इसमें विकास चरण के दौरान पूर्व निर्धारित क्षतिपूर्ति को समाप्त कर दिया गया है और प्रोटोटाइप यानी नमूना विकास के चरण के बाद के लिए न्यूनतम 0.1 फीसदी की दर निर्धारित की गई है। इतना ही नहीं इसे अधिकतम 5 फीसदी पर सीमित कर दिया गया है।

अत्यधिक देरी होने पर इसे 10 फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है। मैनुअल में डेवलपर्स के लिए हालात को स्थिर बनाने का प्रयास भी किया गया है। इसके तहत पांच वर्ष तक ऑर्डर की गारंटी देना शामिल है जिसे कुछ मामलों में बढ़ाकर 10 वर्ष तक किया जा सकता है। डीपीएम 2025 में मरम्मत, दोबारा फिटिंग और रखरखाव के लिए 15 फीसदी के अग्रिम प्रावधान के अलावा सीमित निविदा की राशि को डीपीएम 2009 के 25 लाख रुपये से बढ़ाकर 50 लाख रुपये कर दिया गया है।

असाधारण हालात में यह राशि इससे भी अधिक हो सकती है। एक अन्य अहम बात यह है कि डीपीएम 2025 में बोली खोलने के पहले रक्षा क्षेत्र के सरकारी उपक्रम से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने की आवश्यकता को भी समाप्त कर दिया गया है। अब जबकि सभी निविदाएं प्रतिस्पर्धी आधार पर प्रदान की जाएंगी तो रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में एक जीवंत निजी क्षेत्र के सामने आने की संभावनाएं भी काफी बढ़ गई हैं।

इस एजेंडे के तहत ही डीपीएम 2025 में एक अध्याय और जोड़ा गया है जो नवाचार और स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने के साथ-साथ आईआईटी जैसे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों, भारतीय विज्ञान संस्थानों और विश्वविद्यालयों आदि के साथ तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देगा। यह अत्यंत आवश्यक, लचीला और ऊपर से नीचे का खरीद ढांचा प्रणाली पर जवाबदेही और उत्तरदायित्व के कठिन मानकों को भी लागू करता है। उदाहरण के लिए, खरीद प्रक्रिया को तेज़ करने और अनावश्यक प्रशासनिक बाधाओं से मुक्त करने के उद्देश्य से, फील्ड और निचले स्तर की इकाइयों में सक्षम वित्तीय प्राधिकरणों को स्वतंत्र निर्णय लेने की व्यापक शक्ति प्रदान की गई है।

नए दिशानिर्देशों के तहत ये प्राधिकार अपने वित्तीय सलाहकारों से बात करके आपूर्ति अवधि को बढ़ा सकते हैं वह भी उच्चाधिकारियों से बात किए बिना। डीपीएम 2025 उन्हें यह अधिकार भी देता है कि अगर भागीदारी कम हो तो वे बोली को खोलने की तारीख आगे बढ़ा सकें। इसके लिए उन्हें वित्तीय सलाहकारों की मदद की जरूरत नहीं होगी। यकीनन एक व्यापक सामूहिक निर्णय प्रक्रिया स्वचालित रूप से जांच और संतुलन का कार्य करती है, लेकिन यह भी सच है कि दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं में से एक की व्यापक राजस्व खरीद आवश्यकताओं और पूर्व में हुए भ्रष्टाचार व घोटालों को देखते हुए, यह विषय सतर्क निगरानी की मांग करता है।

राजस्व खरीद प्रणाली को आधुनिक बनाने और पुनर्गठित करने के प्रयासों के साथ-साथ, पूंजीगत अधिग्रहण प्रणाली में भी इसी प्रकार का सुधार आवश्यक है, जो अब भी व्यापक योजना की कमी और जटिल व अपारदर्शी खरीद प्रक्रियाओं से ग्रस्त है। यही वजह है कि खरीद निर्णय अक्सर सेवा की तत्काल मांगों के जवाब में तात्कालिक रूप से लिए जाते हैं, जिससे भारत की युद्ध तैयारी पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

उदाहरण के लिए, भारतीय वायुसेना रूसी, फ्रांसीसी, एंग्लो-फ्रेंच और स्वदेशी सहित सात प्रकार के लड़ाकू विमान संचालित करती है जिससे प्लेटफ़ॉर्म की विविधता इतनी अधिक हो जाती है कि आपसी समन्वय बाधित होता है। डीपीएम 2025 एक अच्छी शुरुआत है लेकिन पड़ोस में जिस तरह से तेजी से शत्रुता का माहौल बन रहा है उसे देखते हुए रक्षा तैयारी को एक किफायती समग्र खरीद तंत्र की आवश्यकता है।

First Published - September 15, 2025 | 11:12 PM IST

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