लाल सागर में स्वेज नहर के जरिये वाणिज्यिक पोतों के आवागमन पर मंडरा रहे संकट समाप्त होने का कोई संकेत फिलहाल नजर नहीं आ रहा है। यह भूमध्यसागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र को जोड़ने वाला एक अहम मार्ग है और गाजा पट्टी तथा उसके आसपास के इलाके में इजरायल-हमास जंग के कारण इसे लेकर अनिश्चितता बढ़ गई है।
युद्ध के परिणामस्वरूप यमन में ईरान समर्थित हूती विद्रोही गठजोड़ ने यमन और जिबूती के बीच बाब-अल-मांदेब खाड़ी में नौवहन पर हमले शुरू कर दिए। विद्रोही गठबंधन आश्चर्यजनक रूप से हथियारों से अच्छी तरह लैस है। उसने पोतरोधी बैलिस्टिक मिसाइलों का इस्तेमाल किया है। इससे पहले किसी लड़ाई में इतनी बड़ी तादाद में इनका इस्तेमाल नहीं किया गया था। इनके साथ ही विद्रोहियों ने क्रूज मिसाइलों, ड्रोन और छोटी नौकाओं का उपयोग करके भी जहाजों पर हमला किया और उन्हें धमकाया।
हूती विद्रोहियों का दावा है कि उन्होंने इजरायल की ओर जा रहे पोतों पर हमले किए लेकिन वास्तव में यह सच नहीं है। यह संभव ही नहीं है कि वे जान सकें कि कौन सा जहाज किस दिशा में जा रहा है। इन हमलों के परिणामस्वरूप कई प्रमुख पोत संचालकों ने स्वेज नहर और लाल सागर का मार्ग छोड़ देने का निर्णय लिया। इन पोत संचालक कंपनियों में मेर्स्क, हपाग-लॉयड और मेडिटेरेनियन शिपिंग कंपनी तथा कुछ प्रमुख तेल कंपनियां शामिल हैं।
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कुछ दिन पहले मेर्स्क ने इस बात की पुष्टि की थी कि उसके टैंकर निकट भविष्य में इस क्षेत्र से नहीं गुजरेंगे। ऐसी अपेक्षाएं थीं कि मेर्स्क तथा अन्य कंपनियां सामान्य सेवाएं बहाल कर देंगी क्योंकि अमेरिका ने घोषणा की थी कि एक नौसैनिक कार्य बल इस इलाके में जलपोतों की सुरक्षा करेगा। परंतु यह कार्य बल जमीन पर प्रभावी असर छोड़ने में नाकाम रहा और इसके चलते पोत संचालकों ने किफायत के बजाय सावधानी बरतने को अधिक तरजीह दी।
ऐसे निर्णयों के परिणामस्वरूप भूमध्यसागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के बीच नौवहन में लगने वाला समय और व्यय बहुत अधिक बढ़ गया है। तमाम पोत अपनी यात्राओं को स्थगित कर रहे हैं और अगर उन्हें यात्रा करनी ही पड़ रही है तो वे दक्षिण अफ्रीका में आशा अंतरीप (केप ऑफ गुड होप) के रास्ते से आवागमन कर रहे हैं। भारत के औद्योगिक संगठनों के हालिया अनुमानों के मुताबिक यूरोप तक पोत भेजने की लागत 70 फीसदी से 200 फीसदी तक बढ़ गई है।
विभिन्न प्रमुख क्षेत्रों में भारत के निर्यात की बात करें तो इसका असर उनके मार्जिन और उनकी प्रतिस्पर्धी क्षमता पर पड़ सकता है। भारत के पूर्वी तटों में से एक से निकला डीजल और जेट फ्यूल कार्गो पोत पहले ही विलंब से चल रहा है और उसकी दिशा बदल दी गई है। अन्य वैश्विक एकीकरण वाले क्षेत्रों पर भी असर पड़ सकता है।
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वैश्विक अर्थव्यवस्था और साथ ही 2023-24 में भारत की अप्रत्याशित रूप से मजबूत वृद्धि के लिए भी लाल सागर के हालात निकट भविष्य में सर्वाधिक अनिश्चितता वाले हालात बने रहने वाले हैं। पोतों के आवागमन का इस तरह बाधित होना आर्थिक सुधार की प्रक्रिया को गहरी क्षति पहुंचाने वाला साबित होगा। यह मुद्रास्फीति के लिए भी बड़ा जोखिम साबित हो सकता है।
इस संदर्भ में यह बात ध्यान देने लायक है कि अब जबकि स्वेज नहर के रास्ते का इस्तेमाल मुश्किल हो रहा है तो इसी बीच अमेरिका में इसकी जुड़वां नहर को भी वर्षों या दशकों में सबसे कम नौवहन के लिए विवश किया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण सूखे की स्थिति बढ़ी है जिसके चलते वहां से गुजरना मुश्किल हुआ है। पिछला वर्ष मध्य अमेरिका के दर्ज इतिहास का सबसे सूखा वर्ष था। विश्व व्यापार के इन दो प्रमुख मार्गों के पूरी क्षमता से काम नहीं करने की स्थिति में भविष्य के व्यापार और वृद्धि के लिए कई अहम जोखिम उत्पन्न हुए हैं।