सरकार ने लैपटॉप तथा सूचना प्रौद्योगिकी हार्डवेयर से जुड़ी अन्य सामग्री पर प्रतिबंध लगाने का जो निर्णय लिया था उससे वह पूरी तरह तो नहीं लेकिन आंशिक रूप से पीछे हटी है। प्रभारी केंद्रीय मंत्री के मुताबिक अब एक ‘आयात प्रबंधन प्रणाली’ लागू की जाएगी।
अधिकारियों का कहना है कि इसका उद्देश्य है लैपटॉप आपूर्ति श्रृंखला में आयात पर निर्भरता कम करना और चूंकि कुछ आयात अपरिहार्य है तो उसे ‘विश्वसनीय स्रोत’ से आयात किया जाए। इस प्रेरणा में भी कुछ असंगति है: क्या इसका अर्थ हार्डवेयर और उसके कलपुर्जों के उत्पादन को प्रोत्साहित करना है, जैसा कि लैपटॉप के लिए उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना के साथ प्रतिबंध के जुड़ाव से आभास मिलता है? या फिर यह राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल है और चीन से आने वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को लेकर चिंता का माहौल है?
अगर बाद वाली बात है तो ऐसे नियमन का जोखिम-प्रतिफल विश्लेषण क्या होगा? आखिरकार दुनिया का बहुत बड़ा हिस्सा ऐसे लैपटॉप इस्तेमाल करता है जिनका कुछ हिस्सा चीन में बना होता है। इसके बावजूद बहुत कम लोगों को यह आशंका होगी कि चीन में बने कलपुर्जों का इस्तेमाल करने से व्यवस्थागत निर्भरता की स्थिति बनेगी। सुरक्षा के मोर्चे पर प्रसंस्करण इकाइयों (जो देश के अहम अधोसंरचना से जुड़े सर्वर के संचालन में मदद करती हैं) और कलपुर्जों में भेद करना होगा जो उपभोक्ता हार्डवेयर में लगते हैं।
प्रभावी रूप से देखें तो नई ‘आयात प्रबंधन प्रणाली’ की शुरुआत आईटी हार्डवेयर आयात बास्केट के वास्तविक घटकों और स्रोतों की छानबीन से शुरू होगा। एक नवंबर से लैपटॉप आयात करने वाली कंपनियों को खुद को इस व्यवस्था में पंजीकृत करना होगा।
बहरहाल, सरकार ने चेतावनी दी है कि अब से एक वर्ष बाद आयातकों को इस बात का कोटा आवंटित किया जाएगा कि वे कैसे और क्या आयात कर सकते हैं। यह पिछले वर्ष के उनके आयात मूल्य, उनके घरेलू विनिर्माण के आकार और इलेक्ट्रॉनिक्स आयात पर निर्भर होगा।
प्रभावी तौर पर इससे ऐपल जैसे बड़े विनिर्माताओं को कुछ प्रतिबंधों से बच निकलने में मदद मिल सकती है, बशर्ते कि वे घरेलू स्तर पर कुछ मूल्यवर्धन करते रहें और अपने निर्यात में भी इजाफा करते रहें। यह बात उपभोक्ताओं के लिए नुकसानदेह होगी और तस्करी के लिए मजबूत प्रोत्साहन बनेगी।
यह बात पहले से कारोबार में शामिल लोगों के लिए लाभदायक साबित हो सकती है और इससे इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी दबाव कम होगा। यह बात उपभोक्ताओं के लिए और अधिक नुकसानदेह साबित होगी और वृद्धि बढ़ाने वाली उत्पादकता के लिए भी। सरकार की इस बात के लिए सराहना करनी होगी कि उसने कुछ बड़े निर्माताओं की चिंताओं को सुना। परंतु स्पष्ट रूप से इसमें उपभोक्ताओं या समग्र वृद्धि का कोई हिमायती नहीं है।
सुरक्षा नीति घरेलू उद्योग को बढ़ावा देने के क्रम में कोटा और लाइसेंस की पुन:स्थापना स्पष्ट रूप से पश्चगामी कदम है। इलेक्ट्रॉनिक्स में भारत की आयात निर्भरता चिंताजनक है और इसे समझा जा सकता है। परंतु इसे लेकर पहले ही प्रोत्साहन और सब्सिडी की व्यवस्था की जा चुकी है। कोटा और लाइसेंस की व्यवस्था टैरिफ से भी बुरी है और वे मूल्य प्रणाली के हिसाब से भी काम नहीं करते हैं। काला-बाजारी, तस्करी और राशन में इजाफा हुआ।
सरकार उचित रूप से यह उम्मीद नहीं कर सकती है कि भारतीय कमियों के उस युग में वापस लौटें जिसे वे 1990 के दशक में पीछे छोड़ आए हैं। यह नई नीति सही साबित नहीं होगी क्योंकि इसे आधुनिक मूल्य श्रृंखला को ध्यान में रखकर नहीं तैयार किया गया है। यह देखते हुए कि मूल प्रतिबंध किस तरह जारी किया गया था और अब एक प्रबंधन प्रणाली का वादा किया गया है, इसमें किसी को दो राय नहीं होगी कि इस अहम क्षेत्र के लिए मनमाने और तदर्थ ढंग से नीति तैयार की जा रही है। इन परिस्थितियों में घरेलू मूल्यवर्धित वृद्धि का पूर्वानुमान बेहतर नहीं हो सकता।