फिच रेटिंग्स (Fitch Ratings) ने अमेरिकी डेट की रेटिंग कम करने का जो निर्णय लिया उसका मंगलवार को बाजार पर ज्यादा असर नहीं देखने को मिला। चूंकि वित्तीय बाजारों में संभवत: किसी को अमेरिकी सरकार की डेट से निपटने की क्षमता पर संदेह नहीं है, इसलिए रेटिंग संबंधी कदमों को लेकर तीव्र प्रतिक्रिया हुई।
उदाहरण के लिए अमेरिका की वित्त मंत्री जैनेट येलेन ने इसे ‘मनमाना और पुराने आंकड़ों पर आधारित’ बताया। हालांकि रेटिंग के इस कदम से शायद वित्तीय बाजारों पर तात्कालिक रूप से कुछ खास असर नहीं पड़े। हम 2011 में स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स द्वारा रेटिंग कम किए जाने के अवसर पर ऐसा होते देख चुके हैं।
फिच रेटिंग्स ने अपने कदमों के लिए जो कारण रेखांकित किए हैं वे चिंतित करने वाले हैं। कहने का अर्थ यह नहीं है कि देनदारी में चूक यानी डिफॉल्ट का खतरा है लेकिन अमेरिका में सरकारी वित्त की स्थिति लंबी अवधि में वित्तीय बाजारों में गलत आवंटन की वजह बन सकती है।
उदाहरण के लिए रेटिंग एजेंसी ने कहा है कि 2023 में आम सरकारी बजट घाटे के बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6.3 फीसदी के बराबर होने का अनुमान है जबकि 2022 में यह केवल 3.7 फीसदी था। ऐसा कमजोर राजस्व, व्यय संबंधी पहलों और उच्च ब्याज बोझ के कारण हो सकता है।
फिच का अनुमान है कि 2024 में आम सरकारी बजट घाटा बढ़कर जीडीपी के 6.6 फीसदी के बराबर हो जाएगा और 2025 में यह 6.9 फीसदी पहुंच जाएगा। हालांकि आम सरकारी डेट स्टॉक अपने उच्चतम स्तर से कम हुआ है लेकिन अभी भी यह महामारी के पहले की तुलना में काफी ऊंचे स्तर पर है। हकीकत में डेट स्टॉक माध्य एएए और एए रेटिंग वाले देशों से 2.5 गुना अधिक है।
बीते दो दशकों में संचालन मानकों में गिरावट
इसके अलावा रेटिंग एजेंसी का मानना है कि बीते दो दशकों में संचालन मानकों में गिरावट आई है। यह गिरावट वित्तीय मामलों में भी आई है। निश्चित तौर पर डेट सीमा के मुद्दे पर बार-बार राजनीतिक गतिरोध से भी चिंताएं बढ़ी हैं।
निकट भविष्य में राजकोषीय स्थिति में सुधार नहीं हुआ है। कांग्रेस के बजट कार्यालय के ताजा अनुमानों के मुताबिक अगले एक दशक के दौरान अमेरिकी फेडरल बजट घाटा औसतन जीडीपी का 6.1 फीसदी रहेगा जो हालिया दशक के जीडीपी के 3.6 फीसदी की तुलना में काफी अधिक है। इसके परिणामस्वरूप 2033 तक ब्याज का बोझ बढ़कर दोगुना यानी जीडीपी के 3.6 फीसदी हो जाएगा।
वैश्विक ब्याज दरों और पूंजी प्रवाह पर भी पड़ेगा असर
आने वाले दशक में बजट घाटा बढ़ने का अर्थ यह है कि अमेरिकी सरकार और अधिक बचत की खपत करेगी। ऐसे में निजी क्षेत्र के लिए ज्यादा गुंजाइश नहीं रहेगी। चूंकि मुद्रास्फीति भी तय लक्ष्य से ऊपर चल रही है इसलिए निरंतर ऊंचा राजकोषीय घाटा ब्याज दरों को अनुमान से लंबी अवधि तक ऊंचा रखेगा। इसका असर वैश्विक ब्याज दरों और पूंजी प्रवाह पर भी पड़ेगा।
अमेरिका तथा अन्य विकसित देशों में ब्याज दर बढ़ने से कई निम्न और मध्य आय वाले देशों को फंड जुटाने में मुश्किल हो रही है। लगातार उच्च ब्याज दर वैश्विक वृद्धि पर असर डालेगी। अमेरिकी बजट में उच्च ब्याज आवंटन वृहद आर्थिक झटकों से निपटने की उसकी क्षमता पर भी असर डालेगी। उदाहरण के लिए फिच का अनुमान है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था इस वर्ष के अंत में हल्की मंदी की ओर जा सकती है।
वित्तीय मोर्चे पर चुनौतियों के बावजूद यह कहना उचित होगा कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था काफी जीवंत है और उसे सबसे जीवंत वित्तीय बाजार का समर्थन हासिल है। ऐसे में वह निकट भविष्य की चुनौतियों से निपट लेगा। बहरहाल, उसकी आंतरिक राजनीति की गलतियां और उभरती भूराजनीतिक स्थिति सुधार को प्रभावित कर सकती है।
उदाहरण के लिए कई देश अमेरिकी डॉलर और डॉलर आधारित काम करने वाले पश्चिमी वित्तीय संस्थानों का विकल्प तलाश कर रहे हैं। वैश्विक वित्तीय व्यवस्था का यूं बंटना अमेरिका और शेष विश्व दोनों के लिए मुश्किल पैदा करने वाला साबित हो सकता है।