रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) के तिमाही नतीजों के बाद की टिप्पणियों ने फिर से इस बात की ओर ध्यान आकृष्ट किया है कि देश में दूरसंचार की दरों को तर्कसंगत बनाए जाने की आवश्यकता है। इसकी तात्कालिक वजह रिलायंस जियो की बढ़ती ग्राहक संख्या के साथ ही प्रति उपयोगकर्ता मासिक औसत राजस्व (एआरपीयू) का सपाट होना भी है।
कंपनी ने तीसरी तिमाही में 181.70 रुपये एआरपीयू हासिल किया जो पिछली तिमाही के बराबर और एक वर्ष पहले की समान अवधि के 178.20 रुपये से थोड़ा अधिक था। दूरसंचार उद्योग में एआरपीयू दूरसंचार कंपनी की सेहत बताता है। कई विश्लेषकों की रिपोर्ट में यह सही संकेत है कि दूरसंचार कंपनियों को अपनी अखिल भारतीय 5जी सेवाओं का शुल्क बढ़ाना चाहिए ताकि उनका कारोबारी प्रदर्शन मजबूत हो सके।
उन्होंने इस उद्योग में शुल्क वृद्धि में देरी को इस क्षेत्र के लिए जोखिम के रूप में भी रेखांकित किया। उन्होंने 2024-25 में 10 से 20 फीसदी शुल्क वृद्धि का अनुमान पेश किया है यानी जियो का मासिक एआरपीयू 200 रुपये से अधिक हो जाएगा। यह पूरे क्षेत्र के लिए स्वागतयोग्य है। अगर जियो जिसके पास सबसे अधिक मोबाइल उपभोक्ता हैं, वह शुल्क बढ़ाती है तो अन्य भी उसका अनुसरण करेंगे।
बीते दो वर्षों के दौरान देश की दूरसंचार कंपनियों की शुल्क दरों में मामूली बढ़ोतरी हुई जिससे उपयोगकर्ताओं के फोन का बिल कम बना रहे। यहां तक कि उपभोक्ताओं के पास भी मोबाइल शुल्क को लेकर शिकायत करने की कोई वजह नहीं है लेकिन उन्हें गुणवत्ता के मोर्चे पर कीमत चुकानी पड़ रही है।
कॉल कटना और खराब सिग्नल ने मोबाइल पर बातचीत की गुणवत्ता पर असर डाला है और फोन उपयोगकर्ताओं ने बड़ी तादाद में व्हाट्सऐप कॉलिंग को अपनाया है। शुल्क में बढ़ोतरी के बाद कंपनियां अधोसंरचना और आंतरिक दिक्कतों पर अधिक धनराशि खर्च कर सकेंगी जिससे उपयोगकर्ताओं को संतोषप्रद सेवा मिल सकेगी और उन्हें फोन करने के लिए वैकल्पिक मंचों का इस्तेमाल नहीं करना होगा।
इससे इस उद्योग को 5जी सेवाएं प्रदान करने में भी मदद मिलेगी जो सही मायनों में मजबूत और किफायती है। इसके अलावा दूरसंचार उद्योग जिसे अहम वित्तीय दबाव का सामना करना पड़ा है और जहां दो कंपनियों का दबदबा है उसे दोबारा बेहतर स्थिति में लाने की आवश्यकता है। ऐसा होने पर ही भारत डिजिटल महाशक्ति बन पाएगा जिसका उसने लक्ष्य तय किया है।
सरकार की प्रमुख योजनाओं मसलन डिजिटल इंडिया आदि को सफल बनाने के लिए दूरसंचार कंपनियों को सही संपर्क और गति प्रदान करनी होगी। इसके लिए पूंजी पर प्रतिफल में सुधार करना होगा और घाटे को सीमित रखना होगा। प्रमुख दूरसंचार कंपनियों में से प्रत्येक ने बीते दो वर्षों के दौरान 5जी स्पेक्ट्रम पर व्यय समेत करीब एक लाख करोड़ रुपये की राशि व्यय की है। दूरसंचार कंपनियों में से केवल भारती एयरटेल का एआरपीयू हाल के समय में 200 रुपये से अधिक रहा है। अन्य कंपनियां काफी नीचे हैं।
हमारे देश में कंपनियों का एआरपीयू विदेशी दूरसंचार कंपनियों की तुलना में बेहद कम है। भारतीय दूरसंचार उद्योग में कई विशिष्ट पहलू शामिल हैं- यह दुनिया में सबसे सस्ती दूरसंचार सेवा मुहैया कराने वाले उद्योगों में शामिल है। हमारा राष्ट्रीय दूरसंचार घनत्व 85 फीसदी है और इसमें इजाफा संभव है।
इसके अलावा हमारा बाजार प्रमुख तौर पर प्रीपेड बाजार है। देश का मोबाइल टेलीफोन क्षेत्र संभावनाओं से भरा है लेकिन बीते वर्षों में उसे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। इनमें सबसे बड़ा झटका था 2012 में कथित 2जी घोटाले के बाद अनेक दूरसंचार लाइसेंसों को रद्द किया जाना।
अगर दूरसंचार उद्योग को भारत की विकास गाथा में अपनी जगह हासिल करनी है तो यह अहम है कि दरों को युक्तिसंगत बनाया जाए। ऐसा होने पर कंपनियों के पास जरूरी निवेश की गुंजाइश रहेगी तथा वे तकनीक तथा सेवा गुणवत्ता सुधार की दिशा में आगे बढ़ सकेंगी। अनुमान यही है कि लोक सभा चुनाव के बाद दूरसंचार शुल्क दरों में इजाफा हो सकता है।