केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 5जी जैसे अत्यधिक तेज मोबाइल नेटवर्क के स्पेक्ट्रम की नीलामी को मंजूरी दे दी है और भारत बहुत जल्दी 5जी सक्षम देशों की श्रेणी में शामिल हो जाएगा। इसके साथ ही इस अत्यधिक उन्नत तकनीक पर आधारित सेवाएं देश के दूरदराज इलाकों में शुरू करने की राह आसान होगी। हालांकि आरंभ में 5जी नेटवर्क केवल बड़े शहरों में ही उपलब्ध होगा। इंटरनेट आधारित विभिन्न कामों के साथ-साथ कृत्रिम मेधा विकसित करने के साथ-साथ 5जी तकनीक स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा और कृषि तक उपभोक्ताओं और कारोबारियों दोनों के लिए अवसरों के द्वार खोलेगी। 5जी तकनीक को अपनाने में भारत पहले ही पीछे है और दूरसंचार उद्योग को अब इन शिकायतों में समय नहीं गंवाना चाहिए कि उपक्रमों को दूरसंचार कंपनियों से बेहतर सौदा मिल रहा है या स्पेक्ट्रम के लिए बहुत अधिक आरक्षित मूल्य रखा गया है।
आरक्षित मूल्य की बात करें तो दूरसंचार कंपनियों की इस दलील में दम है कि अधिकांश देशों में 5जी स्पेक्ट्रम को बेहद कम दर पर बेचा गया है लेकिन कैबिनेट ने कीमतों को लेकर जो निर्णय लिया है वह भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) द्वारा अप्रैल में की गई अनुशंसा के अनुरूप है। उसने यह अनुशंसा एक अन्य प्रस्ताव की समीक्षा के दौरान की थी तथा डिजिटल संचार आयोग ने भी उसका समर्थन किया था। ट्राई ने अप्रैल 2022 की अपनी अनुशंसा में स्पेक्ट्रम के आरक्षित मूल्य को 2018 के स्तर से 35 प्रतिशत तक कम कर दिया था लेकिन दूरसंचार कंपनियां करीब 90 प्रतिशत कटौती की मांग कर रही थीं। यकीनन कीमत के मोर्चे पर कुछ और बेहतर कदम उठाकर यह सुनिश्चित किया जा सकता था कि दूरसंचार कंपनियों को नीलामी प्रक्रिया में ज्यादा कठिनाई का सामना न करना पड़े लेकिन सरकार ने अन्य स्थानों पर संशोधन के जरिये कंपनियों की नकदी संबंधी चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया है। नीलामी प्रक्रिया जुलाई में शुरू हो सकती है। सरकार ने बोलीकर्ताओं के लिए अग्रिम भुगतान की अनिवार्यता समाप्त कर दी है और इसकी अवधि को 20 वर्षों में विस्तारित कर दिया गया है। स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क, जो पहले दूरसंचार कंपनियों के समायोजित सकल राजस्व का 3 प्रतिशत था उसे नयी नीलामी प्रक्रिया के लिए समाप्त कर दिया गया है। 5जी स्पेक्ट्रम नीलामी को नौ बैंडों में होने वाली नीलामी में सबसे बड़ी बताया जा रहा है और 20 वर्ष के लिए की जा रही यह नीलामी आधार मूल्य पर भी 4 लाख करोड़ रुपये जुटा सकती है। ट्राई ने 3.5 गीगाहर्ट्ज बैंडके लिए 317 करोड़ रुपये / मेगाहर्ट्ज का आधार मूल्य तय कर दिया है जिसका इस्तेमाल 5जी के लिए किया जाता है। यह राशि 2018 की 492 करोड़ रुपये की अनुशंसा से कम है।
कीमत के अलावा दूरसंचार कंपनियां इस बात से भी नाराज हैं कि सरकार ने उपक्रमों को निजी नेटवर्क चलाने के लिए सीधे स्पेक्ट्रम आवंटित करने की बात कही है। उन्हें यह इजाजत भी दी गई है कि दूरसंचार कंपनियों से स्पेक्ट्रम लीज पर लें। औद्योगिक संगठनों ने इसकी आलोचना की है। परंतु निरपेक्ष होकर देखें तो लगता है कि दूरसंचार कंपनियां अतिरंजित प्रतिक्रिया दे रही हैं। वैश्विक मानकों के अनुसार अन्य देशें में भी ऐसा ही किया जा रहा है और उनके 5जी राजस्व का बड़ा हिस्सा उपक्रमों से आ रहा है। कंपनियां विरोध करने के बजाय अपने कारोबारों के लिए सीधे स्पेक्ट्रम आवंटित करा सकती हैं। एक अध्ययन के अनुसार उद्यम सेवा दूरसंचार कंपनियों के लिए नया अवसर लेकर आ रहा है और वे इस दिशा में अवसर तलाश सकती हैं। विभिन्न उद्यमों को 5 जी स्पेक्ट्रम का आवंटन अर्थव्यवस्था के लिए बड़े लाभ लाएगा।
सरकार ने गत वर्ष दूरसंचार क्षेत्र की नकदी जरूरत को देखते हुए पैकेज की पेशकश करके अच्छा किया था। खासतौर पर वित्तीय संकट से जूझ रही वोडाफोन आइडिया के लिए। हालांकि 5जी की कम कीमत ने संकट से जूझ रहे क्षेत्र को राहत दी होगी लेकिन वक्त आ गया है कि देश का दूरसंचार उद्योग भी इस अवसर का पूरा लाभ उठाए।
