वित्त वर्ष 2024 की सितंबर तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई जिसने विश्लेषकों के अनुमानों को बड़े अंतर से मात दे दी और इस कथ्य की पुष्टि कर दी कि भारत वास्तव में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है। यह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की दूसरी तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि अनुमान से 110 आधार अंक (बीपीएस) अधिक है।
इस पृष्ठभूमि में मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) क्या करेगी जो इस सप्ताह अपनी द्विमासिक बैठक करने वाली है? इससे पहले कि मैं अनुमान लगाने की कोशिश करूं, हम अन्य प्रासंगिक आंकड़ों को देख लेते हैं कि 6 अक्टूबर को खत्म हुई आखिरी एमपीसी की बैठक के बाद से क्या बदलाव आए हैं?
खुदरा मुद्रास्फीति अक्टूबर में सालाना आधार पर घटकर चार महीने के निचले स्तर 4.87 प्रतिशत के स्तर पर आ गई है जो सितंबर में 5.02 प्रतिशत थी। इसमें बुनियादी या गैर-खाद्य, गैर-तेल मुद्रास्फीति के साथ-साथ रसोई गैस की महंगाई के व्यापक आधार में गिरावट का योगदान था।
हालांकि खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट के कोई संकेत नहीं दिखे। चालू वित्त वर्ष के दौरान इसका उच्चतम स्तर 7.44 प्रतिशत (जुलाई 2023 में) रहा है। बुनियादी मुद्रास्फीति अक्टूबर में घटकर करीब 4.2 प्रतिशत के स्तर पर आ गई, जो सितंबर में करीब 4.5 प्रतिशत थी।
ब्रेंट क्रूड की कीमत 6 अक्टूबर को 83.8 डॉलर प्रति गैलन थी जो 1 दिसंबर को कम होकर 79.00 डॉलर पर आ गई। पिछले दो महीनों में आखिरी मौद्रिक नीति समीक्षा के बाद से कच्चे तेल की कीमत 76.6 डॉलर और 93.79 डॉलर के बीच उतार-चढ़ाव के साथ नजर आई।
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) की वृद्धि दर सितंबर में घटकर 5.8 प्रतिशत रह गई जिसमें पिछले दो महीने तक वृद्धि दिखी थी। फिर भी, वित्त वर्ष 2024 की दूसरी तिमाही में आईआईपी वृद्धि पहली छमाही के 4.8 प्रतिशत के मुकाबले 7.4 प्रतिशत पर मजबूत बनी रही है।
अगर 10 साल के सरकारी बॉन्ड की बात करें तो इसके प्रतिफल में भी ज्यादा बदलाव नहीं आया है। यह 6 अक्टूबर के 7.34 प्रतिशत से घटकर सप्ताहांत में 7.29 प्रतिशत हो गया जबकि पिछले दो महीनों में यह 7.19 प्रतिशत और 7.4 प्रतिशत के बीच थी।
इसके विपरीत 6 अक्टूबर को अमेरिका के 10 वर्षीय बॉन्ड का प्रतिफल 4.74 प्रतिशत से घटकर 1 दिसंबर को 4.20 प्रतिशत हो गया है, जिससे भारतीय और अमेरिकी बॉन्ड के प्रतिफल के बीच का अंतर बढ़ गया है।
इस दौरान डॉलर के मुकाबले रुपये के स्तर में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। 6 अक्टूबर को एक डॉलर 83.22 रुपये के स्तर पर था। पिछले सप्ताह यह 83.30 के स्तर पर बंद हुआ था। इसी अवधि में, डॉलर सूचकांक में थोड़ी नरमी आई और यह 106.04 से 103.4 के स्तर पर चला गया।
अन्य मापदंडों के अलावा, तंत्र में नकदी की कमी, नवंबर के तीसरे सप्ताह में एक दिन में नकदी की कमी 2.24 लाख करोड़ रुपये के स्तर तक पहुंच गई, जो दिसंबर 2021 के बाद से सबसे अधिक है और यह 6 अक्टूबर को 34,000 करोड़ रुपये के स्तर पर और 1 दिसंबर को 49,000 करोड़ रुपये के स्तर पर रहा है।
आइए एक नजर डालते हैं कि पिछले दो महीनों में अन्य प्रमुख केंद्रीय बैंकों ने क्या किया है। अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में, यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ईसीबी) ने जुलाई 2022 से लगातार 10 बैठकों में इसे बढ़ाने का फैसला करने के बाद अपनी नीतिगत दर को 4 प्रतिशत के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर बनाए रखते हुए कोई बदलाव नहीं किए।
यूरोजोन में मुद्रास्फीति अक्टूबर के 2.9 प्रतिशत से घटकर नवंबर में 2.4 प्रतिशत पर आ गई जिसके साथ ही 2021 के गर्मी के मौसम के बाद से पहली बार ईसीबी ने 2 प्रतिशत मुद्रास्फीति के लक्ष्य पर ध्यान देना शुरू कर दिया है।
नवंबर में अमेरिकी फेडरल रिजर्व की दर निर्धारित करने वाली संस्था, फेडरल ओपन मार्केट कमेटी ने सबकी सहमति से लगातार दूसरी बार बेंचमार्क दर में कोई बदलाव न कर उसे 5.25-5.5 प्रतिशत के स्तर पर रखने का फैसला किया।
पिछले महीने बैंक ऑफ इंगलैंड की एमपीसी ने भी कोई बदलाव न करते हुए नीतिगत दर को 5.25 प्रतिशत के स्तर पर बनाए रखा लेकिन यह निर्णय सर्वसम्मति से नहीं लिया गया था। बीओई के गवर्नर एंड्रयू बेली ने स्पष्ट किया है कि मुद्रास्फीति में कमी के बावजूद पूरी तरह संतुष्ट होने की गुंजाइश नहीं है।
बेली की बातों में क्या आपको आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास की अक्टूबर की नीतिगत घोषणा के बाद कही गई बातों के स्वर ही नहीं सुनाए देते हैं? इस बार भी यथास्थिति बनी रहने की उम्मीद है और नीतिगत दर के साथ-साथ रुख में कोई बदलाव नहीं होगा। संभव है कि दास अब अपना बयान देने में सतर्कता बरतेंगे।
मई 2022 और फरवरी 2023 के बीच 250 आधार अंक की वृद्धि के बाद अक्टूबर में भी रीपो दर में कोई बदलाव नहीं हुआ और यह लगातार आठ महीने तक 6.5 प्रतिशत के स्तर पर बना रहा। इसके अलावा वर्ष में मुद्रास्फीति के साथ-साथ वृद्धि अनुमान में भी कोई बदलाव नहीं दिखा।
आरबीआई ने अक्टूबर में खुला बाजार परिचालन (ओएमओ) के जरिये सरकारी बॉन्ड की बिक्री योजना की घोषणा की ताकि नीतिगत कदम के अनुरूप नकदी का प्रबंधन किया जाए। लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ है। पिछली नीतिगत बैठक में मुख्य रूप से नकदी पर ध्यान दिया गया था जो बैंकिंग प्रणाली में 2,000 रुपये के नोटों की वापसी के बाद बढ़ गया था।
आरबीआई नकदी प्रबंधन से अपना ध्यान नहीं हटाएगा, भले ही हम ओएमओ नीलामी न देख पाएं। खाद्य कीमतों में तेजी आने से खुदरा मुद्रास्फीति दिसंबर में थोड़ी गिरावट से पहले नवंबर में बढ़ी (चाहे इसका दोष प्याज और आलू को दिया जाए) लेकिन कम बुनियादी मुद्रास्फीति से यह आश्वासन भी मिलता है कि नीति अच्छी तरह कारगर है।
वित्त वर्ष 2024 के लिए खुदरा मुद्रास्फीति के 5.4 फीसदी अनुमान में कोई बदलाव होने की संभावना नहीं है। हालांकि एक सवाल यह है कि क्या वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि के अनुमान में कोई बदलाव होगा? ऐसा संभव हो सकता है।
एक सवाल यह भी है कि हम पहली बार दरों में कटौती कब देखेंगे? इसके लिए पहले नीतिगत रुख में बदलाव का इंतजार करने के साथ ही अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा दरों में कटौती का इंतजार भी करना होगा। ऐसा अगले साल जून में संभव है, बशर्ते भू-राजनीति, मुद्रास्फीति, वृद्धि और वैश्विक ब्याज दर की दिशा सकारात्मक रहे।