बात 8 जनवरी, 2022 की शाम की है जब दिल्ली की सड़कें सुनसान थीं। कोविड-19 की तीसरी लहर बढ़ रही थी और सप्ताहांत में लॉकडाउन लागू हो चुका था। किसी के लिए कहीं बाहर निकलने के लिए शनिवार की शाम उतनी माकूल नहीं थी। बेमौसम बारिश की वजह से यह दिन असामान्य रूप से ठंडा और नम बन गया। महानगरों की तर्ज पर ही यहां भी शाम के वक्त ऑनलाइन डिलिवरी मंच पर खाने के ऑर्डर आए जा रहे थे।
उनमें से एक ऑर्डर सलिल त्रिपाठी के फोन पर आया जब वह सड़क के किनारे खड़ी अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हो रहे थे। त्रिपाठी ने जैसे ही अपना फोन निकाला, नशे में धुत एक पुलिसकर्मी ने अपनी एसयूवी से उन्हें टक्कर मार दी। इस दुर्घटना में मौके पर ही उनकी मौत हो गई।
कई रिपोर्टों में खासतौर पर साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट में त्रिपाठी की एक कहानी आई। कोविड-19 ने उन्हें एक रेस्तरां प्रबंधक से डिलिवरी ‘कार्यकारी’ में बदल दिया था। रिपोर्ट में कहा गया कि उनके बेटे को एक निजी स्कूल से इसलिए निकाल दिया गया था कि डिलिवरी कर्मी फीस का खर्च नहीं उठा सकते थे।
त्रिपाठी की परिस्थितियां और उनसे जुड़ी यह छोटी खबर वास्तव में काम के भविष्य या मध्यम वर्ग के कम होते दायरे से जुड़ी एक कड़वी हकीकत है। 8 जनवरी को हुई दुर्घटना ने उन्हें महज एक घातक दुर्घटना के आंकड़े में तब्दील कर दिया। लेकिन आम लोगों का जीवन, तथ्यों पर आधारित खबरों और आंकड़ों से कहीं अधिक हैं। यह एक ऐसा पहलू है जो कभी-कभी हमसे नजरअंदाज भी हो जाता है जैसे कि तुरंत डिलिवरी सेवाएं देने वाली कंपनी को लेकर चल रहे ताजा विवाद को ही लें।
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इससे जुड़ी रिपोर्ट के मुताबिक इस विवाद के चलते कंपनी का साथ करीब एक हजार से अधिक डिलिवरी कर्मियों ने छोड़ कर उसकी प्रतिस्पर्द्धी कंपनी से जुड़ने का फैसला किया क्योंकि उनकी कमाई घटकर तकरीबन आधी हो गई है। एक साल पहले की तुलना में यह गिरावट शायद काफी तेज है।
यह काफी आश्चर्यजनक है कि कंपनी से एक हजार लोग डिलिवरीकर्मी के तौर पर जुड़े थे (जाहिर है, कंपनी से 2,000 लोग और जुड़े हैं जिन्होंने कंपनी अभी छोड़ी नहीं)। इस तरह ई-कॉमर्स ने रोजगार के मौके जरूर तैयार किए है। रेडसियर स्ट्रैटजी कंसल्टेंट्स के अनुसार, भारत का ई-कॉमर्स लॉजिस्टिक्स उद्योग, वर्ष 2027-28 तक तैयार डिलिवरी को 10 अरब पार्सल के स्तर पर ले जाने के लिए तैयार है जो वर्ष 2022-23 के 4 अरब से अधिक होगा।
डिलिवरी की तादाद काफी अधिक है और इसके लिए काफी अधिक लोगों की आवश्यकता होगी। नौकरियों की तादाद भी अधिक है हालांकि ये सभी अस्थायी और कम अवधि के काम वाली नौकरियां है। लेकिन इनके चलते आबादी के बड़े हिस्से को गरीबी के दायरे से बाहर निकाला जा सकता है। इससे कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ सकती है जिससे उन्हें अपने लिए, अपने काम के क्षेत्र, काम के घंटे और जिनके लिए वे काम करती हैं, उनको चुनना आसान हो जाएगा।
ओला, उबर, जोमैटो, स्विगी, अर्बन कंपनी और कई अन्य तकनीकी मंचों के उभार से डिलिवरी करने वाले लोगों की स्वीकार्यता बढ़ रही है और उनका दर्जा भी बढ़ रहा है। उदाहरण के तौर पर गुरुग्राम में गेट वाली सोसायटियों ने उन्हें बिना किसी विवाद के अंदर जाने की अनुमति देना शुरू कर दिया है।
इन कर्मियों की कमाई में होने वाले उतार-चढ़ाव और उनके काम के लंबे घंटों को लेकर भी अक्सर चर्चा होती रहती है। कुछ डिलिवरी वाले लोग आपसे ऑर्डर कन्फर्म और कैंसल करने का अनुरोध करते हैं ताकि वे अतिरिक्त पैसे कमा सकें। इससे उनकी हताशा साफतौर पर झलकती है।
इस तरह का काम देने वाले कई ऐसे मंच, अपने इन कर्मचारियों को ‘पार्टनर’ कहना या किसी बेहतर संबोधन के साथ उनसे संवाद करना पसंद करते हैं। लेकिन इस पूरे क्रम में उनका स्थान आमतौर पर सबसे नीचे होता है। इन सबके अलावा चंद मिनटों में डिलिवरी के प्रचार की वजह से हर सामान की डिलिवरी के साथ अफरा-तफरी जैसा माहौल बन जाता है।
अगर आपके पास यही वक्त है तब भी 10 या 15 मिनट में बहुत कुछ हो सकता है। आप बीमार पड़ सकते हैं, दुर्घटना का शिकार हो सकते हैं, आपका वाहन खराब हो सकता है, या आपको रास्ते में लंबे ट्रैफिक जाम का सामना करना पड़ सकता है।
यह सब ऑटोमेटेड कॉल लेते समय भी हो सकता है जिसमें समय पर पहुंचने का पूरा जोर होता है। लेकिन डिलिवरी की समय सीमा के भीतर सामान भेजने में असफल रहने पर ग्राहक नाराज हो सकते हैं और इसके चलते मिली खराब रेटिंग से संभवतः कंपनी की आमदनी में भी गिरावट हो सकती है।
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अगर डिलिवरी करने वाले लोग खुद को मुंबई के मशहूर डब्बावालों की तर्ज पर व्यवस्थित कर सकते हैं तो उनके वेतन और डिलिवरी कर्मियों के तौर पर उनके दर्जे के लिहाज से भी बड़ा चमत्कार हो सकता है। मुंबई के मशहूर डब्बावालों को हार्वर्ड की केस स्टडी का भी हिस्सा बनाया गया और इसके अलावा उन्हें लोकल ट्रेनों में भी एक निश्चित दर्जा मिला है।
लेकिन डब्बावालों को 10 मिनट की समय-सीमा के भीतर ही डिलिवरी करने के लिए जूझने की जरूरत नहीं होती है। उनके पास सुबह घरों से लंच बॉक्स लेने और दोपहर के भोजन के समय तक उन्हें दफ्तरों में पहुंचाने के लिए अच्छा-खासा वक्त होता है।
कुछ समय पहले, जब मैं अपनी खुद की कंपनी चलाने की कोशिश कर रहा था, तब कई लोग मेरी सलाह लेते थे। हालांकि उनमें से कई ने मेरी सलाह के विपरीत ही काम किया। एक व्यक्ति ने मुझसे पूछा कि क्या एक ई-कॉमर्स कंपनी को 10 मिनट के भीतर डिलिवरी करनी चाहिए। उस व्यक्ति ने मुझसे पूछा कि क्या यह जरूरी चीज हैं जिस पर हम चर्चा कर सकें।
मैंने कहा, ‘बेशक, इसके बारे में सुना नहीं गया है और इसीलिए इसके बारे में बात करना महत्त्वपूर्ण होगा।’ उन्होंने फिर सवाल किया, ‘लेकिन, क्या लोगों को वास्तव में 10 मिनट की डिलिवरी की आवश्यकता है?’ मैंने कहा, ‘हो सकता है और शायद नहीं भी हो। यह बहुत उपयोगी नहीं हो सकता है, लेकिन अगर आप ऐसा कर सकते हैं तो आपको इसके बारे में निश्चित रूप से बताना चाहिए।’
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि यह मेरी ही सलाह पर हुआ लेकिन कंपनियों ने तुरंत डिलिवरी करने वाली कंपनी के तौर पर अपनी ब्रांडिंग करनी शुरू कर दी और बेहद सफलतापूर्वक तरीके से और निवेशकों के पैसे हासिल करने में भी कामयाबी हासिल की। लेकिन एक ब्रांड तैयार करना और फंडिंग हासिल करना एक मुनाफे वाला कारोबार बनाने से अलग है।
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टाटा समूह के स्वामित्व वाले ऑनलाइन किराना डिलिवरी मंच, बिगबास्केट के सह-संस्थापक हरि मेनन का कहना है कि 10 मिनट के भीतर सभी डिलिवरी सेवाएं देते हुए मुनाफे में बने रहना संभव नहीं है। बिगबास्केट के पास भी तुरंत सेवाएं देने वाला ब्रांड बीबी नाउ है, जो 15 से 30 मिनट के भीतर डिलिवरी करता है। मेनन का मानना है कि यह कारगर है क्योंकि बीबी नाउ बिगबास्केट के साथ भंडारगृहों के साथ अन्य लागत भी साझा करती है।
मेनन ने मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान कहा था, ‘उपभोक्ता इसे (10 मिनट की डिलिवरी) भी नहीं चाहते थे। यह उन पर थोपा गया था और फिर उन्होंने इसे हाथो-हाथ लिया और कहना शुरू किया कि ऐसा क्यों नहीं हो सकता।’ उसी सम्मेलन में जेप्टो के संस्थापक आदित पालिचा से तीखी प्रतिक्रिया दी जिनकी कंपनी 10 मिनट की डिलिवरी के लिए जानी जाती है। पालिचा ने मेनन की इस दलील को खारिज करते हुए इसे विरासत में मिली कंपनी के हित में बताया।
यह और अधिक स्पष्ट तब होगा जब पालिचा अपने कारोबार मॉडल की सफलता का प्रदर्शन करेंगे। निश्चित रूप से, एक स्टार्टअप को आत्मनिर्भर होने और मुनाफा कमाने की स्थिति में आने में समय लगता है। लेकिन, इस बीच डिलिवरी करने वाले असहाय लोगों के हित में बात की जा सकती है क्योंकि अभी जल्दी सेवाएं देने वाले ई-कॉमर्स क्षेत्र में उनके दर्जे की भी बात हो रही है।
जब तक ऐसा नहीं होता, हमें फिर से विचार करना होगा। निश्चित रूप से यह कारोबारी मॉडल देखने-सुनने में अच्छा लगता है लेकिन इसके कई विपरीत पहलू भी हैं जो कई तरह की जोखिम वाली स्थिति बना सकते हैं।