कंपनियों से लिए जाने वाले टैक्स की प्रभावी दर 20 फीसदी से ज्यादा नहीं होने के सरकारी दावे पर टैक्स विशेषज्ञ अक्सर ऐतराज जताते रहते हैं।
जानकारों का तर्क होता है कि अधिभार (सरचार्ज) और शिक्षा पर लगने वाले कर (सेस) समेत कंपनियों का कॉरपोरेट टैक्स शुध्द लाभ का 33.6 फीसदी बैठता है, जबकि महज कुछ कंपनियां ही बेहतर टैक्स प्लानिंग के जरिए अपने कुल दायित्वों को कम करने में सफल हो पाती हैं।
ज्यादातर कंपनियों को 30 फीसदी या इससे थोड़ा ज्यादा कॉरपोरेट टैक्स अदा करना पड़ता है।
हाल में पेश किए गए केंद्रीय बजट 2008-09 में कॉरपोरेट टैक्स की दरों में राहत नहीं दिए जाने के मद्देनजर इस बाबत दावों और प्रतिदावों के आकलन का शायद यह सही वक्त है।
इस बाबत अच्छी खबर यह है कि इस बार सरकार के बजट दस्तावेज में 3.28 लाख कंपनियों द्वारा दिसंबर 2007 तक भरे गए टैक्स रिटर्न से संबंधित महत्पवूर्ण जानकारियों को पेश किया गया है।
ये आंकड़े बहुत महत्पवूर्ण हैं और इसके जरिए सार्थक विश्लेषण किया जाना मुमकिन होगा। ये आकंड़े इस वित्तीय वर्ष में कंपनियों द्वारा भरे जाने वाले कुल टैक्स रिटर्न का तकरीबन 90 फीसदी होंगे।
सवाल यह है कि ये आंकड़े क्या कहते हैं?
कंपनियों द्वारा मुहैया कराई गई जानकारी के मुताबिक, 3.28 लाख कंपनियों का अनुमानित लाभ 5.56 लाख करोड़ रुपये रहा (इनमें से एक तिहाई कंपनियों ने घाटा दर्शाया है)।
अधिभार और शिक्षा कर (सेस) समेत इन कंपनियों का अनुमानित टैक्स 1.14 लाख करोड़ रुपये बैठता है। यह राशि प्रभावी कॉरपोरेट टैक्स दर 20.6 फीसदी के लिहाज से होगी। एक साल पहले प्रभावी टैक्स दर इससे थोड़ा कम 19.2 फीसदी थी।
बहरहाल, ये दावे तो सरकार के हैं। अगर हम इन आंकड़ों का बारीकी से विश्लेषण करें, तो पता चलेगा कि 3.28 लाख कंपनियों में महज 150 कंपनियों ने टैक्स से पहले का मुनाफा 500 करोड़ रुपये से ज्यादा बताया है।
इन 150 कंपनियों का टैक्स पूर्व लाभ सैंपल में शामिल सभी कंपनियों के लाभ का 54.8 फीसदी है। साथ ही कॉरपोरेट टैक्स अदा करने में इन 150 कंपनियों का हिस्सा 54.1 फीसदी है।
दिलचस्प बात यह है कि इस स्तर पर टैक्स की प्रभावी दर 20.6 फीसदी बैठती है। दूसरे शब्दों में कहें तो कुल लाभ और राजस्व प्राप्त करने में जिन कंपनियों की बड़ी हिस्सेदारी है, उन पर 20 फीसदी की दर से टैक्स लगाया जा रहा है, जो 33.6 फीसदी से काफी कम है।
10 करोड़ से 500 करोड़ के बीच मुनाफा कमाने वाली कंपनियों (हालांकि ऐसी कंपनियों की तादाद महज 3700 है) की टैक्स की प्रभावी दर 19 फीसदी के आसपास ही बैठती है।
तो क्या यह माना जा सकता है कि टैक्स विशेषज्ञों के दावों में दम नहीं है? ऐसा नहीं है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मुनाफा कमा रहीं प्रमुख कंपनियों पर टैक्स की प्रभावी दर महज औसत दर है।
यह बिल्कुल संभव हो सकता है कि 10 करोड़ से ज्यादा मुनाफा कमाने वाली 3,850 कंपनियों में से कुछ 19-20 फीसदी की औसत प्रभावी दर से ज्यादा टैक्स अदा कर रही हों।
ठीक उसी तरह से, जिस तरह कुछ कंपनियों ने कई तरह की छूटें प्राप्त कर अपने टैक्स दायित्वों को कम किया हो। साथ ही ऐसी कई कंपनियां भी हो सकती हैं, जो टैक्स छूटों का फायदा न उठा सकने की वजह से ज्यादा कर अदा कर रही होंगी।
कंपनियों के आंकड़ों की पड़ताल से पता चलता है कि 70 हजार से भी ज्यादा कंपनियां 33.6 फीसदी से ज्यादा टैक्स अदा करती हैं। इन कंपनियों का लाभ सैंपल में शामिल सभी कंपनियों के कुल लाभ का 16 फीसदी है, जबकि इन कंपनियों की कुल टैक्स में हिस्सेदारी 30 फीसदी से भी ज्यादा है।
इन कंपनियों को छोड़कर दूसरी 30 हजार कंपनियां 30 से 33.6 फीसदी की प्रभावी दर से टैक्स अदा करती हैं, जो सैंपल की 3.28 लाख कंपनियों द्वारा अदा किए जाने वाले टैक्स का 21 फीसदी है।
दूसरे शब्दों में कहें तो कम से कम से 1 लाख कंपनियां (सैंपल में शामिल कंपनियों का एकतिहाई) ऐसी हैं, जिन्हें 30 फीसदी से ज्यादा टैक्स अदा करना पड़ रहा है।
उम्मीद है कि अब इस बहस पर विराम लग जाना चाहिए कि कॉरपोरेट टैक्स दर को तर्कसंगत और कम बताने के लिए की गई सरकारी कवायद उचित है या नहीं।
कॉरपोरेट टैक्स की प्रभावी दरें बेशक 20 फीसदी हैं, लेकिन तकरीबन एकतिहाई भारतीय कंपनियों को 30 से 33.6 फीसदी के बीच टैक्स अदा करना पड़ रहा है।
वित्त मंत्रालय के इस साल के बजट दस्तावेज में शामिल इस महत्पवूर्ण आंकड़े से एक और तथ्य उजागर होता है। वह यह कि फिलहाल सिर्फ 3,850 कंपनियां ऐसी हैं, जिन पर आयकर विभाग को गहरी नजर रखने की जरूरत है, क्योंकि ये कंपनियां कॉरपोरेट टैक्स का मुख्य जरिया हैं।
कंपनियां द्वारा कमाए गए कुल लाभ में इन कंपनियों का हिस्सा 88 फीसदी है और कुल कॉरपोरेट टैक्स में इनकी हिसेसदारी 85 फीसदी है। ये आंकड़े टैक्स प्रशासन को बेहतर बनाने में (छूटों को समाप्त करने समेत) महत्पवूर्ण भूमिका अदा करेंगे।