अगले कुछ महीनों तक दुनिया एक ही देश की अर्थव्यवस्था पर नजर रखेगी और वह देश है चीन। वहां की अर्थव्यवस्था दोबारा कैसे खुलेगी? क्या लंबे समय से अपेक्षित सुधार होने के संकेत मिल रहे हैं या राष्ट्रपति शी चिनफिंग चीन की अर्थव्यवस्था को मार्क्सवादी दिशा में ले जाने की कोशिश कर रहे हैं? इसी तरह क्या प्रौद्योगिकी क्षेत्र पर कम्युनिस्ट पार्टी की सख्ती खत्म होने वाली है या अभी वह और भी बढ़ेगी? दोनों में से कुछ भी हो, क्या चीनी शेयर बाजारों पिछले कुछ साल से चल रही गिरावट आखिरकार खत्म होने को है?
क्या चीन की कंपनियां महामारी से पहले की रफ्तार से जिंस खरीदना शुरू कर देंगी और क्या वे ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से खरीदेंगी, जिनके साथ राजनीतिक संबंध खराब हैं? क्या इसके उपभोक्ता महामारी से पहले की ही रफ्तार से पर्यटन और खरीदारी शुरू कर देंगे, जिससे एलवीएमएच जैसे समूहों और थाईलैंड जैसे देशों को फायदा होगा?
सबसे पहले आशाजनक मामले पर गौर करते हैं। इस बात को उन लोगों ने तवज्जो दी है, जिनका चीन से संपर्क है और इसके मुताबिक कुछ वर्षों के सख्त लॉकडाउन के बाद शी का अर्थव्यवस्था खोलना हैरत की बात नहीं है बल्कि यह लंबी योजना का और चीन की आर्थिक वृद्धि में रुकावट बन रही संरचनात्मक समस्याओं के समाधान की दिशा में सार्थक कदम उठाने का नतीजा है। उनका तर्क है कि शी का तीसरा कार्यकाल निर्णायक होगा, जब वह उन सभी सुधारों पर अमल करेंगे, जिनकी उम्मीद आशावादी लोग एक दशक पहले से ही कर रहे हैं, जब उन्होंने पहली बार सत्ता संभाली थी। लेकिन इसके सबूत क्या हैं?
सबसे पहला सबूत उनके प्रमुख सहकर्मियों से जुड़ा है। शी ने शांघाई में स्थानीय पार्टी प्रमुख ली च्यांग को बुलाया। ली पिछले साल पार्टी कांग्रेस के मंच पर शी का अनुसरण करते नजर आए, जिस कांग्रेस में अगली सूचना तक शी के राष्ट्रपति बने रहने का रास्ता साफ हो गया। चीन के राष्ट्रपति ने बाजार और बड़े व्यापार के अनुकूल नीतियों वाले तथा अपने वफादार ली को नंबर दो बना दिया है। क्या यह वाकई महत्त्वपूर्ण है? इसके अलावा और क्या हो सकता है?
पीपल्स बैंक ऑफ चाइना (पीबीओसी) में अहम पदों पर बैठे पार्टी लोगों ने हाल ही में सरकारी समाचार एजेंसी को बताया कि फिनटेक कंपनियों पर संगठित कार्रवाई ‘असल में पूरी’ हो गई है।
ऑस्ट्रेलियाई कोयले के आयात पर प्रतिबंध भी अब खत्म हो गया है। यह कदम विद्रोह पर उतारू व्यापारिक भागीदारों को चीन की ताकत दिखाने के लिए उठाया गया था। पीबीओसी में कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख गुओ शूचिंग ने 7 जनवरी को समाचार एजेंसी शिन्हुआ को बताया कि 14 मुख्य इंटरनेट कंपनियों के फिनटेक कारोबार और प्लेटफॉर्म्स पर की गई सख्ती वास्तव में पूरी हो गई है। आखिर में दुनिया के किसी भी दूसरे देश की तुलना में लंबे लॉकडाउन का सामना कर चुके चीनी परिवारों के पास बहुत मोटी बचत जमा हो गई है, जिसे खर्च करने के लिए वे तैयार हो सकते हैं। ऐसा हुआ तो चीन मांग पर चलने वाली अर्थव्यवस्था की दिशा में पुनर्संतुलन कर सकता है, जिसकी मांग लंबे अरसे से चल रही है।
बाहरी कारक के रूप में और पुनर्संतुलन और सुधार की इस प्रक्रिया के समर्थन में चीन से ‘अलग’ होने का वैश्विक प्रयास रास्ते में ही रुक गया है। जर्मनी के चांसलर ने चीन को ‘अलग-थलग’ करने की इस मुहिम से दूरी बना ली है और फ्रांस के राष्ट्रपति भी ऐसा कर सकते हैं। यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष ने दावा किया है कि सदस्य राज्य यूरोपीय संघ और चीन के बीच रुके हुए निवेश समझौते पर आगे बढ़ना चाहते हैं (लेकिन यूरोपीय संसद ने अब भी इसका विरोध किया है)।
इस बीच पेइचिंग ने अपने आक्रामक राजदूत झाओ लिचियान को नाटकीय रूप से सीमा एवं समुद्री मामलों के विभाग में उप महानिदेशक बना दिया। यह ‘प्रवक्ता’ के पद से पदोन्नति की तरह तो बिल्कुल नहीं लगता। वहीं नए विदेश मंत्री वॉशिंगटन डीसी में रहे चिन गांग हैं, जिन्हें आम तौर पर चीन-अमेरिका संबंधों में तेजी से आ रही दरार को धीमा करने वाले शख्स के तौर पर देखा जाता है।
निवेशकों ने इन सभी खबरों पर अच्छी प्रतिक्रिया दी है। अक्टूबर के अंत से चीनी शेयरों के व्यापक सूचकांक करीब 50 प्रतिशत से अधिक चढ़ चुके हैं और मॉर्गन स्टेनली का अनुमान है कि अभी 16 प्रतिशत तेजी और आनी है। यह लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। 13 जनवरी को विदेशी निवेशकों ने चीन के शेयरों में 2 अरब डॉलर का निवेश किया और अक्टूबर के अंत से अभी तक चीनी अर्थव्यवस्था में वे लगभग 24 अरब डॉलर का योगदान कर चुके हैं। इन निवेशकों का तर्क है कि चीन में समस्या से जूझ रहे तकरीबन हरेक क्षेत्र को वृद्धि-समर्थक, सुधार-समर्थक नीतियों के केंद्र में रखा गया है। क्या हम 2010 के दशक की शुरुआत में लौट आए हैं, जब चीन में तेजी आ रही थी और बाकी सब उसकी बराबरी करने के लिए जूझ रहे हैं या तेजी के ज्वार में डूब रहे थे?
शायद नहीं। चीन और पश्चिमी देशों के बीच लंबे समय से चली आ रही दूरी इस देश में निवेश बने रहने के लिए सबसे बड़ा खतरा है। चीनी सरकार का आक्रामक तेवर धीमा होने या जर्मन चांसलर के विनम्र होने के बाद भी इसके खत्म होने की संभावना नहीं है। यह आर्थिक नहीं राजनीतिक असहमति है, जो यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद ज्यादा स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। इससे लोगों के उस नजरिये को भी बल मिला है, जिसके मुताबिक शीत युद्ध काल की तरह दुनिया पूर्व और पश्चिम में बंटी है। जर्मनी के लोग मानते होंगे कि वे अब भी चीन में पैसा कमा सकते हैं मगर वर्ष 2022 के बाद उन्हें पता है कि वे साझी सुरक्षा के बिना नहीं रह सकते।
कोई पूरे भरोसे के साथ यह भी नहीं कह सकता कि चीन में पैसा बनाया जा सकता है। ‘खत्म हो चुकी’ सख्ती वजह हो या न हो, यह तो तय है कि जैक मा अपनी कंपनी का नियंत्रण छोड़ चुके हैं और शी अर्थव्यवस्था पर पार्टी के नियंत्रण वाले अपने बयान से सार्वजनिक तौर पर बिल्कुल भी पीछे नहीं हटे हैं। शी के बयानों में आत्मनिर्भरता की गूंज भी है। इन परिस्थितियों में किसी के लिए भी पैसा कमाना बहुत कठिन है और ऐसे में किसी भी निवेशक की दिलचस्पी जल्द खत्म होने की संभावना होगी।
(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में सेंटर फॉर द इकॉनमी ऐंड ग्रोथ के निदेशक हैं)