मुद्रास्फीति के खिलाफ छिड़ी लड़ाई अधिकांश केंद्रीय बैंकों के अनुमान से कहीं अधिक लंबी चलने की संभावना है। फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने इस सप्ताह सीनेट की बैंकिंग समिति के सामने सुझाव दिया कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक शायद नीतिगत दरों में 50 आधार अंक का और इजाफा करने की तैयारी कर सकता है। यह इजाफा 21-22 मार्च को फेडरल ओपन मार्केट कमेटी की बैठक में किया जा सकता है।
इसका अर्थ यह है कि वित्तीय बाजारों में नीतिगत वजहों से उत्पन्न अस्थिरता जारी रह सकती है। फेड ने 1 फरवरी को अपनी पिछली बैठक के बाद दरों में इजाफे की दर घटाकर 25 आधार अंक कर दी। दिसंबर 2022 में यह 50 आधार अंक और उससे पहले की बैठकों में 75 आधार अंक थी।
इससे फेडरल फंड की दर 4.50 से 4.75 फीसदी के दायरे में आ गई जबकि इस चक्र के आरंभ में वह शून्य पर थी। फेड के दिसंबर अनुमान बताते हैं कि फेडरल फंड की दरें 2023 में 5.1 फीसदी के उच्चतम स्तर पर होंगी।
बहरहाल, अब ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त अनुमानों पर नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता है। वित्तीय बाजारों का बड़ा हिस्सा अब यह अपेक्षा करता है कि फेड मार्च में फेडरल फंड की दरों में 50 आधार अंक का इजाफा करेगा। पॉवेल ने अपनी टिप्पणी में कहा कि यह देखते हुए कि हालिया आर्थिक नतीजे अनुमान से बेहतर हैं, ब्याज दरों का स्तर भी पहले लगाए गए अनुमानों से अधिक रह सकता है। उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ने पर फेड दरों में इजाफे की गति भी बढ़ाएगा।
अमेरिका में बेरोजगारी दर 3.4 फीसदी है जो 53 वर्षों का निचला स्तर है। आर्थिक गतिविधियां साफतौर पर अपेक्षा से अधिक मजबूत रही हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने जनवरी में वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को लेकर जो अपडेट जारी किया है उसमें 2023 में अमेरिका के वृद्धि अनुमानों को सितंबर के अनुमान की तुलना में 40 आधार अंक बढ़ा दिया है।
अगर ब्याज दरें लंबे समय तक अनुमान से अधिक रहीं तो इसका वित्तीय बाजारों पर असर पड़ता है। पॉवेल की टिप्पणी के बाद शेयर और बॉन्ड दोनों में गिरावट आई। दो वर्ष के सरकारी अमेरिकी बॉन्ड पर प्रतिफल करीब 5 फीसदी घट गई। वैश्विक मुद्रा बाजारों में भी फेड द्वारा इजाफा कम किए जाने के बाद स्थिरता आ गई थी। परंतु अब दोबारा अस्थिरता बढ़ सकती है। इससे उन विकासशील देशों पर दबाव बढ़ सकता है जहां विदेशी कर्ज का स्तर अधिक है।
भारतीय रुपये पर भी आंशिक रूप से दबाव बढ़ सकता है। वर्ष 2022 में करीब 19 अरब डॉलर मूल्य की भारतीय परिसंपत्तियों की बिक्री के बाद विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक 2023 में भी अब तक विशुद्ध बिकवाली करने वाले बने हुए हैं।
हालांकि चालू खाते का घाटा आने वाली तिमाहियों में कम होने का अनुमान है, लेकिन विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की बिकवाली के साथ कम प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के कारण भुगतान संतुलन का दबाव उत्पन्न हो सकता है। इसके अलावा भारत निरंतर मुद्रास्फीति के दबाव का भी सामना कर रहा है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति जनवरी में एक बार फिर रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित दायरे से ऊपर चली गई जिससे नीतिगत अनिश्चितता बढ़ी है। यह संभव है कि अमेरिका की तरह भारत में नीतिगत दर पहले लगाए गए अनुमानों से अधिक हो।
अमेरिका में ऊंची ब्याज दर के कारण रुपये पर नया दबाव बना है जो मुद्रास्फीति के नतीजों को प्रभावित कर सकता है। व्यापक स्तर पर यह देखना महत्त्वपूर्ण होगा कि फेड आगे हालात से किस प्रकार निपटता है। 6.4 फीसदी मुद्रास्फीति के साथ मध्यम अवधि में 2 फीसदी का लक्ष्य हासिल करने के लिए लंबा सफर तय करना है।