भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों (एएमसी) के अनुपालन का बोझ कम करने के लिए केवल म्युचुअल फंड और एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) की पेशकश का जो प्रस्ताव रखा है वह एक व्यावहारिक निर्णय तो है ही, साथ ही इस श्रेणी के विस्तार के क्षेत्र में भी वह बड़ा बदलाव लाने वाला साबित हो सकता है।
सेबी ने कहा है कि ये ‘एमएफ लाइट’ नियमन इसी वित्त वर्ष के दौरान जारी कर दिए जाएंगे तथा ये पैसिव फंड यानी लंबे समय के लिए किए जाने वाले निवेश मुहैया कराने वालों पर अनुपालन का बोझ कम करेंगे। तब यह बोझ मौजूदा स्तर के दसवें स्तर के बराबर रह जाएगा।
सक्रिय रूप से विविधतापूर्ण योजनाओं की पेशकश करने वाली एएमसी से एक स्पष्ट और महत्त्वपूर्ण नियामकीय अंतर भी है। सक्रिय फंड के सख्त नियमन की आवश्यकता होती है क्योंकि उनका कई तरह से दुरुपयोग हो सकता है। लेकिन पैसिव फंड के प्रबंधकों के पास अपनी स्थिति का दुरुपयोग करने की अधिक गुंजाइश नहीं होती। एक पैसिव फंड या ईटीएफ कुछ मानकों का अनुकरण करने वाला होता है। वह एक शेयर सूचकांक पर नजर रख सकता है या सोने अथवा चांदी जैसे जिंस या फिर सरकारी ट्रेजरी प्रपत्रों पर नजर रख सकता है।
प्रबंधकों के लिए विवेकाधिकार की कोई गुंजाइश नहीं रहती। उनका काम है उल्लिखित परिसंपत्ति पर करीबी नजर रखना और यह कोशिश करना कि इस दौरान उस संपत्ति के प्रतिफल की तुलना में उसकी निगरानी में न्यूनतम चूक हो। अन्य प्रमुख मानक यह है कि व्यय अनुपात कम हो।
अधिकांश सूचकांक फंडों में व्यय मानक करीब 20 आधार अंकों के आसपास है। ऐसे फंडों के लिए नियमन साधारण हो सकता है और उसे यह सुनिश्चित करने के लिए तैयार किया जा सकता है कि वे अपने लिए तय आदेश पर टिके रहें तथा धोखाधड़ी में शामिल न हों।
पैसिव फंडों की बात करें तो बीते कुछ वर्षों में उनके ब्याज में तेजी देखने को मिली है लेकिन अभी भी विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में उनकी पहुंच कम है। ईटीएफ और इंडेक्स फंड की बात करें तो बीते तीन वर्षों में प्रबंधनाधीन परिसंपत्ति यानी एयूएम के अंतर्गत उनमें 340 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली है। लेकिन इंडेक्स फंड का समेकित एयूएम करीब 6.72 लाख करोड़ रुपये का है जो कुल एयूएम का लगभग 17 फीसदी है। तेज वृद्धि के बावजूद कुल आकार और पहुंच कम है।
उदाहरण के लिए अमेरिका में कुल एयूएम का करीब 43 फीसदी पैसिव उपकरणों में है। जापान में यह 60 फीसदी से अधिक और यूरोपीय संघ के बड़े बाजारों में यह 25 फीसदी से अधिक है। लंबी अवधि के निवेशकों के लिए पैसिव होने की तमाम वजह हैं। इंडेक्स उपकरण सस्ते हैं।
व्यापक शेयर सूचकांक लंबी अवधि में हर पारंपरिक परिसंपत्ति वर्ग मसलन डेट, अचल संपत्ति आदि पर भारी हैं। इसके अलावा कुछ ही सक्रिय फंड ऐसे हैं जो मानक शेयर या डेट सूचकांकों से बेहतर प्रदर्शन कर पा रहे हैं। निश्चित रूप से सक्षम बाजार की परिकल्पना यह संकेत देती है कि एक सक्रिय कारोबारी के लिए निरंतर एक ऐसे संपूर्ण बाजार को पीछे छोड़ना असंभव है जहां सूचनाएं निरंतर हर किसी के पास पहुंच रही हों और हर कोई समान तेजी और किफायत से कारोबार कर पाता हो।
हालांकि कोई बाजार पूर्ण नहीं होता लेकिन बाजार जितना सक्षम होगा सूचकांकों को पीछे छोड़ पाना उतना ही मुश्किल होता है। विकसित दुनिया में इसे नियामकीय खुलासों के उच्च मानकों के साथ देखा जा सकता है। भारत में भी, जो अपेक्षाकृत कम सक्षम बाजार है, बहुत कम सक्रिय फंड अपने मानक सूचकांकों को पीछे छोड़ पाते हैं।
नियामक ने पहले ही म्युचुअल फंड उद्योग में नए कारोबारियों के प्रवेश मानक को शिथिल कर दिया है। अगर वह पैसिव फंड संभालने वाली एएमसी के अनुपालन के बोझ को कम कर देता है तो इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और नवाचार बढ़ेगा।