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Budget 2024: भाजपा को ‘बेस’ पसंद है, समझिए इस फॉर्मूले का मतलब

बजट में किसी चीज की कमी है, तो वह है आर्थिक संदेश। इसमें सुधारों को लेकर कोई विस्तृत बयान नहीं है, निजीकरण, विनिवेश, बड़ी कर कटौती, प्रोत्साहन आदि का भी कोई उल्लेख नहीं है।

Last Updated- July 25, 2024 | 9:42 PM IST
भाजपा को ‘बेस’ पसंद है, समझिए इस फॉर्मूले का मतलब, Union Budget 2024: BJP back to BASE

समझ की दृष्टि से सरलता के लिए तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संक्षिप्त अक्षरों के प्रति लगाव से संकेत ग्रहण करते हुए हम इस बजट को ‘बेस’ प्रभाव वाला बजट कह सकते हैं। या फिर सलमान खान की फिल्म सुल्तान के एक गाने से प्रेरणा लेते हुए कहा जा सकता है कि ‘भाजपा को बेस पसंद है’। यहां बेस से तात्पर्य है बिहार, आंध्र प्रदेश, सोशलिज्म (समाजवाद) और एंप्लॉयमेंट (रोजगार)। इससे पहले कि हम 2024 के बजट के राजनीतिक संदेश की गहराई में जाएं, हमें इस बात को समझना होगा कि राजनीति को कभी अर्थव्यवस्था से अलग नहीं किया जा सकता है।

बजट के विभिन्न वित्तीय, राजकोषीय और कराधान संबंधी पहलुओं पर काफी कुछ लिखा और पढ़ा जा चुका है। यह पूरे वर्ष में सरकार द्वारा दिया जाने वाला सबसे अहम राजनीतिक वक्तव्य होता है। यह राजनीतिक अर्थव्यवस्था के बारे में अपनी बात ही नहीं कहता है बल्कि यह भी दिखाता है कि सरकार किस दिशा में जा रही है और वह कहां से आ रही है। इस वर्ष के बजट में दूसरी वाली बात कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण को दोबारा सुनिए। पहले 25 मिनट के दौरान उन्होंने केवल आंध्र प्रदेश और बिहार की बात की है। अगर आपको लगता है कि यह समय बहुत ज्यादा है (पूरे बजट भाषण का करीब एक चौथाई समय दो राज्यों पर केंद्रित रहा) तो आप राजनीतिक संदेश की अनदेखी कर रहे हैं। मोदी सरकार ने अब तक जो दस बजट पेश किए हैं वे भाजपा के बजट थे। यह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का पहला बजट है।

यही वजह है कि केवल इन दो राज्यों को इतना अधिक धन आवंटन किया गया है जबकि इनकी आबादी देश की कुल आबादी के 15 फीसदी से भी कम है। दोनों राज्यों का अतीत में विभाजन हो चुका है जिससे उनके आकर्षक हिस्से अलग हो गए और दोनों विशेष राज्य का दर्जा मांग रहे थे। किसी ने उनकी नहीं सुनी। परंतु अब इन राज्यों की 18 सीट (तेलुगू देशम की 16 और जनता दल यूनाइटेड की 12) के बिना राजग सरकार अल्पमत में होगी।

इन 25 मिनट और हजारों करोड़ रुपयों के वादों के अलावा भी कई महत्त्वपूर्ण वादे किए गए जिनमें मेडिकल कॉलेज, एयरपोर्ट, एक्सप्रेसवे और आंध्र प्रदेश के पोलावरम में स्थित करीब-करीब रद्द मेगा हाइड्रो प्रोजेक्ट शामिल है। यानी पहला राजनीतिक वक्तव्य है आत्मस्वीकार: पहले के दो अवसरों की तरह इस बार गठबंधन सरकार है। हमने जिस ‘बेस’ का जिक्र किया है उसका बी और ए यही दोनों राज्य हैं।

अगर इस बजट में कोई कमी है तो वह है आर्थिक संदेश की। सुधारों को लेकर कोई व्यापक संदेश नहीं है, निजीकरण, विनिवेश का जिक्र नहीं, बड़ी कर कटौती नहीं, प्रोत्साहन या विनियमन का उल्लेख नहीं है। राजकोषीय अनुशासन के अलावा ऐंजल टैक्स समाप्त करने का सुधारवादी कदम उठाया गया है।

हालांकि यह संभवत: बीते दो दशक का इकलौता ऐसा बजट है जिसमें सरकार द्वारा कारोबार में अपनी भूमिका कम करने का उल्लेख नहीं है। इसकी तुलना मोदी सरकार के उस वक्तव्य से कीजिए जब महामारी के बीच सुधारों के बीच कहा गया था कि सरकार कुछ सामरिक क्षेत्रों के अलावा हर कारोबार से बाहर रहेगी। अब वह विचार भुला दिया गया है।

प्राप्तियों के विभिन्न स्तंभों से इतर हमें विनिवेश के बारे में 50,000 करोड़ रुपये के लक्ष्य का जिक्र मिलता है। साल दर साल मोदी सरकार विनिवेश लक्ष्य हासिल करने में पिछड़ती रही है। 2014 से अब तक इकलौता उल्लेखनीय निजीकरण एयर इंडिया का हुआ है। जबकि सरकार ने रिजर्व बैंक और सरकारी उपक्रमों से लाभांश के रूप में 2.9 लाख करोड़ रुपये मिलने का बजट अनुमान पेश किया है।

यह सरकार निजी क्षेत्र को लोगों को रोजगार देने के लिए लाखों करोड़ रुपयों का प्रोत्साहन दे रही है। ऐसा विभिन्न सब्सिडी और प्रोत्साहनों के जरिये किया जा रहा है। यह प्रक्रिया अपने आप में इतनी जटिल है कि इसके लिए दिल्ली में एक और ‘भवन’ के निर्माण को उचित ठहराया जा सकता है। निजी क्षेत्र के रोजगार निर्माण में यह सरकार का सबसे बड़ा हस्तक्षेप है।

वास्तव में क्या निजी कारोबारी केवल इसलिए किसी को रोजगार देते हैं कि सरकार उसकी लागत का कुछ हिस्सा वहन करेगी? कारोबार तब लोगों को काम पर रखते हैं जब उन्हें मुनाफा और वृद्धि नजर आती है। एक मुक्त बाजार और सुधारवादी अर्थव्यवस्था में सरकार अधोसंरचना, विनियमन तथा करों में कमी आदि की मदद से कारोबारों की सहायता करती है। यह एक किस्म की समाजवादी राज्य की अवधारणा है कि वह रोजगार के लिए प्रोत्साहन देकर लोगों को काम दिला सकती है।

हम आज के इस विश्लेषण की शुरुआत समाजवाद के ‘स’ से भी कर सकते थे। इस बजट का सबसे प्रमुख राजनीतिक संदेश यही है। आयकर दाताओं के निचले स्लैब के करदाताओं को सालाना 17,500 रुपये की मामूली राहत दी जाएगी। परंतु यूरोपीय शैली में अमीरों से अधिक कर वसूली की जा रही है। पूंजीगत लाभ कर में हर स्तर पर इजाफा किया गया है। इसको 10 फीसदी से बढ़ाकर 12.5 फीसदी कर दिया गया है। अल्पावधि के पूंजीगत लाभ कर को 15 फीसदी से बढ़ाकर 20 से 33 फीसदी तक किया गया है। संपत्ति पर होने वाले लाभ से इंडेक्सेशन को समाप्त कर दिया गया है। इसे अतीत की तिथि से लागू करना भी यूरोपीय शैली के समाजवादी कराधान का नमूना है।

इसमें सरकार समर्थित इंटर्नशिप योजना और नियोक्ताओं को प्रोत्साहन देने की योजना (ये दोनों हमें कांग्रेस के समाजवादी घोषणापत्र में नजर आई थीं) को शामिल कर दें तो यह आसानी से कहा जा सकता है कि 11वें वर्ष में भाजपा ने हमारा सामना वापस एक कड़वे सच से करा दिया है। वह यह कि हमारी राजनीति में अन्य वैचारिक दलीलें चाहे जो हों, समाजवाद हमारा राष्ट्रीय द्विपक्षीय आर्थिक विचार है।

एक समय इस बात का बड़ा हल्ला था कि अगर भाजपा सत्ता में बड़े बहुमत से वापस आई तो यह संविधान की प्रस्तावना में आपातकाल के दौरान शामिल ‘पंथ निरपेक्ष और समाजवादी’ शब्द को जरूर हटाएगी। अब आप निश्चिंत होकर कह सकते हैं कि ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है। यह बजट साबित करता है कि भाजपा स्वीकार करती है कि समाजवाद ही हमारे बेस का तीसरा अक्षर यानी ‘एस’ है।

रोजगार के नाम पर जितना धन देने की बात कही गई है वह भी बताता है कि यह उस राजनीतिक नेतृत्व का वक्तव्य है जिसने यह दिखाने में बहुत अधिक समय लगा दिया कि वह चुनाव में बहुमत से पीछे क्यों रह गया। यही वजह है कि बजट में भविष्य को लेकर उतनी खुशनुमा बातें नहीं की गई हैं। भाजपा का थिंक टैंक अभी भी यह सोचने में व्यस्त है कि गलती कहां हुई। ऐसा इसलिए ताकि आगे और नुकसान न हो। इतिहास की अन्य सरकारों की तरह इसने भी चुनौती सामने आने पर समाजवाद का रास्ता अपनाया है।

पुनश्च: ‘बेस’ का विचार दिप्रिंट के डिप्टी एडिटर (अर्थशास्त्र) टी.सी.ए. शरद राघवन ने दिया था। मैंने खुशी-खुशी उनसे यह उधार ले लिया।

First Published - July 25, 2024 | 9:42 PM IST

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