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Budget 2024: आत्मविश्वास से लबरेज सरकार की आकलन रिपोर्ट

मौजूदा अनुमानों पर भरोसा करें तो रियल जीडीपी बढ़त 6.5-7.2 फीसदी तक हो सकती है, इसमें जीडीपी अपस्फीतिकारी (डिफ्लेटर) महंगाई तीन फीसदी से ज्यादा मानी गई है।

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आर कविता राव   
Last Updated- February 01, 2024 | 10:34 PM IST

चुनावी साल में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2024-25 का अंतरिम बजट पेश किया है। बजट भाषण में उन्होंने पिछले 10 साल की उपलब्धियों का सार प्रस्तुत किया और आम चुनाव के बाद सरकार की वापसी तय मानते हुए ऐसी कई व्यापक घोषणाएं कीं जिन पर आने वाले समय में सरकार को काम करना है।

बजट भाषण में कोई महत्त्वपूर्ण घोषणा सुनने को नहीं मिली जो दर्शाता है कि सरकार आत्मविश्वास से भरी हुई है और सत्ताधारी दल को वापसी की पूरी उम्मीद है। बजट की दो घोषणाएं यह बताती हैं कि सरकार राजकोषीय मजबूती के रास्ते पर आगे बढ़ रही है।

बजट में वित्त वर्ष 2024-25 में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5.1 फीसदी के स्तर पर रहने की बात की गई है और पिछले वर्षों की कम राशियों की कर देनदारी को माफ कर प्रत्यक्ष कर में होने वाली मुकदमेबाजी को खत्म करने की कोशिश की गई है।

बजट का गणित और राजकोषीय जिम्मेदारी

सरकार राजकोषीय जवाबदेही के लिए प्रतिबद्धता पर कायम दिख रही है। साल 2023-24 में नॉमिनल जीडीपी में कम वृदि्ध के बावजूद संशोधित अनुमानों से पता चलता है कि राजकोषीय घाटा बजट अनुमान से थोड़ा कम 5.8 फीसदी पर रहेगा।

आंकड़ों के बजट अनुमान से बेहतर रहने की वजह यह है कि राजस्व प्राप्तियां बढ़कर 71,232 करोड़ रुपये रहीं और पूंजीगत व्यय घटकर 59,412 करोड़ रुपये ही रहा। इसके चलते सरकार राजस्व व्यय को मामूली बढ़ाकर 40,000 करोड़ रुपये कर सकी और राजकोषीय घाटे में भी कमी आई।

2024-25 के बजट अनुमानों पर नजर डालें तो जीडीपी के फीसदी में राजकोषीय घाटे में प्रस्तावित कमी इस वजह से होगी क्योंकि कर राजस्व में 11.94 फीसदी और गैर कर राजस्व में छह फीसदी की मजबूत बढ़त का अनुमान है।

राजस्व खर्च में बढ़त के तीन फीसदी के दायरे में रहने और पूंजीगत व्यय में 16.9 फीसदी की बढ़त के प्रस्ताव से लगता है कि राजकोषीय घाटे में करीब 50,000 करोड़ रुपये की कमी आएगी। इन लक्ष्यों को हासिल करने में कर राजस्व संग्रह का प्रदर्शन अहम होगा।

बजट को समझने के लिए दो अहम बिंदुओं का परीक्षण करना होगा

पहला अंतर्निहित वृदि्ध अनुमानों की विश्वसनीयता को समझना और दूसरा, टैक्स बॉइअन्सी यानी कर में तेजी के अनुमानों को समझना। बजट अनुमानों में अंतर्निहित नॉमिनल जीडीपी आंकड़े बताते हैं कि वृदि्ध 10.5 फीसदी होगी। मौजूदा अनुमानों पर भरोसा करें तो रियल जीडीपी बढ़त 6.5-7.2 फीसदी तक हो सकती है, इसमें जीडीपी अपस्फीतिकारी (डिफ्लेटर) महंगाई तीन फीसदी से ज्यादा मानी गई है।

वर्ष 2023-24 की जीडीपी के अग्रिम आंकड़े बताते हैं कि अपस्फीतिकारक महंगाई 1.6 फीसदी रहेगी। अपस्फीति का एक कारक अंतरराष्ट्रीय जिंस कीमतें हैं जिनके साल 2024 में गिरने का अनुमान है। बजट के गणित के लिए जीडीपी अपस्फीतिकारक का महत्त्व इस बात को रेखांकित करता है कि बजट के आंकड़ों के ज्यादा प्रभावी अनुमान के लिए अपस्फीतिकारक का गहराई से विश्लेषण करना होगा।

जीडीपी अपस्फीतिकारक और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के बीच प्रवृत्ति में विचलन को देखते हुए यह मसला अहम हो जाता है, खासकर ऐसी महंगाई को लक्षित करने में जिसमें सीपीआई पर जोर हो। इसलिए बजट तैयार करने के संदर्भ में दोनों के लिए मुद्रास्फीति के समान स्तर को मानने का विचार गुमराह करने वाला हो सकता है।

कर में तेजी के अनुमानों पर बात करें तो बजट के गणित से ऐसा लगता है कि निगमित कर (कॉर्पोरेशन कर), आयकर और वस्तु एवं सेवा कर से हासिल राजस्व में अच्छी बढ़त होगी। इन मद में करीब 13 फीसदी की बढ़त होने का अनुमान लगाया है, जबकि सीमा शुल्क और केंद्र सरकार के उत्पाद शुल्क संग्रह में 5-6 फीसदी की बढ़त का अनुमान है। अगर नॉमिनल जीडीपी में बढ़त 10.5 फीसदी मानें तो राजस्व के आंकड़े कर में तेजी 1.25 तक ले जाते हैं।

कोविड महामारी के बाद के दौर में इन करों के संग्रह में तेजी से सुधार हुआ है। साल 2023-24 में दिसंबर 2023 तक निगमित कर के संग्रह में सालाना आधार पर 18 फीसदी, आयकर में 28 फीसदी और केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर संग्रह में 13 फीसदी की बढ़त हुई। सवाल यह है कि तुलनात्मक रूप से नॉमिनल जीडीपी में कम बढ़त के बावजूद राजस्व में तेज बढ़त क्या आर्थिक गतिविधियों में विस्तार की वजह से है या अनुपालन में सुधार और प्रशासनिक दखलों की वजह से?

अगर पहली वजह है तो कर में तेजी के अनुमान की बुनियाद मजबूत है, लेकिन वजह अगर दूसरी है तो संभव है कि इन सुधारों की वजह से आगे चलकर कर संग्रह की रफ्तार थोड़ी कम हो जाए।

बजट के अहम ऐलान

बजट में राजकोषीय परिमाण से जुड़ी घोषणाएं कम ही हैं। ऐसी दो घोषणाएं अनुसंधान एवं विकास तथा कर विवादों से संबद्ध हैं। पहली घोषणा में वायदा किया गया है कि एक लाख करोड़ रुपये का एक फंड तैयार कर शून्य ब्याज या बिना ब्याज के कर्ज दिया जाएगा ताकि ‘उभरते क्षेत्रों में अनुसंधान और नवाचार’ बढ़े।

भारत निकट भविष्य में ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने और आगे चलकर एक विकसित देश बनने का लक्ष्य रखता है। इसे देखते हुए अनुसंधान, नवाचार और तकनीक क्षेत्र में विस्तार करना देश के लिए अहम होगा ताकि मूल्य श्रृंखला आगे बढ़े और बौदि्धक संपदा के स्वामित्व का फायदा मिले।

इस पर नए सिरे से जोर देना स्वागतयोग कदम है, यह पहले घोषित कई पहलों के भरोसे होगा जैसे कि वर्ष 2021-22 के बजट में की गई राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन और साल 2023-24 के बजट में घोषित नवाचार के सहयोग के लिए कई क्षेत्र विशिष्ट कार्यक्रम।

एक अन्य अहम ऐलान है, विवादों को खत्म करने के लिए प्रत्यक्ष कर माफी का। इसके तहत अगर विवाद साल 2014-15 से पहले के हैं और बहुत कम मूल्य के हैं-जैसे कि 2019-20 से पहले के 25,000 रुपये से कम की देनदारी और 2010-11 से 2014-15 के बीच 10,000 रुपये से कम की देनदारी। दस साल पहले के विवाद या बिना विवाद के, लेकिन वसूली न जा सकी कुल कर देनदारी करीब 1.63 लाख करोड़ रुपये की है।

बहरहाल, प्रस्तावित माफी से करीब 15,000-20,000 करोड़ रुपये की देनदारी ही कम होगी, यानी बिना वसूले रह गए प्रत्यक्ष कर में ज्यादा बदलाव नहीं आएगा। यद्यपि इस प्रस्ताव से उन मामलों की सफाई का रास्ता निकलेगा जिनमें आमदनी अठन्नी खर्च रुपैया का मामला है। यह देश में विवेकपूर्ण कर प्रशासन के निर्माण की दिशा में एक सही कदम होगा।

(लेखिका राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान, एनआईपीएफपी, की निदेशिका हैं)

First Published : February 1, 2024 | 10:34 PM IST