केंद्रीय बजट में 2023-24 के लिए कृषि के वास्ते जिस पैकेज का प्रस्ताव किया गया है उसका लक्ष्य प्रमुख तौर पर उन कार्यक्रमों और संस्थानों को आगे बढ़ाने का है जो इस क्षेत्र को वृद्धि प्रदान करने वाले संभावित कारकों की भूमिका निभा सकते हैं।
लक्ष्य यह है कि कृषि उत्पादन में इजाफा किया जाए और साथ ही किसानों की आय में बढ़ोतरी की जाए ताकि ग्रामीण इलाकों में बढ़ते असंतोष को कम किया जा सके।
परंतु इन गतिविधियों के लिए संसाधनों का आवंटन पर्याप्त है या नहीं यह एक खुला प्रश्न है। ऐसा इसलिए कि इस क्षेत्र के लिए कुल बजट में मामूली इजाफा किया गया है और इसमें पीएम-किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों को चुकाई गई राशि (तीन किस्तों में सालाना 6,000 रुपये) शामिल है।
इसके अलावा जहां तकनीक आधारित वृद्धि पर उचित ही जोर दिया गया है लेकिन कृषि शोध एवं विकास में प्रस्तावित निवेश कृषि क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद (एग्रीजीडीपी) के 0.5 फीसदी से भी कम है। इस क्षेत्र में निवेश का वैश्विक मानक एक से दो फीसदी है।
बहरहाल, कृषि से जुड़े हुए क्षेत्रों को प्राथमिकता दी गई है, खासतौर पर पशुपालन और मछलीपालन आदि को तवज्जो दी गई है जो छोटे और सीमांत किसानों के लिए कृषि आय के पूरक का काम करते हैं।
बजट में प्रस्तुत की गई तीन सबसे उल्लेखनीय पहल हैं एग्रीकल्चर एक्सिलरेटर फंड, कृषि से जुड़ी सूचनाओं और सेवाओं के लिए समावेशी डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण और कृषि उत्पादों के लिए विकेंद्रीकृत वेयरहाउसिंग क्षमता का विकास।
अन्य अहम कदमों में शामिल हैं उच्च मूल्य वाली बागवानी उपज के अच्छी गुणवत्ता के बीजों के उत्पादन को प्रोत्साहन देना, लंबे रेशे वाले कपास की खेती को बढ़ावा और प्राथमिक सहकारी समितियों तथा स्वयं सहायता समूह जैसे जमीनी ग्रामीण संस्थानों में सुधार को गति देना।
इसके अलावा उसने संस्थागत कृषि ऋण वितरण के लक्ष्य को 20 लाख करोड़ रुपये कर दिया है। इसमें भी डेरी और मछलीपालन पर ध्यान देने की बात शामिल है। जिस एग्रीकल्चर एक्सिलरेटर फंड की योजना बनाई गई है उसका लक्ष्य है उन कृषि स्टार्टअप और कृषि उत्पादक संगठनों (एफपीओ) को बढ़ावा देना जो आधुनिक कृषि तकनीक को बढ़ावा देने में लगे हैं और किसानों की समस्याओं का किफायती हल प्रदान करते हैं।
वहीं दूसरी ओर प्रस्तावित डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी अधोसंरचना की परिकल्पना एक ऐसे खुले सार्वजनिक मंच के रूप में की गई है जो फसल की योजना, फसल स्वास्थ्य, कृषि क्षेत्र के कच्चे माल, सहायक सेवाओं, ऋण, बीमा, बाजार की जानकारी तथा अन्य कई चीजों के लिए सेवाएं प्रदान करे।
यह पोर्टल फसल उत्पादन के भी विश्वसनीय अनुमान लगाएगा। किसानों के अलावा इस सुविधा तक कृषि क्षेत्र के अन्य अंशधारकों की भी पहुंच होगी। कृषि जिंसों के लिए व्यापक विकेंद्रीकृत भंडारण क्षमता बनाने की योजना भी एक सुविचारित कदम है जो फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम कर सकता है। फिलहाल मोटे अनाजों और दालों में यह छह फीसदी और फलों तथा सब्जियों में 15 फीसदी से अधिक है।
जिंस विशेष के लिए तथा तापमान और आर्द्रता नियंत्रित भंडारगृहों को उत्पादन केंद्रों के करीब तैयार करने से किसानों को अपनी फसल की बेहतर कीमत मिलेगी क्योंकि वे बाजार में उपज को देर से पहुंचाने में भी सक्षम होंगे।
वेयरहाउसिंग की रसीदों को पहले ही बैंक ऋण लेने के लिए नकदी के समान मान्य कर दिया गया है। प्राथमिक स्तर के सहकारी ढांचे में सुधार भी जरूरी है और इससे भी कई लाभ हो सकते हैं। फिलहाल बड़ी संख्या में सहकारी समितियां, जिनमें एक से अधिक राज्यों में काम करने वाली समितियां शामिल हैं, उनकी स्थिति ठीक नहीं है।
कंप्यूटरीकरण उनके रोजमर्रा के काम को पारदर्शी और प्रभावी बनाएगा। बहरहाल, 2,516 करोड़ रुपये का प्रस्तावित निवेश 63,000 ऐसी सोसाइटियों की जरूरतों के हिसाब से बहुत कम है। अगर सहकार से समृद्धि तक के लक्ष्य को हकीकत में बदलना है तो इस पर दोबारा विचार करना होगा।