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एसडब्ल्यूएफ का खौफ!

Last Updated- December 05, 2022 | 4:36 PM IST


भारत में सोवरेन वेल्थ फंड (एसडब्लूएफ) की पहचान करने, इस बाबत निवेश की गई रकम का पता लगाने और इससे निपटने के उपाय सुझाने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय ने वित्त मंत्रालय को निर्देश जारी किया है।


 


इस पहल पर शायद शुध्दतावादियों को ऐतराज हो सकता है। इस बारे में एक राय यह है कि अगर ज्यादातर सेक्टरों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और पोर्टफोलियो निवेश की मंजूरी है तो फिर एसडब्ल्यूएफ को भी वैसा ही निवेशक क्यों नहीं माना जाए। यहां यह बात गौर करने लायक है टेमासेक ने भारत में अच्छाखासा निवेश कर रखा है और यह बुनियादी तौर पर एसडब्लयूएफ की कैटिगरी में आता है।


 


इसके मद्देनजर इसी कैटिगरी में अन्य वित्तीय संस्थाओं के लिए मानदंड अलग कैसे हो सकते हैं? साथ ही यह भी दलील दी जा रही है कि वर्तमान वैश्विक आर्थिक संकट में एसडब्ल्यूएफ एक अच्छे कॉरपोरेट नागरिक साबित हो रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक, दुनियाभर के बैंकों में इन फंडों का कुल निवेश 40 अरब डॉलर (तकरीबन 1,600 अरब रुपये) है।


 


 अगर इस बात पर यकीन किया जाए तो इतनी भारी रकम का बाजार से निकलना काफी मुश्किल है और यह प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से बाजार में अपनी जगह बना ही लेगा। हालांकि यह बात जितनी सही है, उतना ही सही यह भी है कि दुनिया के बाजारों का वास्ता एसडब्ल्यूएफ से पहले कभी नहीं हुआ।


 


इसके मद्देनजर इस फंड के कायदकानून के बारे में पड़ताल की जरूरत भी बहुत स्वाभाविक है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुमानों के मुताबिक, एसडब्ल्यूएफ के अगले 5 साल मे 3 गुना बढ़कर 6 से 10 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है।


 


 इसके मद्देनजर सरकार की इस फंड की पड़ताल की चिंता स्वाभाविक है, खासकर जब ये फंड चीन और तेल समृध्द पश्चिम एशियाई देशों से आ रहे हों, जहां निवेश का इतिहास सरकार के नियंत्रण से अलग नहीं रहा है। हालांकि भारत पहला ऐसा मुल्क नहीं है, जिसने एसडब्ल्यूएफ पर चिंता जताई है, क्योंकि इन फंडों के जरिए ये मुल्क (जहां से ये फंड आ रहे हैं) अपनी सरकारी नीतियों को यहां घुसेड़ने की कोशिश कर सकते हैं।


 


मिसाल के लिए अगर चीन का एसडब्ल्यूएफ किसी भारतीय टेलिकॉम फर्म में निर्णायक हिस्सेदारी प्राप्त कर लेता है, तो जाहिर है कि भारत सरकार के लिए यह चिंता का विषय है। दरअसल किसी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय निवेशक की किसी फर्म में हिस्सेदारी एक बात है और ऐसे फर्मों में अगर वहां की सरकार का नियंत्रण हो तो इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।


 


अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को ऐसे फंडों के लिए आचार संहिता बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। पिछले साल अक्टूबर से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष इस बाबत एहतियाती उपाय बरतने के लिए विभिन्न देशों से सलाहमशवरा करने में जुटा है।

 इस महीने के आखिरी में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अधिकारी इस फंड के कार्यक्रमों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। भारत को इस पर होने वाली चर्चा में भाग लेना चाहिए, ताकि भारतीय चिंताओं को दुनिया के अन्य मुल्कों से भी अवगत कराया जा सके।

First Published - March 17, 2008 | 3:40 PM IST

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