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100 संकेतकों के आधार पर वृद्धि की पड़ताल

यह सही है कि अर्थव्यवस्था का एक कमतर अनुपात एक तिमाही पहले की तुलना में सकारात्मक ढंग से बढ़ रहा है लेकिन वृद्धि भी अधिक व्यापक होती जा रही है। बता रही हैं प्रांजुल भंडारी

Last Updated- November 25, 2024 | 9:49 PM IST
Analysis of growth based on 100 indicators 100 संकेतकों के आधार पर वृद्धि की पड़ताल

शेयर बाजार में जबरदस्त उछाल और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में उल्लेखनीय वृद्धि के बाद हालात अपेक्षाकृत शांत नजर आ रहे हैं। हाल के दिनों में सामने आए आंकड़े मिलाजुला संदेश दे रहे हैं- कुछ सकारात्मक और कुछ नकारात्मक। कुछ में सुधार होता नजर आता है और कुछ में गिरावट। इस बीच सभी आंकड़ों में श्रेष्ठ यानी जीडीपी वृद्धि के आंकड़ों की अपनी जटिलताएं हैं। इसकी बात करें तो सही मूल्य अपस्फीति और सरकारी सब्सिडी में उतार-चढ़ाव को लेकर इस पर भी सवाल होते हैं। इन बातों के चलते देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि के बारे में सही आंकड़े हासिल कर पाना मुश्किल होता है।

हम इस दिक्कत को दूर करने के लिए कोशिश करते हैं कि उन सभी क्षेत्रों को शामिल किया जाए जिनके आंकड़े विश्वसनीय हैं और जल्दी तथा मासिक तौर पर उपलब्ध हैं। हम वृद्धि के 100 संकेतकों को एक साथ लाते हैं और उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन (कृषि, उद्योग और सेवा), तथा व्यय (खपत, निवेश और निर्यात) के स्तर पर परखते हैं। हम सावधानीपूर्वक हर संकेतक की तिमाही गति का आकलन करते हैं ताकि ताजा रुझानों के बारे में जान सकें। उपलब्ध व्यापक आंकड़ों को देखते हुए इनसे वृद्धि के रुझानों की एक व्यापक तस्वीर सामने आनी चाहिए।

हम हर क्षेत्र को जीडीपी में उसकी हिस्सेदारी के अनुसार आंकते हैं ताकि यह अनुमान लगाया जा सके कि अर्थव्यवस्था का कितना भाग या अर्थव्यवस्था में क्षेत्र विशेष का कितना भाग तेजी से विकसित हो रहा है। साथ ही यह भी कि अर्थव्यवस्था का कितना हिस्सा या कौन सा क्षेत्र धीमी गति से विकसित हो रहा है।

हम पाते हैं कि अर्थव्यवस्था का 55 फीसदी हिस्सा तेजी से विकसित हो रहा है जबकि 45 फीसदी का विस्तार नहीं हो रहा है। एक तिमाही पहले करीब 65 फीसदी अर्थव्यवस्था विकसित हो रही थी। अब उसके 55 फीसदी हो जाने ने रुझानों पर असर डाला है।

क्षेत्रवार आधार पर देखें तो कुछ का प्रदर्शन पिछली तिमाहियों की तुलना में बेहतर रहा है। कृषि क्षेत्र लू और उतार-चढ़ाव वाली वर्षा से निपटकर अब धीरे-धीरे सुधार की राह पर बढ़ रहा है। जलाशयों के एक बार फिर वर्षा जल से भर जाने के बाद अगले कुछ महीनों में कृषि क्षेत्र के प्रदर्शन में सुधार हो सकता है। चुनावों के बाद चालू और पूंजीगत व्यय दोनों खातों में सरकार का खर्च भी बढ़ा है।

ऐसे में संभव है कि राज्य के पूंजीगत व्यय में आगे और सुधार हो। ऐसा इसलिए कि एक बार फिर केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को फंड और ब्याज रहित पूंजीगत व्यय ऋण मुहैया कराया जाएगा। सार्वजनिक पूंजीगत व्यय में यह इजाफा निवेश वृद्धि को मजबूत कर रहा है जहां हम पाते हैं कि 60 फीसदी संकेतक अब बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं जबकि एक तिमाही पहले यह आंकड़ा 40 फीसदी था।

बहरहाल इससे भी यह संकेत नहीं मिलता है कि निजी निवेश चक्र में खासकर, मशीनरी और उपकरणों के क्षेत्र में सुधार हुआ है। औद्योगिक ऋण तेजी से बढ़ा है लेकिन अधिकांश ऋण वृद्धि कार्यशील पूंजी में है, न कि सावधि ऋण में। सावधि ऋण आमतौर पर निजी क्षेत्र की निवेश मांग का परिचायक होता है।

आखिर में, निर्यात की विविधता पेशेवर सेवाओं की ओर झुकाव निर्यात को बनाए रखने में मददगार साबित हो रहा है। वास्तव में हर बार ऐसा प्रतीत होता है कि सेवा निर्यात में कमी आ रही है लेकिन उनमें पहले से भी तेज सुधार होता है। उदाहरण के लिए अक्टूबर में 17 अरब डॉलर मूल्य का रिकॉर्ड सेवा निर्यात हुआ। इसके बाद कई ऐसे क्षेत्र भी हैं जिनके पहले से अधिक खराब प्रदर्शन करने की आशंका है। मौसम के बेहतर होने के साथ ही बिजली की मांग और खनन तथा उपयोगिता में कमी आई है। व्यापार और परिवहन जैसे क्षेत्र अभी भी पिछड़े हुए हैं जबकि पर्यटन जैसे क्षेत्र का प्रदर्शन बेहतर है।

आखिरी और सबसे उल्लेखनीय बात, खपत मांग अब पहले से अधिक कमजोर है। खासतौर पर शहरी खपत। वास्तव में विनिर्माण को अगर अलग-अलग हिस्सों में बांटकर देखें तो पता चलता है कि उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में कमी आई है। हालांकि इस बीच निर्माण कार्यों के लिए जरूरी वस्तुओं की मांग मजबूत बनी रही है।

ऋण के आंकड़ों को विभाजित करके देखा जाए तो पता चलता है कि औद्योगिक ऋण अभी भी मजबूत है, उपभोक्ता ऋण में भी पहले के मुकाबले कमी आई है। हालांकि यह डिजाइन का हिस्सा है क्योंकि केंद्रीय बैंक ने वित्तीय स्थिरता की तलाश में जोखिम भार बढ़ा दिया है। शेयर बाजार में गिरावट आ रही है, पिछले कुछ वर्षों में खपत को बढ़ावा देने वाला मजबूत संपत्ति प्रभाव अपनी चमक खोता नजर आ रहा है।

ये तमाम बातें वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में बेहतर नजर आती हैं। उपकरों के मामले में समग्र जीएसटी वृद्धि की तुलना में वृद्धि में अपेक्षाकृत तेजी से धीमापन आया है। उपकरों में विलासिता की वस्तुओं मसलन महंगे वाहनों आदि पर उच्च कर लगाया जाता है।

कुल मिलाकर एक ओर जहां अर्थव्यवस्था का एक हिस्सा, एक तिहाई पहले की तुलना में धीमी गति (65 फीसदी की तुलना में 55 फीसदी) से बढ़ रहा है, वहीं अधिकांश संकेतक सकारात्मक बने हुए हैं। एक ओर जहां निवेश गतिविधियां (खासकर निर्माण और सार्वजनिक क्षेत्र में) स्थगित नजर आ रही हैं, वहीं खपत संबंधी निवेश में धीमापन नजर आ रहा है।

हमने गतिविधि संकेतकों की बात कर ली और यह भी कि उनका प्रदर्शन कैसा है। परंतु हमने अब तक अंतर्निहित चालकों और भविष्य के बारे में बात नहीं की।
हम मानते हैं कि बीते कुछ वर्षों में जो वृद्धि देखने को मिली है उसका अधिकांश हिस्सा नए भारत के उभार से जुड़ा है जिसमें कई उच्च प्रौद्योगिकी वाले क्षेत्र शामिल हैं।

इलेक्ट्रॉनिक्स तथा अन्य ऐसे विनिर्माण, वैश्विक क्षमता केंद्रों द्वारा दी जा रही पेशेवर सेवाओं का विस्तार और डिजिटल स्टार्टअप आदि के कारण पिरामिड के शीर्ष पर उच्च आय और वृद्धि बढ़ी है। बहरहाल, कुछ विपरीत वर्षों के बाद आधार बढ़ रहा है और इन क्षेत्रों में वृद्धि अधिक टिकाऊ और सामान्य हो रही है।

उदाहरण के लिए सेवा निर्यात में सालाना वृद्धि वित्त वर्ष 22-23 के 27 फीसदी के बाद वित्त वर्ष 24 में 14 फीसदी पर है लेकिन यह फिर भी अच्छा स्तर है। कुल मिलाकर जीडीपी वृद्धि सात फीसदी से अधिक की दर से 6.5 फीसदी की अधिक टिकाऊ और मजबूत संभावित वृद्धि के स्तर पर पहुंच रही है। अगर कृषि सुधारों की संभावना मजबूत बनी रही तो वृद्धि का यह नया स्तर शायद समूची अर्थव्यवस्था में अधिक टिकाऊ ढंग से विस्तार हो सके।

लब्बोलुआब यह है कि भले ही एक तिमाही पहले जितनी तेज़ी से वृद्धि करने वाले गतिविधि संकेतकों का अनुपात कम है, लेकिन हम मानते हैं कि वृद्धि अधिक टिकाऊ और व्यापक ढंग से सामान्य हो रही है तथा अभी भी मजबूत स्तर पर है। स्पष्ट है कि हम स्थिरता की ओर बढ़ रहे हैं।

(ले​खिका एचएसबीसी की प्रबंध निदेशक, वै​श्विक अनुसंधान हैं)

First Published - November 25, 2024 | 9:48 PM IST

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