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स्लैब और रेट कट के बाद, जीएसटी में सुधार की अब आगे की राह

जीएसटी के स्लैब और दरों में कमी के बाद जीएसटी परिषद को अब अगले सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। बता रहे हैं एके भट्टाचार्य

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ए के भट्टाचार्य   
Last Updated- September 10, 2025 | 9:59 PM IST

गत सप्ताह वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था में सुधार का निर्णय जुलाई 2017 में इसकी शुरुआत के बाद आठ साल में तीसरा ऐसा प्रयास था। यह प्रयास पहले से कितना अलग है और इसे कितना अलग होना चाहिए था?

पहले बात करते हैं फर्क की। जीएसटी परिषद द्वारा 3 सितंबर को लिया गया निर्णय अपनी तरह का सबसे बड़ा निर्णय है। करीब 450 से अधिक वस्तुओं एवं सेवाओं की जीएसटी दरें 22 सितंबर से बदल जाएंगी। कराधान के नजरिये से यह अब तक का सबसे महत्त्वपूर्ण कदम है और इसे जीएसटी पूर्व के दिनों के केंद्र सरकार के सालाना बजट से भी अधिक प्रभावी माना जा सकता है।

इस बार दरों को युक्तिसंगत बनाने का असर 420 से अधिक वस्तुओं पर पड़ेगा जो खाद्य, तंबाकू, कृषि, उर्वरक, कोयला, नवीकरणीय ऊर्जा, कपड़ा, स्वास्थ्य, शिक्षा, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, कागज, परिवहन, खेल के सामान, खिलौने, चमड़ा, लकड़ी, रक्षा, फुटवियर, निर्माण, हस्तकला और मशीनरी तक विस्तारित हैं। इसके अलावा 34 सेवाएं जिनमें परिवहन, जॉब वर्क, निर्माण, स्थानीय आपूर्ति और बीमा आदि शामिल हैं, उनकी दरों में भी बदलाव आएगा।

तुलनात्मक रूप से देखें तो पहली दो कवायदों का दायरा और प्रभाव बहुत कम था। जीएसटी की शुरुआत के महज चार महीने बाद नवंबर 2017 में परिषद ने 94 वस्तुओं के लिए दरें बदल दी थीं। दूसरी कवायद पहली से भी छोटी रही जब इसके 13 महीने बाद यानी दिसंबर 2018 में 17 तरह की वस्तुओं की दरें बदल दी गईं। इन निर्णयों के लिए चुना गया समय कमोबेश एक जैसा रहा।

तीसरी बार किए गए सुधार इस वर्ष के अंत में होने वाले बिहार विधान सभा चुनावों से कुछ पहले किए गए हैं। उसके बाद 2026 की पहली छमाही में पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु में महत्त्वपूर्ण विधान सभा चुनाव होने हैं। दरों को युक्तिसंगत बनाने की पहली कवायद दिसंबर 2017 में गुजरात विधान सभा चुनावों के कुछ सप्ताह पहले की गई थी। इसके ठीक बाद यानी 2018 की पहली छमाही में त्रिपुरा और कर्नाटक विधान सभा के चुनाव होने थे। दरों को दूसरी बार उस समय परिवर्तित किया गया जब कुछ ही महीने बाद 2019 के लोक सभा चुनाव होने वाले थे।

परंतु इसमें अहम अंतर यह है कि पहली और दूसरी बार किए गए सुधार जीएसटी व्यवस्था के लागू होने के बाद बहुत जल्दी कर दिए गए थे जबकि नई कर व्यवस्था के तहत कर संग्रह भी वांछित स्तर पर नहीं पहुंच सका था। आश्चर्य की बात नहीं है कि कर संग्रह की गति पर शुरुआती दो सुधारों ने विपरीत प्रभाव डाला।

इसके विपरीत तीसरी कवायद आठ साल बाद की गई और इस पर पिछले एक साल से चर्चा चल रही थी कि किन बदलावों को लागू किया जाए। इस बीच संग्रह दर में स्थिरता आ गई थी भले ही वह वांछित स्तर पर नहीं पहुंच सकी। गत वर्ष सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के प्रतिशत के रूप में विशुद्ध जीएसटी संग्रह अभी भी जीएसटी पूर्व के वर्षों की तुलना में कम था। इस बार ज्यादा बड़ा अंतर था दरों को युक्तिसंगत बनाने की प्रकृति। वर्ष 2017 और 2018 में दरों में किए गए बदलाव एक ही दिशा में थे। कई वस्तुओं को बिना स्लैब की संख्या बदले निचले स्लैब में कर दिया गया था। 2025 में केवल दरों में कमी नहीं की गई है बल्कि कुछ मामलों में उनमें इजाफा भी किया गया है ताकि मुख्य स्लैब की संख्या कम की जा सके।

एक दर्जन से अधिक वस्तुओं को छोड़कर लगभग सभी वस्तुओं और सेवाओं को 5 फीसदी और 18 फीसदी की दो दरों में शामिल कर दिया गया। ऐसा करने के लिए 380 वस्तुओं और 24 सेवाओं की दरों में कमी की गई। इसके अलावा 40 वस्तुओं और 10 सेवाओं के लिए कर दर बढ़ाई जानी है। लगभग 50 वस्तुओं की दरें बढ़ाने का सरकार का अपेक्षाकृत कम चर्चित निर्णय ही सरकार को यह भरोसा दिला रहा है कि इतने बड़े पैमाने पर दरों में कटौती के बावजूद राजस्व पर पड़ने वाला प्रभाव सीमित रहेगा। वर्ष2023-24 में हुई वसूली के आधार पर, सरकार ने दरों में कटौती से चालू वित्त वर्ष में राजस्व पर लगभग 93,000 करोड़ रुपये का असर पड़ने का अनुमान लगाया है।

हालांकि, दरों में वृद्धि के निर्णय ने इस प्रभाव को लगभग 45,000 करोड़ रुपये तक कम कर दिया और चालू वित्त वर्ष के लिए कुल प्रभाव को घटाकर लगभग 48,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। सरकार को उम्मीद है कि यह प्रभाव समय के साथ समाहित किया जा सकेगा, जो दरों में कटौती और अनुपालन में सुधार से की वजह से राजस्व में बढ़त पर निर्भर करेगा। सरकार इस लक्ष्य को हासिल कर पाएगी या नहीं, यह तो समय बताएगा लेकिन यह तथ्य स्पष्ट है कि 50 से अधिक वस्तुओं पर दरें बढ़ाने से सरकार का राजकोषीय कार्य थोड़ा कम चुनौतीपूर्ण हो गया है।

दर संरचना को तर्कसंगत बनाने की तीसरी प्रक्रिया में एक और बड़ा अंतर यह है कि मानव निर्मित वस्त्रों और उर्वरकों जैसे कई क्षेत्रों में उलटी शुल्क संरचना की समस्या को जिस तरीके से संबोधित किया गया है, वह उल्लेखनीय है। इसके साथ ही इनपुट टैक्स क्रेडिट के दावे की प्रक्रिया को सरल बनाया गया है और करदाताओं की शिकायतों के समाधान के लिए देशभर में अपीलीय निकायों की स्थापना की गई है।

दरों को तर्कसंगत बनाने की इस तीसरी प्रक्रिया को पहले की दो प्रक्रियाओं की तुलना में विशिष्ट बनाने वाले अन्य अंतर क्या हो सकते थे? एक प्रमुख अंतर यह हो सकता था कि जिस प्रकार जीएसटी परिषद ने 12 फीसदी और 28 फीसदी की दो दरों को समाप्त करने का साहसिक निर्णय लिया, उसी तरह यदि वह मौजूदा 5 फीसदी की दर को समाप्त कर एक नई दर मसलन 8 फीसदी को अपनाती, तो पिछले आठ वर्षों से गिरती हुई औसत भारित प्रभावी कर दर में सुधार किया जा सकता था। जीएसटी परिषद की अगली बैठक में वह वास्तव में एक स्पष्ट खाका प्रस्तुत कर सकती है, जिसके तहत अगले दो वर्षों की अवधि में 5 फीसदी की दर को चरणबद्ध तरीके से 8 फीसदी तक बढ़ाया जाए। औसत प्रभावी कर दर को जीएसटी पूर्व स्तर के लगभग 15 फीसदी पर बहाल करना जीएसटी परिषद का एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य होना चाहिए। यह कदम राजस्व संग्रह को बढ़ाकर राजकोषीय मजबूती लाने में भी मदद करेगा।

दूसरा, पेट्रोल और डीजल को भी जीएसटी व्यवस्था में शामिल करने की तैयारी करनी चाहिए। जरूरी नहीं कि इसके समावेश का मतलब यह है कि मौजूदा उत्पाद शुल्क दरों को जो लगभग 57 से 70 फीसदी के बीच हैं, उन्हें घटाकर 40 फीसदी तक लाया जाए। इन दरों को अतिरिक्त शुल्कों की मदद से वर्तमान स्तर पर बनाए रखा जा सकता है। लेकिन एक बार जब पेट्रोल और डीज़ल को जीएसटी प्रणाली में शामिल कर लिया जाएगा, तो इनका उपयोग करने वाली प्रत्येक कंपनी को लाभ होगा, क्योंकि वे इन उत्पादों पर दिए गए कर को अपने अंतिम कर भुगतान के विरुद्ध समायोजित कर सकेंगी।

यह कंपनियों, खासतौर पर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के लिए एक बड़ा लाभ होगा, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि होगी। जीएसटी कर मूल्यांकन प्रणाली को व्यवस्थित करना आवश्यक है। जिस प्रकार प्रत्यक्ष कर मूल्यांकन प्रणाली अब पूरी तरह से ऑनलाइन हो चुकी है, इसमें आम तौर पर किसी मानव हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती, वैसा ही जीएसटी में भी किया जाना चाहिए। जीएसटी मूल्यांकन प्रणाली को पूरी तरह ऑनलाइन और फेसलेस बनाने के लिए एक समयसीमा निर्धारित करना एक अच्छी शुरुआत होगी।

सरकार के पास इन लंबित जीएसटी सुधारों को लागू करने के लिए एक सीमित अवसर है। यदि वह नहीं चाहती कि यह पूरा प्रयास अनावश्यक राजनीतिक मजबूरियों के कारण बाधित हो जाए, तो इन सुधारों को अगले आम चुनावों से पहले ही लागू कर देना चाहिए। याद रखें कि दरों की संख्या घटाने और दरों में कटौती की चर्चाएं 2022 में शुरू हुई थीं, जब जीएसटी व्यवस्था ने पांच वर्ष पूरे किए थे। दरों और स्लैब में कटौती को लागू करने में तीन वर्ष से अधिक का समय लग गया, और इस बीच आम चुनाव भी संपन्न हुए।

First Published : September 10, 2025 | 9:56 PM IST