वर्ष 2025 में भारत दो महत्त्वपूर्ण मुकाम हासिल करने वाला है। पहला, इस साल भारत 4 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा और दूसरा, वह जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। मगर यह सफर और इसकी सफलता काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगी कि भारत अपने फायदे के लिए तकनीक का कितना कारगर इस्तेमाल कर पाता है। मैकिंजी की 2024 की रिपोर्ट में तकनीक से जुड़े उन 18 क्षेत्रों की चर्चा की गई है, जो 2040 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में 29 से 48 लाख करोड़ डॉलर तक जोड़ सकते हैं।
नई तकनीक में मौजूद आर्थिक संभावनाओं का दो प्रमुख क्षेत्रों में अधिक से अधिक लाभ उठाया जा सकता है। ये दो क्षेत्र हैं उत्पादन और इस्तेमाल। उत्पादन तकनीकों से नवाचार को बढ़ावा मिलता है, रोजगार के नए अवसर बनते हैं और आयात पर निर्भरता कम हो जाती है। सभी देश एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और नेटवर्क की अहमियत काफी ज्यादा है। नवाचार की ताकत ऐसी दुनिया में धाक जमाने में मददगार होती है और अपार आर्थिक लाभ भी दिलाती है। सेमीकंडक्टर और ई-कॉमर्स में कुछ देशों एवं कंपनियों का जलवा किसी से छुपा नहीं है।
यह वर्ष भारत के लिए निर्णायक होना चाहिए क्योंकि यह भारत को एक उत्पाद देश में बदलने का भरपूर अवसर और क्षमता देगा। इस कार्य को अंजाम तक पहुंचाने के लिए 1 लाख करोड़ रुपये शोध एवं विकास हेतु निजी क्षेत्र को दिए जाने चाहिए। इसे चलाने और लागू करने के तौर-तरीके निर्धारित करने को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए। अन्य नीतिगत सुधारों में रक्षा, परमाणु ऊर्जा और गहरे पानी की तकनीक (डीप वाटर टेक्नोलॉजीज) सहित सभी क्षेत्रों में शोध एवं विकास कार्य शुरू करना होगा। पारंपरिक संस्थानों की राह से बाधाएं दूर करना, नवाचार को बढ़ावा देने के लिए सरकारी खरीद नीति, क्वांटम, साइबर सुरक्षा जैसी तेजी से उभरती तकनीकों में कुशल कर्मचारी तैयार करने को प्राथमिकता, द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों के जरिये देसी औद्योगिक उत्पादों का प्रचार एवं निर्यात और मानक तैयार करने में सुधार भी जरूरी हैं।
नई तकनीकों के इस्तेमाल से कार्य क्षमता बढ़ती है, उत्पादकता में इजाफा होता है, नवाचार में तेजी आती है और पूरी अर्थव्यवस्था में इनके कई गुना असर नजर आते हैं। तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी ढांचा तैयार करने, वित्तीय मदद करने, इसे अपनाने की लागत कम करने और कौशल बढ़ाने के सरकारी कदम बहुत अहमियत रखते हैं। आधार और यूपीआई की सफलता बताती है कि तकनीक के इस्तेमाल को बड़े पैमाने पर ले जाने में सरकारी नीतियां कितनी अधिक कारगर होती हैं। नीचे बताया गया है कि 2025 में कुछ प्रमुख तकनीकों के लिए सरकार की क्या नीति होनी चाहिए।
आर्टिफिशल इंटेलिजेंस: जेनेरेटिव एआई सहित आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) भारत के लिए तुरुप का पत्ता साबित होगी। स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि में तेजी से छलांग लगाने में यह भारत की खूब मदद कर सकती है। 10,000 ग्राफिक प्रोसेसिंग इकाइयों (जीपीयू) के लिए वेंडर चुनने का जो काम चल रहा है, उसमें तेजी लाई जानी चाहिए। रक्षा और सुरक्षा के लिए एआई बुनियादी ढांचे को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। स्टार्टअप इकाइयों को बढ़ावा देने एवं कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा और सफाई में कम लागत पर बुनियादी मॉडल तैयार करने पर भी जोर होना चाहिए। भारत के विविधता भरे सूचना भंडार का एपीआई आधारित इस्तेमाल होना चाहिए ताकि स्टार्टअप स्थानीय स्तर पर एआई मॉडल तैयार कर सकें।
साइबर सुरक्षा एवं फॉरेंसिकः भारत में डिजिटल तकनीक का प्रसार जिस तेजी से हुआ है, साइबर सुरक्षा का इंतजाम उस तेजी से नहीं हो पाया है, जिससे खतरा बढ़ गया है। एआई के गलत इस्तेमाल के खतरों, क्वांटम तकनीक और क्रिप्टोकरेंसी, उपग्रह तथा ड्रोन जैसे उभरते साधनों से इन चुनौतियों में इजाफा ही होगा। इनसे निपटने के लिए ऊर्जा, परिवहन, विमानन, तेल एवं गैस और स्वास्थ्य क्षेत्र जैसे सभी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में सख्त साइबर सुरक्षा नियम लागू हों, जिनमें दंड का प्रावधान भी होना चाहिए। डिजिटल व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा (डीपीडीपी) कानून, 2023 को 2025 में जल्द से जल्द लागू किया जाना चाहिए। कारोबारों में डिजिटल फॉरेंसिक के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके लिए निजी प्रयोगशालाओं को इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की जांच करने वाला घोषित किया जाना चाहिए।
क्वांटम टेक्नोलॉजीः रक्षा, स्वास्थ्य, दूरसंचार, अंतरिक्ष और वित्त जैसे प्रमुख क्षेत्रों में क्वाटंम तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए नोडल मंत्रालय तय किया जाना चाहिए। क्वांटम की डिस्ट्रिब्यूशन (क्यूकेडी) और पोस्ट-क्वांटम क्रिप्टोग्राफी तकनीक अपनाने के लिए तथा मौजूदा देसी क्षमताओं का फायदा उठाने के लिए तय समयसीमा वाली कार्य योजना लागू होनी चाहिए। क्वांटम तकनीक के जरिये सुरक्षित बनाई गई उपग्रह संचार क्षमताओं का भी विकास किया जाना चाहिए।
सूचना भंडार का इस्तेमालः गूगल, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट और एमेजॉन जैसी तकनीकी कंपनियां डेटा का फायदा उठाकर खरबों डॉलर वाली इकाइयां बन गई हैं। भारत दुनिया में सबसे अधिक डेटा तैयार करता है, जिससे कमाई करने के लिए अकाउंट एग्रीगेटर (एए) मॉडल अपनाया जा सकता है। 2025 में ‘एए’ मॉडल को वित्त में इस्तेमाल करने और सार्वभौम बनाने पर जोर होना चाहिए। साथ ही इसे शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में भी लागू करने पर विचार किया जाना चाहिए। भारत में किसी विशेष स्थान से जुड़ी गुणवत्ता भरी जानकारी का अभाव है। 2021 की ‘स्वामित्व’ मानचित्र नीति और ड्रोन नीतियां इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए बुनियाद तैयार कर रही हैं। देश भर में ऐसे स्थानों के लिए जानकारी का संकलन पूरा होना चाहिए। पीएम गति शक्ति भौगोलिक सूचना तंत्र पर आधारित महत्त्वपूर्ण योजना (मास्टर प्लान) है, जिसे सभी परियोजनाओं में समान रूप से लागू किया जाना चाहिए। देश में जल अर्थव्यवस्था की क्षमताओं का पूरा लाभ उठाने के लिए पीएम अंडरवाटर गति शक्ति पर भी कार्य शुरू होना चाहिए। इसके लिए स्मार्ट मैरिटाइम जोन बनाए जा सकते हैं। दुनिया में 600 अरब डॉलर का क्लाउड कंप्यूट का बाजार है मगर उसमें भारत की हिस्सेदारी महज 1.6 प्रतिशत है। मगर दुनिया में तैयार होने वाले डेटा में 20 प्रतिशत भारत से ही मिलता है। क्लीन नेटवर्क पहल, डीपीडीपी अधिनियम और एआई क्लाउड की तेजी से बढ़ती मांग भारत को अपने डेटा केंद्रों के प्रसार का बड़ा अवसर मुहैया करा रहे हैं। सरकार को 2030 तक वैश्विक क्लाउड ढांचे में लगभग 5 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल करने के लिए आक्रामक नीति के साथ आगे बढ़ना होगा। डिजिटल प्रतिस्पर्द्धाः डिटिजल दुनिया में किसी एक संस्था या देश के एकाधिकार से निपटने के लिए 2025 में एक कानूनी ढांचा तैयार किए जाने की जरूरत है। इस ढांचे का मकसद नवाचार और उपभोक्ताओं के हित में संतुलन साधना और अफसरशाही की जकड़ से हो रही बाधाएं दूर करना है।
एयर मोबिलिटीः ड्रोन उद्योग में भारत दुनिया का प्रमुख दावेदार बनकर उभरा है, जहां स्टार्टअप कंपनियां देसी स्तर पर ड्रोन-टैक्सी डिजाइन तेजी से तैयार कर रही हैं। वर्टिपोर्ट (विमानों के लंबवत यानी खड़े-खड़े ऊपर उड़ने और उसी तरह नीचे उतरने के लिए तय स्थान) के नियम एयर-टैक्सी के मानक की अधिसूचना जारी की जा चुकी है। लेकिन स्वचालित मानव रहित यातायात प्रबंधन की कमी खल रही है। इससे जुड़े नियम 2025 में अधिसूचित किए जाने चाहिए।
सेमीकंडक्टरः विभिन्न राज्यों में कई फैब्रिकेशन परियोजनाओं की घोषणा हो चुकी है और 2025 में इन परियोजनाओं को अमल में लाने पर जोर होना चाहिए। बैक एंड फैब्रिकेशन संयंत्रों में काम चालू होना चाहिए और रसायन, गैस, सबस्ट्रेट्स तथा खपत होने वाली सामग्री के आपूर्ति तंत्र को प्रोत्साहन मिलना चाहिए।
अंतरिक्षः 2025 में इस क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए होंगे। इनमें उपग्रह से होने वाली संचार सेवाओं के लिए उपग्रह स्पेक्ट्रम आवंटन निपटाने, 1,000 करोड़ रुपये का वेंचर फंड आवंटित करने और इसरो के छोटे स्तर के उपग्रह प्रक्षेपण यान की तकनीक निजी उद्योग को भी देना शामिल हैं। सरकार को उपग्रह का इस्तेमाल तेज करने के लिए भी योजनाएं तैयार करनी चाहिए। वर्ष 2025 सही नीतिगत उपायों के जरिये नई तकनीकों को बढ़ावा देने के लिहाज से अहम साल साबित हो सकता है।
(लेखक रक्षा सचिव थे और आईआईटी कानपुर में विशिष्ट अतिथि प्राध्यापक हैं)