कर्नाटक के बाद तमिलनाडु ने भी फैक्टरीज अधिनियम 1948 में संशोधन करके काम के लिए 12 घंटे की शिफ्ट को मंजूरी दे दी है। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि बड़े विनिर्माताओं को अपने उत्पादन को ग्लोबल सप्लाई चेन के साथ तालमेल बनाने में मदद मिले।
इस बदलाव के बाद फैक्टरियां सप्ताह में चार दिन 12 घंटों की शिफ्ट में काम कर सकेंगी। इसका अर्थ यह हुआ कि वे सप्ताह में 48 घंटे काम करने की अधिनियम की सीमा का पालन कर सकेंगी। कर्नाटक में यह बदलाव Apple के ताइवानी वेंडर फॉक्सकॉन (Foxconn) के लिए किया गया। जबकि तमिलनाडु खुद को नए जमाने के उद्योगों मसलन बिजली से चलने वाले वाहनों (EVs) और सौर ऊर्जा उपकरणों के निवेश के लिए तैयार कर रहा है।
हालांकि जानकारी के मुताबिक वह इन संशोधनों पर पुनर्विचार कर रहा है। इसमें दो राय नहीं कि कर्नाटक और तमिलनाडु दोनों बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उन निवेशकों को लुभाने का प्रयास कर रहे हैं जो चीन (China) से इतर अपने लिए निवेश (Investment) के केंद्र तलाश कर रहे हैं।
निवेश के नजरिये से इन कदमों को समझा जा सकता है क्योंकि भारत की श्रम उत्पादकता अपेक्षाकृत कम है जबकि लागत अधिक है। इसके साथ ही उसे वैश्विक निवेश के लिए वियतनाम, इंडोनेशिया और थाईलैंड के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। परंतु यहां दो सवाल हैं।
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पहला, क्या 12 घंटे की शिफ्ट इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उद्योगों में अपनाई जा सकती है जहां बहुत अधिक सटीक ढंग से काम करने और ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होती है। ऐसे मामलों में उत्पादों की खराबी की आशंका बढ़ जाती है और लंबे समय के दौरान उत्पादकता के लाभ गंवाने पड़ सकते हैं।
दूसरा और बड़ा सवाल ऐसे कानूनों की नैतिकता का है जो श्रमिकों को उनकी क्षमताओं से अधिक काम करने को प्रेरित करते हैं। यह दलील दी जा सकती है कि यह व्यवस्था श्रमिकों पर कमोबेश वैसे ही श्रम व्यवहार आरोपित करती है जैसे कि कमतर निगरानी वाले असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के हिस्से में है और जहां काम के घंटे इससे भी अधिक हो सकते हैं जबकि लाभ न के बराबर।
भारत में बेरोजगारी की व्यापक समस्या को देखते हुए संगठित क्षेत्र के श्रमिकों को 12 घंटे काम के साथ अगर सवैतनिक अवकाश, बीमारी में अवकाश आदि मिलते हैं तो इसे बिना इन लाभों के काम करने वाले श्रमिकों की तुलना में काफी बेहतर स्थिति माना जा सकता है।
इस बीच शोषण और अधिकतम मुनाफे के बीच की बारीक रेखा को भी पहचानने की आवश्यकता है। खासतौर पर देश में श्रम संगठनों के लगातार कमजोर पड़ते जाने के बीच यह जरूरी है। यह याद करना उचित होगा कि उत्तर प्रदेश 2020 के कोविड लॉकडाउन के कारण उत्पादन में हुए नुकसान की भरपाई के लिए तीन महीनों तक फैक्टरियों को 12 घंटे चलाने का जो अध्यादेश लाया था उसे श्रम विशेषज्ञों और संगठनों की कड़ी आपत्ति के बाद वापस लेना पड़ा था।
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चीन में भी सरकार कंपनियों को याद दिलाना पड़ा था कि श्रमिकों से सप्ताह के छह दिन सुबह नौ बजे से रात नौ बजे तक काम कराना (996 संस्कृति) अवैध था। चीन में सप्ताह में 44 घंटे काम करने का कानून है और ओवरटाइम के लिए अतिरिक्त भुगतान करना होता है।
हकीकत में चूंकि चीन दुनिया की फैक्टरी बनने के लिए प्रयासरत था इसलिए अधिकांश नियोक्ताओं और सरकार ने इन नियमों के प्रति आंख मूंद ली थी। याद कीजिए अलीबाबा (Ali Baba) के जैक मा (Jack Ma) ने 996 संस्कृति को आशीर्वाद की तरह बताया था। श्रमिकों की बढ़ती नाराजगी के बाद 2021 में इसमें नेतृत्व द्वारा हस्तक्षेप किया गया।
कर्नाटक और तमिलनाडु में 12 घंटे की शिफ्ट वैश्विक कारोबार की हकीकत को दर्शाती है जहां कम लागत और अधिक उत्पादकता की होड़ लगी है। ऐसे में श्रमिकों के अधिकार और कल्याण का हनन हो रहा है।