भारतीय रेलवे ने जुलाई से यात्री किराए में मामूली बढ़ोतरी का ऐलान किया है, जो 2020 के बाद पहली बार और 2013 के बाद की सबसे कम दर की बढ़ोतरी मानी जा रही है। इसमें एसी कोच के लिए 2 पैसे प्रति किलोमीटर, स्लीपर क्लास के लिए 1 पैसा और सेकंड क्लास के लिए आधा पैसा प्रति किलोमीटर किराया बढ़ेगा। हालांकि लोकल ट्रेनों और मासिक पास वालों के किराए में कोई बदलाव नहीं किया गया है। इससे रेलवे को अनुमानित रूप से FY26 में 700 करोड़ रुपए की अतिरिक्त कमाई होगी, जो 92,800 करोड़ रुपए के कुल यात्री राजस्व लक्ष्य की तुलना में बहुत कम है। रेलवे की एक-तिहाई आमदनी यात्री किराए से आती है, लेकिन एसी 3-टियर और चेयर कार को छोड़कर बाकी सेवाओं में घाटा होता है, जिसे माल ढुलाई से होने वाली कमाई से पूरा किया जाता है।
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हालांकि माल ढुलाई में भी रेलवे की हिस्सेदारी घट रही है — 2007-08 में ये 36% थी, जो 2021-22 में घटकर 26% रह गई। कोयले की ढुलाई अब भी सबसे बड़ा स्रोत है, लेकिन थर्मल पावर प्लांट्स के डी-कार्बनाइजेशन से यह हिस्सा भी खतरे में है। ऐसे में रेलवे को फिनिश्ड मेटल, केमिकल्स और कृषि उत्पादों जैसी हाई-वैल्यू कार्गो की ओर रुख करना होगा। रेलवे नेटवर्क में लंबे समय से पर्याप्त निवेश न होने की वजह से भीड़भाड़ वाले रूट्स पर ट्रैफिक जाम जैसा हाल है, और मालगाड़ियों की औसत रफ्तार कई जगह 30 किलोमीटर प्रति घंटा से भी कम है।
हालांकि डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर और ‘गति शक्ति मल्टीमॉडल कार्गो टर्मिनल’ जैसी योजनाओं से सुधार की कोशिशें हो रही हैं, लेकिन बदलाव की रफ्तार अब भी धीमी है। रेलवे का ऑपरेटिंग रेशियो करीब 98% है, यानी उसकी पूरी कमाई संचालन और रखरखाव में खर्च हो जाती है। ऐसे में किराया बढ़ाना केवल पहला कदम है; असली चुनौती यह तय करने की है कि रेलवे का प्राथमिक लक्ष्य जनसेवा है या लाभ कमाना — और इन्हीं दो के बीच सही संतुलन ही भारतीय रेल को वर्ल्ड-क्लास बना सकेगा।