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Mutual Fund के लिए तय करें टारगेट और जोखिम भी भांप लें

ये दोनों पैमाने समझने पर आपको पता चल जाएगा कि कितनी रकम म्युचुअल फंड में लगाना सही रहेगा और आप अच्छा पोर्टफोलियो भी कर सकेंगे तैयार।

Last Updated- June 17, 2024 | 11:45 PM IST
Mutual funds

जिन निवेशकों ने केवल म्युचुअल फंड (Mutual Fund) में रकम लगाई है, उनकी संख्या इस साल अप्रैल में 4.52 करोड़ तक पहुंच गई। यह आंकड़ा अप्रैल 2023 में 3.79 करोड़ ही था यानी 12 महीनों में निवेशकों की संख्या 19.3 प्रतिशत बढ़ गई।

शुरुआत में ही अनुभव अच्छा न रहे तो कई नए निवेशक शेयरों से लंबे समय तक के लिए मुंह मोड़ लेते हैं। इसलिए बाजार में कदम रखते समय बहुत एहतियात बरतना चाहिए।

भारी रिटर्न की उम्मीद

बहुत से निवेशक बहुत ज्यादा उम्मीदें लेकर बाजार में चले आते हैं। मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट एडवाइजर के निदेशक-प्रबंधक (रिसर्च) कौस्तुभ बेलापुरकर का कहना है, ‘कुछ निवेशकों को लगता है कि जैसा पहले हुआ था, वैसा ही इस बार भी होगा और बहुत कम अरसे में ही उन्हें पहले जैसा रिटर्न मिल जाएगा।’

ऐसी ही उम्मीदों के साथ वे फंड भी चुनते हैं। अरविंद राव ऐंड एसोसिएट्स के संस्थापक अरविंद ए राव कहते हैं, ‘निवेशक ऐसे फंडों में पैसा लगाते हैं, जिन्होंने पिछले कुछ अरसे में बहुत ऊंचा रिटर्न दिया हो।’

कई निवेशक मिड और स्मॉलकैप फंड में रकम लगाते रहते हैं और उन्हें यह अहसास ही नहीं होता कि रिटर्न का पहिया घूमता है और ऊंचे रिटर्न के बाद कमजोर रिटर्न का दौर भी आता है। सेबी में पंजीकृत निवेश सलाहकार दीपेश राघव कहते हैं कि यदि वह फंड निकट भविष्य में बढ़िया प्रदर्शन नहीं करते तो निवेशक मायूस होकर फौरन बाहर निकल आते हैं।

कई निवेशकों को यही पता नहीं होता कि वे कितना जोखिम ले सकते हैं। फायर्स में रिसर्च हेड गोपाल कवलीरेड्डी बताते हैं, ‘ऐसे लोगों को यही पता नहीं चल पाता कि वे जोखिम से दूर रहने वाले निवेशक हैं, कम जोखिम उठा सकते हैं या भरपूर जोखिम ले सकते हैं। ऐसे में वे सही फंड भी नहीं चुन पाते।’

निवेशकों से एक गलती यह भी होती है कि वे वित्तीय लक्ष्य तय किए बगैर निवेश करने लगते हैं। ऐसे निवेशक इस बात से अनजान रहते हैं कि उन्हें कब तक निवेश करना है। कई निवेशक जोश में आकर शेयरों में जरूरत से ज्यादा रकम लगा बैठते हैं।

राव कहते हैं, ‘वे अपनी वह रकम भी लगा देते हैं, जिसकी जरूरत उन्हें 6 से 12 महीनों में पड़ सकती है। वह रकम भी वे सेक्टर फंड और मिड तथा स्मॉल कैप फंड जैसी श्रेणियों में लगा देते हैं, जहां बहुत उठापटक होती है।’

जब बाजार चढ़ता है तो कई निवेशक लंबे अरसे के लिए निवेश करने की कसम खा लेते हैं। राघव बताते हैं, ‘कई नौसिखिये निवेशक कहते हैं कि जब इक्विटी फंडों से लंबी अवधि में 12 से 14 प्रतिशत रिटर्न मिल सकता है तो डेट फंडों में रकम क्यों लगाई जाए?’ वह कहते हैं कि चढ़ते बाजार में उन्हें यह समझाना बहुत मुश्किल हो जाता है कि अलग-अलग श्रेणियों में संपत्ति आवंटन करना का क्या फायदा है।

संपत्ति आवंटन जरूरी

इसके लिए सबसे जरूरी है कि जब आप निवेशक के तौर अपना सफर शुरू करें तो रिटर्न के बारे में आपकी अपेक्षाएं हकीकत से जुड़ी हों। बेलापुरकर की सलाह है, ‘किसी भी फंड श्रेणी का पिछले 10 से 15 साल का रिटर्न देखें और उसी तरह के रिटर्न की उम्मीद रखें।’

निवेशकों को पता होना चाहिए कि उनके वित्तीय लक्ष्य क्या हैं, वे कितना जोखिम ले सकते हैं और उन्हें कितने समय के लिए निवेश करना चाहिए। बेलापुरकर के मुताबिक इन तीनों पैमानों को देखकर ही उन्हें संपत्ति आवंटन का फैसला करना चाहिए।

निवेशकों के पोर्टफोलियो में विविधता होनी चाहिए और इक्विटी, डेट तथा सोना उनमें शामिल होना चाहिए। शेयर आनी इक्विटी में आवंटन का फैसला करने के लिए ‘100 माइनस आयु’ का फॉर्म्यूला लगाना चाहिए। उसके बाद जोखिम लेने की अपनी क्षमता के हिसाब से इसे घटा-बढ़ा सकते हैं। पोर्टफोलियो का 10 से 15 प्रतिशत सोने में निवेश किया जा सकता है।

शेष डेट फंड में डाल सकते हैं। जब शेयर बाजार गिरता है तब डेट फंड में निवेश की गई रकम आपको बचाती है। डेट में निवेश किया हो तो बाजार नीचे आने के बाद डेट से निवेश निकालकर इक्विटी में करने का मौका भी मिलता है।

इक्विटी में कम से कम 5 साल के लिए रकम लगानी चाहिए। राव कहते हैं, ‘निवेशक चढ़ते बाजार में निवेश शुरू करें तो उन्हें सात साल या इससे अधिक मियाद का लक्ष्य रखना चाहिए।’

अस्थिर परिसंपत्तियों में निवेश

परिसंपत्ति आवंटन के बारे में निर्णय करने के बाद निवेशकों को देखना चाहिए कि स परिसंपत्ति के भीतर कहां रकम लगाई जाए मसलन लार्ज, मिड और स्मॉल कैप फंडों में कितना कितना निवेश किया जाए। इसका फैसला भी यह समझकर करें कि आप कितना जोखिम ले सकते हैं। जोखिम नहीं लेना तो लार्ज कैप फंड (Large Cap Fund) में ज्यादा रकम लगाएं और जोखिम लेने को तैयार हैं तो उनमें कम पैसा डालें।

युवा निवेशक हों या जोखिम उठाने की क्षमता हो तो उन्हें उतार-चढ़ाव वाले मिड और स्मॉल कैप फंडों में निवेश करना चाहिए। राघव कहते हैं, ‘आपके निवेश के बाद बाजार बुरी तरह गिरेगा और फिर ऊपर चढ़ेगा तभी आप उतार-चढ़ाव के आदी हो पाएंगे।’

फंड चुनते समय कई वित्तीय सलाहकार कम खर्च वाले पैसिव फंडों की सलाह देते हैं। निवेश की शुरुआत में तो उन्हें आजमाया ही जा सकता है। इनमें कई फायदे होते हैं। खर्च तो कम होता ही है, निवेशक को सही फंड मैनेजर चुनने की चिंता भी नहीं करनी पड़ती। प्रदर्शन अच्छा नहीं रहे तो फंड मैनेजर बदलने की उधेड़बुन में भी निवेशकों को नहीं पड़ना होता है।

कवलिरेड्डी फंडों में जोखिम के पैमानों पर ध्यान देने की सलाह देते हैं। इस समय सिस्टमैटिक ट्रांसफर प्लान (एसटीपी) फायदेमंद हो सकते हैं। कवलिरेड्डी कहते हैं,, ‘जब बाजार उफान पर हो तब लिक्विड फंड में एकमुश्त निवेश करें और फिर वह रकम धीरे-धीरे इक्विटी फंड में ले आएं।’

अंत में इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि बाजार में प्रवेश करने या उससे बाहर निकलने का कोई समय तय करने की कोशिश मत कीजिए। बेलापुरकर की सलाह तो यही कहती है कि शेयरों में लंबे समय का निवेशक हमेशा फायदा देता है।

First Published - June 17, 2024 | 11:07 PM IST

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