शेयर बाजार नियामक सेबी के छोटे शेयरों वाली स्कीम (स्मॉल-कैप) के अत्यधिक मूल्यांकन पर लगाम लगाने के प्रयासों का असर निवेशकों पर दिखने लगा है। अगस्त 2021 के बाद पहली बार, मार्च 2024 में स्मॉल-कैप स्कीम में निवेश कम हुआ है।
ब्रोकरेज फर्म एलारा कैपिटल ने एक रिपोर्ट में बताया कि पिछले 15 महीनों में लगातार हर महीने औसतन 3300 करोड़ रुपये के निवेश के बाद, मार्च में इन स्कीम से 94 करोड़ रुपये की कुल निकासी देखने को मिली।
इसके अलावा, सेबी द्वारा कराए गए ‘स्ट्रेस टेस्ट’ के नतीजे भी निवेशकों के सेंटीमेंट को प्रभावित कर रहे हैं। इन परीक्षणों में यह पता लगाया गया कि स्मॉल और मिड-कैप फंडों को अपने पोर्टफोलियो का कितना हिस्सा जल्दी बेचना पड़ सकता है।
सेबी के आदेश के अनुसार, म्यूचुअल फंड कंपनियों को हर महीने 15 तारीख को मिड-कैप और स्मॉल-कैप स्कीम के लिए तरलता, अस्थिरता, मूल्यांकन और पोर्टफोलियो कारोबार से जुड़े आंकड़ों को सार्वजनिक करना होता है।
2023 में छोटी और मझोली कंपनियों के शेयरों (मिड और स्मॉल-कैप) ने तो धूम मचा दी थी! निवेशकों ने इनमें 64,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का निवेश किया। लेकिन बाजार नियामक सेबी को ये चिंता सता रही थी कि क्या जरूरत पड़ने पर ये फंड आसानी से अपने शेयर बेच पाएंगे?
लार्ज-कैप और ईटीएफ पर बढ़ रहा है ध्यान
स्मॉल-कैप फंडों में निवेश कम होने के साथ ही बड़ी कंपनियों के शेयरों (लार्ज-कैप) वाले फंडों की तरफ निवेशकों का रुझान बढ़ रहा है। मार्च 2024 में लार्ज-कैप फंडों में 2,130 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश आया, जो पिछले 21 महीनों में सबसे ज्यादा है। गौर करने वाली बात ये है कि पहले हर महीने औसतन 115 करोड़ रुपये का निवेश बाहर निकलता था, जबकि अब इसके उल्टा हो गया है।
दिलचस्प है कि मार्च 2024 में स्मॉल-कैप में जाने वाले निवेश का लगभग 70% अब लार्ज-कैप की ओर रुख कर गया है। सिर्फ इतना ही नहीं, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) में भी निवेश बढ़ रहा है।
मार्च 2024 में ईटीएफ में निवेश 10,500 करोड़ रुपये की नई ऊंचाई पर पहुंच गया, जबकि इसके पहले औसतन हर महीने 2,500 करोड़ रुपये का ही निवेश होता था। कुल मिलाकर, निवेशकों की पसंद बदल रही है। वे अब छोटी और मझोली कंपनियों के फंडों के बजाय बड़ी कंपनियों और ईटीएफ जैसे विकल्पों को तरजीह दे रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है, म्यूचुअल फंड में कुल मिलाकर तो पैसा आ ही रहा है, लेकिन निवेशकों की पसंद बदल रही है। पहले जहां उनका रुझान छोटी और मझोली कंपनियों (स्मॉल और मिड-कैप) वाले फंडों की तरफ था, वहीं अब वो बड़ी कंपनियों (लार्ज-कैप) और एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) जैसे विकल्पों को तरजीह दे रहे हैं।
ये बदलाव फंड मैनेजमेंट कंपनियों (AMC) के लेवल पर भी दिख रहा है। कुछ AMC में स्मॉल और मिड-कैप फंडों से पैसा निकल रहा है, जबकि कुछ में बड़े पैमाने पर पैसा जमा हो रहा है।
म्यूचुअल फंड: निवेशकों की पसंद में बदलाव
रिपोर्ट के मुताबिक, इस बदलाव की एक वजह ये भी हो सकती है कि स्मॉल-कैप फंडों ने मिड-कैप फंडों के मुकाबले कम रिटर्न दिया है, जिससे निवेशक अब ज्यादा जोखिम नहीं लेना चाहते। अलग-अलग फंडों की बात करें तो लार्ज-कैप फंडों में पैसा जमा करने की रफ्तार पहले कम थी, लेकिन अब बढ़ रही है।
वहीं मिड-कैप फंडों में ये रफ्तार स्थिर थी, लेकिन अब बदलने के संकेत मिल रहे हैं। सबसे ज्यादा चिंता की बात स्मॉल-कैप फंडों को लेकर है। फरवरी 2021 के बाद पहली बार इन फंडों में नए खाते खुलने की संख्या घटी है, जो निवेशकों की घटती दिलचस्पी को दर्शाता है।
मार्च 2024 में नए लार्ज-कैप फंडों में जबरदस्त उछाल आया है। ये दिसंबर 2021 के बाद से सबसे ज्यादा बढ़ोतरी है। इसके उलट, पिछले दो महीनों में नए मिड-कैप फंडों में गिरावट देखी गई है, हालांकि ये कमी स्मॉल-कैप की तुलना में कम है। शायद निवेशक मिड-कैप में अभी भी संभावनाएं देख रहे हैं, लेकिन थोड़ा इंतजार करना चाहते हैं।
गौर करने वाली बात ये है कि स्मॉल-कैप फंड मैनेजर भी अपनी रणनीति बदल रहे हैं। मार्च में बिकवाली के दौरान उन्हें निवेश के लिए नकदी का इस्तेमाल करने का मौका मिला।
साथ ही, वो लगातार लार्ज-कैप शेयरों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं, जो मार्च 2024 में अब तक के सबसे ऊंचे स्तर 7.5% पर पहुंच गई है। ये कदम संकेत देते हैं कि स्मॉल-कैप फंड मैनेजर जोखिम कम करने की कोशिश कर रहे हैं।