भारत में दफ्तर का रियल एस्टेट बाजार 2022 के शुरुआती महीनों में तेजी से चढ़ता दिख रहा था मगर साल की दूसरी छमाही में इसमें सुस्ती आने लगी। विकसित देशों में जो आर्थिक दिक्कतें आईं, उन्होंने यहां के दफ्तर के बाजार पर गहरा असर डाला। ऐसे में चालू वित्त वर्ष के दौरान दफ्तरों से किराया इसी स्तर पर बने रहने की उम्मीद है।
उछाल फिर मंदी
कैलेंडर वर्ष 2022 में किराये पर दफ्तरों का बाजार बहुत तेजी से आगे बढ़ा। सीबीआरई में चेयरमैन और मुख्य कार्य अधिकारी (भारत, दक्षिण पूर्व एशिया, पश्चिम एशिया और अफ्रीका) अंशुमन मैगजीन कहते हैं, ‘इसकी वजह आर्थिक गतिविधियों का बहाल होना और कंपनियों का दफ्तर में लौटने की योजना तेज करना रही।’ सीबीआरई के आंकड़ों के मुताबिक 2022 में 5.65 करोड़ वर्ग फुट में तैयार दफ्तर खरीदे या किराये पर लिए गए। 2021 में केवल 4.05 करोड़ वर्ग फुट दफ्तर लिए गए थे।
नाइट फ्रैंक इंडिया के मुताबिक पिछले कैलेंडर वर्ष में शीर्ष 8 शहरों में औसत किराया करीब 8.1 फीसदी बढ़ गया। नाइट फ्रैंक इंडिया में शोध निदेशक विवेक राठी बताते हैं. ‘बेंगलूरु में किराया 11 फीसदी बढ़ा। पुणे में 7 फीसदी और हैदराबाद में किराया 6 फीसदी चढ़ गया।’
मगर 2022 की दूसरी छमाही आते-आते दफ्तर के बाजार की रफ्तार थमने लगी। एनारॉक ग्रुप के चेयरमैन अनुज पुरी कहते हैं, ‘शीर्ष सात शहरों में औसत किराया 78 रुपये प्रति वर्ग फुट से मामूली बढ़कर दूसरी छमाही में 80 रुपये प्रति वर्ग फुट हुआ।’ इसकी बड़ी वजह कंपनियां थीं। एनारॉक रिसर्च के अनुसार दूसरी छमाही में कंपनियों ने करीब 1 करोड़ वर्ग फुट जगह के लिए सौदे रद्द कर दिए या आगे के लिए टाल दिए।
इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार यह डर रहा कि पश्चिम में मंदी फिर से आ सकती है। पुरी बतेते हैं, ‘प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में मंदी का मंडराता संकट और आईटी तथा उससे जुड़ी सेवाओं के क्षेत्र में भारतीय कंपनियों द्वारा भर्ती में कमी इसका बड़ा कारण रहे।’
एक वजह आपूर्ति की भी रही। पुरी कहते हैं कि दफ्तर की जितनी जरूरत थी, कुछ बाजारों में उससे ज्यादा दफ्तर बनकर तैयार हो गए। इसलिए भी मांग कम हो गई।
थमे रहेंगे किराये
पश्चिमी बाजार खास तौर पर अमेरिका में मंदी और छंटनी का असर वित्त वर्ष 2024 में भी भारत के दफ्तर बाजार में दिखता रहेगा। आईटी और आईटी संबंधित सेवा उद्योग पहले ही इसकी मार झेल रहे हैं। पुरी बताते हैं, ‘ज्यादातर ग्राहक अपने असाइनमेंट कम करने के बारे में सोच रहे हैं और नए ठेके भी कम दिए जा रहे हैं। इसलिए हमें नहीं लगता कि भारतीय कंपिनयों को पहले से ज्यादा ठेके मिलेंगे।’
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राठी कहते हैं कि कई कंपननियों ने अपने दफ्तर का विस्तार करने की योजना कुछ तिमाहियों के लिए टाल दी है। अमेरिका में ब्याज दरें सख्त होने से भी भारत तक आने वाली पूंजी और प्राइवेट इक्विटी निवेश में कमी आ सकती है। राठी का कहना है, ‘यदि अमेरिका में दरें तेजी से बढ़ती रहती हैं तो भारत में निवेश आगे के लिए टल सकता है।’
सीबीआरई का अनुमान है कि कैलेंडर वर्ष 2023 में दफ्तरों के लिए तकरीबन 5.1 से 5.3 करोड़ वर्ग फुट की बेहतरीन जगह ग्राहकों को सौंपी जा सकती है। आपूर्ति अधिक होगी और मांग कम रहेगी तो किरायों में इजाफे की गुंजाइश कम ही होगी।
मध्यम अवधि से उम्मीद
कम खर्च में अच्छी प्रतिभा और वाजिब दाम में दफ्तर मिलने के कारण भारत आउटसोर्सिंग के लिए आकर्षक ठिकाना बना रह सकता है। देसी कंपनियों की तरफ से दफ्तर की मांग भी बाजार को टिकाए रखेगी।
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कॉलियर्स इंडिया में प्रबंध निदेशक (पूंजी बाजार एवं निवेश सेवा) पीयूष मिश्रा कहते हैं, ‘ऑफिस रियल एस्टेट से स्थिर रिटर्न मिलने की संभावना है। किराये से रिटर्न 8.5 से 10 फीसदी के करीब मिल रहा है मगर किराया बढ़ा और पूंजी भी बढ़ी तो रिटर्न बढ़कर 12 से 14 फीसदी हो सकता है।’ निवेशक चाहें तो बैंक से कर्ज लेकर दफ्तरों में निवेश कर सकते हैं।
पहले जांच-परख लें
निवेश करना तो सही रहेगा मगर उससे पहले कागजात की अच्छी तरह जांच कर लें। यदि बैंक किसी इमारत में निवेश के लिए कर्ज देने को तैयार हैं तो अच्छी बात है क्योंकि इसका मतलब है कि कागजों में किसी तरह की कमी नहीं है।
मिश्रा की सलाह है, ‘पता कीजिए कि हाल ही में दफ्तर कितने किराये पर चढ़े हैं और उस इमारत में कितना किराया मिल सकता है। साथ ही स्थानीय बाजार को अच्छी तरह तोलिए ताकि आपको पता चल सके कि लंबे समय में वहां स्थिति कैसी रहेगी और बुनियादी ढांचे का किस तरह का विकास होने जा रहा है। साथ ही यह भी देख लीजिए कि इमारत का इस्तेमाल किस तरह के लोग करने जा रहे हैं या किस तरह के दफ्तर वहां खुलने जा रहे हैं।