पिछले साल डेट फंडों ने इक्विटी फंडों और सोने से कम लाभ दिया था, लेकिन अगर उम्मीद के मुताबिक नीतिगत दरों में कटौती हो जाती है तो 2024 में लंबी अवधि के कई डेट फंड दो अंकों में रिटर्न दे सकते हैं। विशेषज्ञों के हिसाब से इन फंडों में बेहतर रिटर्न मिलने वाली कई वजहें दिखाई दे रही हैं। दरों में कटौती इनमें से सबसे बड़ी वजह है।
बाजार विशेषज्ञों को लगता है कि इस साल दरें घटने की काफी संभावना है। टाटा म्युचुअल फंड के प्रमुख (फिक्स्ड इनकम) मूर्ति नागराजन कहते हैं, ‘मुख्य मुद्रास्फीति पहले ही गिरकर चार फीसदी के आसपास रह गई है। अगर मॉनसून अच्छा रहता है तो उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति भी चार फीसदी के पास आ सकती है। उस सूरत में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) कम से कम दो बार दरें घटा सकता है।’
रिजर्व बैंक का फैसला भी दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों की कार्रवाई पर निर्भर करेगा। पूरी दुनिया में दर बढ़ोतरी का सिलसिला अब रुक गया है और खास तौर पर अमेरिका, यूरोप तथा दूसरे पश्चिमी देशों में दर कटौती की संभावना बहुत अधिक है क्योंकि वहां दरें बहुत ज्यादा बढ़ चुकी हैं। अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने दर 75 आधार अंक घटने का इशारा किया है।
भारत में भी मौद्रिक नीति समिति के कुछ सदस्य पहले ही दरों में कटौती की बात कह रहे हैं। क्वांटम ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी के मैनेजर (फिक्स्ड इनकम) पंकज पाठक को लगता है, ‘अगर महंगाई में कमी आती रही तो 2024 के मध्य में दरों घटने की पूरी संभावना होगी।’
रिजर्व बैंक इस समय तो राहत या ढिलाई वापस लेने की नीति पर चल रहा है। कॉरपोरेट प्रशिक्षक (डेट मार्केट्स) और लेखक जयदीप सेन का कहना है, ‘दर कटौती से पहले आरबीआई को अपना रुख बदलना होगा और राहत वापस लेने के बजाय तटस्थ रुख पर आना होगा।
मुद्रास्फीति में जिस तरह कमी आ रही है, उसे देखते हुए इस कैलेंडर वर्ष की पहली छमाही या जून तक उसका रुख बदल सकता है। उसके बाद इस साल की दूसरी छमाही यानी जुलाई और सितंबर के बीच रीपो दर में कटौती शुरू हो सकती है।’ दरें घटेंगी तो बॉन्ड की कीमत चढ़ेगी, जिससे डेट फंडों में बेहतर रिटर्न मिलना शुरू हो जाएगा।
भारतीय सरकारी बॉन्ड अब वैश्विक बॉन्ड सूचकांक में शामिल हो रहे हैं। इससे भारतीय बाजार में विदेशी फंडों से रकम आएगी और बॉन्ड की कीमत चढ़ जाएगी। मगर कुछ ऐसी बातें भी हैं, जो सारे समीकरण बिगाड़ सकती हैं। पहली बात तो जिंसों के भाव हैं, जो चढ़ सकते हैं।
नागराजन समझाते हैं, ‘ब्याज दरों में जब भी कटौती होती है, जिंस ऊपर भागना शुरू कर देते हैं। दर कटौती के बाद अगर तेल के दाम चढ़ने लगे तो खुदरा महंगाई नीचे नहीं आ पाएगी।’
मॉनसून कमजोर रहने या केंद्र में गठबंधन की सरकार बनने से भी मामला खटाई में पड़ सकता है। सेन को भी लगता है कि अचानक कोई भू-राजनीतिक दिक्कत पैदा हुई तो आपूर्ति श्रृंखला में रुकावट आएगी और ऐसा हुआ तो महंगाई अचानक बेलगाम हो जाएगी।
लंबी अवधि के फंड
विशेषज्ञों का कहना है कि लंबी अवधि के डेट फंडों में निवेश करने का यह बहुत अच्छा समय है। सेन की राय है, ‘यदि दरों में कटौती होती है, तो बांड यील्ड घटेगी और निवेशकों को उन पर मार्क-टु-मार्केट पूंजीगत लाभ उठाने का मौका मिल जाएगा।’
पोर्टफोलियो का कुछ हिस्सा तो अचानक आई जरूरतें पूरी करने के लिए लिक्विड फंड में होना चाहिए। इसमें आप 6 से 12 महीने की तनख्वाह के बराबर रकम डाल सकते हैं। अपने डेट फंड पोर्टफोलियो को ज्यादा जोखिम से बचाने के लिए अधिकतर रकम कम अवधि के फंड में डालिए। यह अवधि 1 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
पहले यह देखिए कि आपको कितने समय के लिए निवेश करना है। फिर उतनी ही अवधि वाली श्रेणी के फंड या किसी खास फंड को चुनिए।
दरों में कटौती की उम्मीद कमोबेश सभी लोग लगा रहे हैं। उसका फायदा उठाने के लिए थोड़ा निवेश लंबी अवधि के डेट फंडों में भी करें। मगर सेन आगाह करते हैं कि लंबी अवधि के फंड में बहुत ज्यादा निवेश मत कीजिए।
अगर आप इन फंडों में यह सोचकर रकम लगा रहे हैं कि ट्रेडिंग का फायदा मिलेगा तो पहले ही तय कर लीजिए कि कितने समय तक निवश करना है। फायदा मिले या न मिले, वह समय पूरा होते ही फंड से बाहर आ जाइए।
अगर आप उतार-चढ़ाव आदि से महफूज रहना चाहते हैं तो अधिक लंबी अवधि के फंडों को अपने पोर्टफोलियो में शामिल करें। ऐसा करते मय ध्यान रखें कि फंड की अवधि उतनी ही हो, जितने समय के लिए निवेश करने का आपका इरादा है। अवधि लंबी होगी तो बीच में आया उतार-चढ़ाव बेअसर हो जाएगा और आपको उम्मीद के मुताबिक ही रिटर्न मिलेगा।
लंबी अवधि के फंडों में निवेश करने का इरादा है तो डायनमिक बॉन्ड फंड आपके लिए अच्छे विकल्प रहेंगे। पाठक समझाते हैं, ‘मान लीजिए किसी वजह से दर घटाई नहीं जाती हैं तो फंड मैनेजर उस समय आगे का अनुमान लगाएगा और उसी हिसाब से पोर्टफोलियो में तब्दीली कर लेगा।
डायनमिक बॉन्ड फंड में निवेश करने का मतलब है लंबे समय तक रकम लगाए रखने की सहूलियत। इससे आप कर अदायगी भी आगे के लिए टाल सकते हैं और फंड का प्रदर्शन बेहतर रहता है।’