सोना शुक्रवार को 60,450 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ। अक्टूबर में सोना 5.2 फीसदी ऊपर जा चुका है और इस साल अभी तक इसमें 10.6 फीसदी की उछाल आ चुकी है। इजरायल और हमास के बीच संघर्ष छिड़ने से इसके भाव और ऊपर चले गए हैं। अगर सोने की यही चाल बरकरार रही तो यह जल्द ही 61,400 रुपये प्रति 10 ग्राम से आगे पहुंच सकता है। सोने ने यह रिकॉर्ड आंकड़ा इसी साल 4 मई को छुआ था।
सेबी में पंजीकृत निवेश सलाहकार और हम फौजी इनीशिएटिव्स के मुख्य कार्य अधिकारी कर्नल (सेवानिवृत्त) संजीव गोविला कहते हैं, ‘जब भी उतार-चढ़ाव आता और शेयर बाजार नीचे जाता है तब सोने का भाव चढ़ने लगता है।’
सोने में चमक आने से पहले इसे काफी उतार-चढ़ाव भी झेलना पड़ा था। आनंद राठी शेयर्स ऐंड स्टॉक ब्रोकर्स में निदेशक – कमोडिटीज ऐंड करेंसीज नवीन माथुर बताते हैं, ‘इस साल अभी तक उतार-चढ़ाव रहा है। मई के पहले हफ्ते में कॉमेक्स पर सोना करीब 2,080 प्रति डॉलर के रिकॉर्ड भाव पर पहुंच गया था और इस महीने यह 1,820 डॉलर से नीचे चला गया। मगर भूराजनीतिक तनाव ने सोने को निवेश के लिहाज से सुरक्षित ठिकाने खोज रहे निवेशकों का दुलारा बना दिया है। इसीलिए हाजिर बाजार में एक बार फिर यह 2,000 डॉलर प्रति औंस तक पहुंचता दिख रहा है।’
निकट भविष्य में सोने का भाव एक दायरे में चलने की उम्मीद है। फेडरल रिजर्व की सख्ती के कारण बढ़ती अमेरिकी सरकारी बॉन्डों की यील्ड और मजबूत होता डॉलर सोने पर असर डाल रहे हैं।
क्वांटम ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी की फंड मैनेजर (ऑल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट्स) गजल जैन की राय है, ‘मध्यम अवधि में सोने की संभावनाएं अच्छी लग रही हैं क्योंकि अमेरिकी केंद्रीय बैंक का सख्ती का दौर अब पूरा होने को है। इससे सोने पर दबाव कुछ कम हो सकता है। अमेरिका में वृद्धि थमती देखकर यदि फेड महंगाई लक्ष्य से ऊपर रहने पर भी नीतियों में ढिलाई देता है तो सोने के भाव चढ़ना तय है।’
कई तरह के कारक सोने के भाव पर असर डाल सकते हैं।
प्रभुदास लीलाधर वेल्थ में इन्वेस्टमेंट सर्विसेज के प्रमुख पंकज श्रेष्ठ कहते हैं, ‘सोने की कीमत कई कारणों से बढ़ सकती है। यदि केंद्रीय बैंक सोने में अपना निवेश बढ़ाते हैं या महंगाई ऊंची बनी रहती है और रुपये में लगातार गिरावट रहती है तो ऐसा हो सकता है। भूराजनीतिक तनाव बढ़ने और वैश्विक आर्थिक मंदी तेज होने से भी सोने को पंख लग सकते हैं।’
पेस ग्रुप के सह-संस्थापक और मुख्य वैश्विक रणनीतिकार अमित गोयल का कहना है, ‘हमें लगता है कि अगले छह महीने में वैश्विक मंदी शुरू हो सकती है, जिसके कारण अमेरिका और पश्चिमी देशों में ब्याज दरें गिरने लगेंगी। अमेरिकी डॉलर सूचकांक भी नीचे जाएगा। ऐसा हुआ तो सोना फर्राटा भरेगा और लंबे समय तक ऊंचा ही बना रहेगा।’
इसके उलट यदि भूराजनीतिक तनाव खत्म हो जाते हैं, महंगाई के बल ढीले पड़ते हैं, वैश्विक अर्थव्यवस्था में ठहराव आता है और रुपया तगड़ा होता है तो सोना नीचे जा सकता है।
अब भी ज्यादातर लोग सोने को ईंट, गिन्नी और गहनो की शक्ल में खरीदना तथा रखना पसंद करते हैं। मगर नई पीढ़ी के समझदार निवेशक गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) जैसे बेहतर साधनों में निवेश करते हैं। जैन बताती हैं, ‘गोल्ड ईटीएफ का कारोबार एक्सचेंजों पर होता है और धातु सोने का जो भाव बाजार में चल रहा होता है, उसी पर इनका व्यापार होता है। निवेशक ईटीएफी में अपने निवेश को बाजार भाव पर ही बेच सकते हैं। उन्हें खरीदते समय ज्यादा कीमत नहीं चुकानी पड़ती और बेचते समय कम भाव मिलने का खतरा भी नहीं रहता।’
गोल्ड म्युचुअल फंड भी इसका विकल्प हैं। गोविला बताते हैं, ‘वे गोल्ड ईटीएफ में निवेश करते हैं। निवेशक उनमें सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) की सुविधा भी ले सकते हैं।’
लंबे अरसे के लिए निवेश करना है तो सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड (एसजीबी) आदर्श हैं। माथुर कहते हैं, ‘सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड में कर का फायदा मिलता है, इसीलिए धातु सोने के मुकाबले ये बेहतर विकल्प हैं।’ इन बॉन्ड की यूनिट अगर परिपक्व होने के बाद बेची जाए तो पूंजीगत लाभ पर किसी तरह का कर नहीं लगता। सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड पर परिपक्व होने तक 2.5 फीसदी सालाना का अतिरिक्त तयशुदा ब्याज भी मिलता है।
एसोसिएशन ऑफ रजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स के सदस्य जिगर पटेल की सलाह है, ‘निवेश बढ़ाने के लिए सोने में एसआईपी जैसा निवेश किया जा सकता है, जारी होने वाली हर किस्त में एक ही मात्रा या कीमत का सोना खरीदा जा सकता है।’
श्रेष्ठ कहते हैं, ‘1 अप्रैल, 2023 से गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड म्युचुअल फंड से दीर्घावधि पूंजीगत लाभ (एलटीसीजी) हटा दिया गया है। इसके बाद से सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड और भी आकर्षक हो गया है।’
मगर सोने में जरूरत से ज्यादा निवेश भी नहीं करना चाहिए। गोविला कहते हैं, ‘आपके कुल निवेश में सोने की हिस्सेदारी 5 से 10 फीसदी के बीच होनी चाहिए।’