1 अप्रैल 2023 से म्युचुअल फंड (mutual fund) से होने वाली कमाई पर टैक्स के नियमों में बदलाव किया गया है। जहां पहले टैक्स को लेकर म्युचुअल फंड की दो कैटेगरी हुआ करती थी। वहीं अब तीन कैटेगरी हो गई है। आइए देखते हैं कि इन तीनों कैटेगरी के तहत किस तरह के म्युचुअल फंड आते हैं और इन पर टैक्स नियमों में क्या बदलाव किया गया है।
इक्विटी म्युचुअल फंड (इक्विटी में एक्सपोजर 65 फीसदी से ज्यादा)
इस कैटेगरी के तहत वैसे म्युचुअल फंड आते हैं जहां इक्विटी यानी लिस्टेड कंपनियों के शेयर में एक्सपोजर 65 फीसदी से ज्यादा है। वैसे हाइब्रिड फंड जहां इक्विटी में एक्सपोजर 65 फीसदी से ज्यादा है, टैक्स नियमों के मामले में इक्विटी फंड की कैटेगरी में आते हैं।
नियमों के मुताबिक, एक वर्ष से कम अवधि में अगर आप इक्विटी म्युचुअल फंड (equity mutual funds) बेचते यानी रिडीम करते हैं तो कैपिटल गेन/लॉस शॉर्ट-टर्म मानी जाएगी। शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन पर आपको 15 फीसदी (4 फीसदी सेस मिलाकर कुल 15.6 फीसदी) शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन (STCG) टैक्स देना होगा।
लेकिन अगर आप एक वर्ष के बाद बेचते हैं तो पॉजिटिव/नेगेटिव रिटर्न लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन/लॉस मानी जाएगी। सालाना एक लाख रुपए से ज्यादा के लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन पर आपको 10 फीसदी (4 फीसदी सेस मिलाकर कुल 10.4 फीसदी) लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन (LTCG) टैक्स देना होगा। ध्यान रहे कि सालाना एक लाख रुपए तक के लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन पर टैक्स का प्रावधान नहीं है।
मान लीजिए आपको वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान इक्विटी म्युचुअल फंड के रिडेम्पशन से 2 लाख रुपये का कैपिटल गेन हुआ तो आपको सिर्फ 1 लाख रुपये के कैपिटल गेन पर LTCG टैक्स चुकाना होगा न कि पूरी कैपिटल गेन की राशि यानी 2 लाख रुपये पर। इक्विटी म्युचुअल फंड पर लगने वाले लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स पर इंडेक्सेशन बेनिफिट (Indexation benefit) नहीं मिलता।
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डेट फंड (जहां इक्विटी में एक्सपोजर 35 फीसदी से ज्यादा नहीं)
इस कैटेगरी के अंतर्गत वैसे म्युचुअल फंड आते हैं जहां इक्विटी में एक्सपोजर 35 फीसदी से ज्यादा नहीं है। इसके तहत डेट फंड (Debt Fund), गोल्ड फंड (Gold Fund), ETF, इंटरनैशनल फंड (International Fund)… आते हैं। वैसे हाइब्रिड फंड (Hybrid Fund) जहां इक्विटी में एक्सपोजर 35 फीसदी से ज्यादा नहीं है, टैक्स नियमों के मामले में इस कैटेगरी में आते हैं।
1 अप्रैल 2023 से लागू नए नियम के अनुसार इस कैटेगरी के फंड को रिडीम करने के बाद जो भी कैपिटल गेन/लॉस होगा वह शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन/लॉस मानी जाएगी। शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन आपकी इनकम में जुड़ जाएगा और आपको टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स देना होगा। जबकि 1 अप्रैल 2023 से पहले इस तरह के फंड से होने वाली कमाई पर टैक्स होल्डिंग पीरियड (खरीदने के दिन से लेकर बेचने के दिन तक की अवधि) के आधार पर लगता था।
मतलब 36 महीने से कम के होल्डिंग पीरियड पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स जबकि 36 महीने के ऊपर के होल्डिंग पीरियड पर इंडेक्सेशन (Indexation) के फायदे के साथ 20 फीसदी (सेस मिलाकर 20.8 फीसदी) लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स का प्रावधान था। इस तरह से कहें तो डेट फंड टैक्सेशन के मामले में अब FD के समकक्ष आ गया है।
इक्विटी में एक्सपोजर 35 फीसदी से ज्यादा लेकिन 65 फीसदी से ज्यादा नहीं
इस कैटेगरी के अंतर्गत वैसे म्युचुअल फंड आते हैं जहां इक्विटी में एक्सपोजर 35 फीसदी से ज्यादा लेकिन 65 फीसदी से ज्यादा नहीं है। नियमों के अनुसार अगर इस तरह के फंड में होल्डिंग पीरियड 36 महीने से कम है तो होने वाली कमाई को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन जाएगी। जो आपके ग्रॉस टोटल इनकम में जोड़ दिया जाएगा और आपको अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से कर चुकाना होगा।
लेकिन अगर होल्डिंग पीरियड 36 महीने से ज्यादा है तो कैपिटल गेन पर इंडेक्सेशन के फायदे के साथ 20 फीसदी (सेस मिलाकर 20.8 फीसदी) लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स देना होगा। इंडेक्सेशन के तहत महंगाई के हिसाब से पर्चेज प्राइस को बढा दिया जाता है। जिससे रिटर्न/कैपिटल गेन कम हो जाता है और टैक्स देनदारी में कमी आती है।
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कैपिटल गेन पर सेक्शन 87A के तहत रिबेट का फायदा नहीं
कई लोग यह समझते हैं कि म्युचुअल फंड समेत अन्य एसेट क्लास की बिक्री से होने वाले लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन को जोड़ने के बाद भी अगर टैक्सेबल इनकम 5 लाख रुपए से कम है तो आपको कोई टैक्स देने की जरूरत नहीं होगी।
उदाहरण के तौर पर मान लीजिये किसी व्यक्ति का टैक्सेबल इनकम वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान छूट और कटौती यानी एग्जेंप्शन और डिडक्शन के बाद 3 लाख रुपए है जबकि उसे इक्विटी म्युचुअल फंड के रिडेम्पशन से 1.5 लाख रुपए का लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन हुआ। इक्विटी म्युचुअल फंड के मामले में 1 लाख रुपये तक के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर टैक्स नहीं लगता इसलिए यहां सिर्फ 50 हजार रुपये के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर टैक्स लगेगा।
इस मामले में क्योंकि लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन को मिलाने (3 लाख रुपए + 1.5 लाख रुपए = 4.5 लाख रुपए) के बाद भी टैक्सेबल इनकम 5 लाख रुपए से कम है इसलिए कई लोगों को यह लग सकता है कि टैक्स देनदारी नहीं बनेगी।
लेकिन ऐसा नहीं है। टैक्स पेयर को 50 हजार रुपये के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर 10.4 फीसदी (cess मिलाकर) यानी 5,200 रुपये बतौर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) टैक्स चुकाना होगा। मतलब 50 हजार रुपये के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर इनकम टैक्स एक्ट 1961 की धारा 87A के तहत रिबेट (rebate) का फायदा नहीं मिलेगा।
डिविडेंड (dividend) प्लान पर टैक्स के नियम
अगर आपने म्युचुअल फंड के डिविडेंड प्लान में पैसा लगाया है तो आपको जो डिविडेंड मिलेगा वह आपकी इनकम में जुड़ जाएगा और आपको टैक्स स्लैब के हिसाब से उस पर टैक्स देना होगा। अगर सालाना डिविडेंड 5 हजार रुपये से ज्यादा है तो एसेट मैनेजमेंट कंपनी आपको जो डिविडेंड देगी उसमें से 10 फीसदी बतौर TDS काट लेगी।