पिछले एक वर्ष के दौरान वैल्यू फंडों ने निवेशकों को 46.8 फीसदी के औसत प्रतिफल (रिटर्न) से नवाजा है। प्रतिफल के मामले में इन फंडों ने डायवर्सिफाइड इक्विटी श्रेणी को पीछे छोड़ दिया है। हांलांकि वैल्यू फंड मिडकैप और स्मॉलकैप को टक्कर नहीं दे पाए हैं। इन फंडों के ताबड़तोड़ प्रदर्शन के बाद निवेशकों को इनसे प्रतिफल की अपनी उम्मीदों को अब थोड़ी लगाम देनी चाहिए।
वैल्यू फंड ऐसे शेयरों का चुनाव करते हैं जो अपने वास्तविक मूल्यांकन के लिहाज से थोड़े सस्ते दिखते हैं। वैल्यू फंड प्रबंधक कुछ मूल्यांकन मानदंडों को आधार बनाकर शेयरों का चयन करते हैं। वे जिन बातों पर बारीक नजर डालते हैं उनमें कम प्राइस-टू-अर्निंग रेश्यो, कम प्राइस-टू-बुक वैल्यू, ऊंची लाभांश यील्ड या इस्तेमाल के लिए मौजूद ऊंचा नकदी प्रवाह आदि शामिल होते हैं।
कुछ प्रबंधक शेयरों के अंतर्निहित मूल्य का पता (डिस्काउंटेड कैश फ्लो जैसी विधियों का इस्तेमाल कर) लगाते हैं और फिर इसकी तुलना बाजार मूल्य से करते हैं।
इस बारे में आदित्य बिड़ला सन लाइफ ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी में मुख्य निवेश अधिकारी महेश पाटिल कहते हैं, ‘निवेश यह सोचकर किया जाता है कि शेयर अपने अंतर्निहित मूल्य से कम स्तर पर उपलब्ध हैं। चूंकि, बाजार को अंतर्निहित मूल्य रास आता है इसलिए शेयर की कीमत ऊंचाई पर पहुंच जाएगी।’
वैल्यू शेयर अमूमन बुनियादी तौर पर मजबूत होते हैं। इस समय वैल्यू शेयर कुछ अल्पकालिक कारणों से अपने अंतर्निहित मूल्य से कम पर कारोबार कर रहे हैं। इन कारणों का उनकी बुनियादी मजबूती से कोई लेना-देना नहीं है।
निप्प़ॉन इंडिया म्युचुअल फंड में प्रबंधक (इक्विटी) ध्रूमिल शाह कहते हैं, ‘यह तरीका तब बेहद कारगर होता है जब किसी कंपनी का शेयर कम मूल्य पर खरीदा जाता है और उसमें बढ़त की पूरी गुंजाइश दिखती है। ‘
वैल्यू फंडों में निवेश करने से पोर्टफोलियो में अनिश्चितता एवं जोखिम कम हो सकते हैं। महेश पाटिल कहते हैं, ‘बाजार में अनिश्चितता के बीच वैल्यू फंड अधिक सुरक्षित रहते हैं और अन्य फंडों के मुकाबले निवेशकों को बेहतर सुरक्षा देते हैं। ऐसे फंड इसलिए भी अधिक सुरक्षित साबित होते हैं क्योंकि एंटरप्राइजेज वैल्यू के एक बड़े हिस्से की गणना मौजूदा आय की ऐसे ग्रोथ स्टॉक के बीच तुलना कर निकाली जाती है जिनके भविष्य में उम्दा प्रदर्शन करने की काफी संभावनाएं होती हैं।’
मूल्यांकन और वृदि्ध रणनीतियों के मिलान से किसी पोर्टफोलियो में विविधता आती है। मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट एडवाइजर में निदेशक (मैनेजर रिसर्च) कौस्तुभ बेलापुरकर कहते हैं, ‘इन दोनों के मिश्रण से पोर्टफोलियो की जोखिम झेलने की क्षमता बढ़ती है। बाजार में उतार-चढ़ाव और निवेशकों के मिजाज में बदलाव के दौरान ऐसा पोर्टफोलियो चौतरफा सुरक्षा देता है।’
इस समय मूल्यांकन पहले की तुलना में अधिक लग रहे हैं। वैल्यू-स्टाइल फंडों से निवेशक तेजी से बढ़ने वाली वाली कंपनियों के शेयरों के लिए अधिक भुगतान करने से बच जाते हैं। शाह कहते हैं, ‘वैल्यू फंडों का एक और फायदा यह है कि इससे बेमतलब कीमतों पर नजर रखने की दिक्कत से निवेशक बच जाते हैं।’
पिछले दो वर्षों में वैल्यू आधारित रणनीति ने वृदि्ध रणनीति को न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी पीछे छोड़ दिया है। पाटिल कहते हैं, ‘बाजार जब सुधार के मूड में रहता है या जब मुद्रास्फीति एवं ब्याज दरें ऊंचे स्तरों पर रहती हैं तो समय वैल्यू फंड अच्छा प्रदर्शन करते हैं। हाल के समय में भारत और दुनियाभर में ऐसे कई अवसर देखने में आए हैं।’
पाटिल कहते हैं कि ऐसी परिस्थितियों में निवेशक सुरक्षा के लिए कम मूल्यांकन वाले और तुलनात्मक रूप से अधिक सुरक्षित समझने जाने वाले क्षेत्रों की तरफ बढ़ते हैं। उनके अनुसार इसे वैल्यू शेयरों की रेटिंग काफी बढ़ जाती है।
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम इन फंडों के शानदार प्रदर्शन में योगदान देने में आगे रहे हैं। इन कंपनियों के शेयर ज्यादातर वैल्यू कैटेगरी में आते हैं। पिछले साल की शुरुआत के समय सभी तरह के बाजार पूंजीकरण वाली कंपनियों का मूल्यांकन आकर्षक रहा था। शाह कहते हैं, ‘इन शेयरों के वित्तीय प्रदर्शन में सुधार के साथ अनुकूल माहौल से वैल्यू शेयरों को बेहतर प्रदर्शन करने में मदद मिली है।‘
शाह बिजली क्षेत्र के शेयरों का उदाहरण देते हैं। उनके अनुसार ऑर्डर (ठेके) बढ़ने से भविष्य में इन शेयरों के प्रदर्शन को लेकर संभावनाएं बढ़ी हैं और रेटिंग में भी सुधार हुआ है।
पिछले साल बाजार में तेजी के बाद अब मूल्यांकन में अंतर अब कम हो गया है। शाह का कहना है कि निवेशकों को वैल्यू फंडों से मिलने वाले प्रतिफल को लेकर अपेक्षाएं थोड़ी कम करनी चाहिए।
हालांकि, शाह का कहना है कि कुछ ऐसे खंड जरूर हैं जिनमें मजबूत कंपनियों के शेयर उनके ऐतिहासिक निचले स्तर के मूल्यांकन के करीब हैं जिससे दीर्घ अवधि में निवेश के लिए गुंजाइश बन जाती है।
वैल्यू फंडों में निवेश के लिए धैर्य रखना पड़ता है। बेलापुरकर कहते हैं, ‘इन फंडों में निवेश की रणनीति के सकारात्मक परिणाम देखने में काफी समय लगता है। इसे देखते हुए निवेशकों को धैर्य तो रखना पड़ता है। पिछले दशक में ज्यादातर समय वैल्यू शेयरों ने उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं किया है। रिटर्न में भी उतार-चढ़ाव दिखा है।‘
फंड प्रबंधक कभी-कभी मूल्यांकन का ठीक अंदाजा भी नहीं लगा पाते हैं। इन शेयरों में तेजी कभी-कभी उनकी बुनियादी मजबूती से मेल नहीं खाती है।
यह अंदाजा लगाना मुश्किल होता है कि वैल्यू या ग्रोथ फंड कब मजबूत प्रदर्शन करेंगे। बेलापुरकर की सलाह है कि निवेशकों को एक संतुलित रवैया अपनाना चाहिए और पोर्टफोलियो में वैल्यू एवं ग्रोथ दोनों तरह के शेयरों का समावेश करना चाहिए।
बेलापुरकर के अनुसार नए निवेशकों को कम से कम पांच साल का समय लेकर इन फंडों में निवेश करना चाहिए जबकि मौजूदा निवेशकों को यह देखना चाहिए कि कहीं उनके पोर्टफोलियो का अधिक झुकाव वैल्यू शेयरों की तरफ तो नहीं हो गया है, अगर ऐसा है तो पोर्टफोलियो को संतुलित करना चाहिए।