अजीत कुमार
अमेरिका में ब्याज दरों में मई के बाद बढ़ोतरी की बेहद कम संभावना और वैश्विक अर्थव्यवस्था में जारी अनिश्चितता के बीच इस अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) पर सोने (gold) में निवेश लोगों के लिए शुभ हो सकता है। निवेश के सुरक्षित विकल्प के तौर पर निवेशकों की दिलचस्पी सोने में हमेशा रही है।
एमसीएक्स (MCX) पर सोने का बेंचमार्क जून कॉन्ट्रैक्ट शुक्रवार यानी अप्रैल 21, 2023 को कारोबार के दौरान 60 हजार के स्तर से नीचे यानी 59,622 रुपये रुपये प्रति 10 ग्राम तक चला गया। इससे पहले इसी महीने 13 अप्रैल को MCX पर सोने ने 61,371 रुपये का ऑल टाइम हाई बनाया था। इस तरह से पिछले एक हफ्ते में सोने की कीमतों में तकरीबन 1,700 रुपये की कमी आई है।
जबकि बीते अक्षय तृतीया के मुकाबले कीमतों में 18 फीसदी का इजाफा हुआ है। पिछले साल अक्षय तृतीया (3 मई, 2022) पर सोने की कीमत 50,808 रुपये प्रति 10 ग्राम थी। ठीक छह महीने पहले भी धनतेरस के समय सोने की कीमत 50 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम के करीब थी।
पिछले 11 अक्षय तृतीया पर सोने और चांदी की कीमतेंं:
सोने की वैश्विक कीमतों में भी इस हफ्ते तकरीबन 1 फीसदी की कमी आई है। लंदन हाजिर बाजार (London Spot Market) में हफ्ते के अंतिम कारोबारी दिन सोना 1.5 फीसदी टूटकर 1,975 डॉलर प्रति औंस दर्ज किया गया। जबकि ठीक 6 महीने पहले धनतेरस के समय वैश्विक कीमतें 1,620 डॉलर प्रति औंस के आस-पास थी।
केडिया एडवाइजरी के एमडी अजय केडिया के मुताबिक अगले अक्षय तृतीया तक घरेलू बाजार में सोने की कीमत बढ़कर 68 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम तक जा सकती है। यूएस डॉलर इंडेक्स (US Dollar Index) में कमजोरी, अमेरिका में ब्याज दरों में और बढ़ोतरी की कम होती संभावना, ग्लोबल इकॉनमी को लेकर जारी अनिश्चितता, विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों की तरफ से येलो मेटल (yellow metal) की बढ़ी खरीद …. वगैरह कुछ ऐसे फैक्टर्स हैं जो सोने की कीमतों के लिए यकीनन सपोर्टिव हैं। ज्यादातर जानकार इस बात को लेकर सहमत हैं कि यूएस फेडरल रिजर्व मई में ब्याज दरों में 0.25 फीसदी की वृद्धि करने के बाद इस साल कोई और इजाफा न करे।
अर्थव्यवस्था में जब अनिश्चितता का दौर होता है, वैश्विक स्तर पर निवेश के सुरक्षित विकल्पों को लेकर सोने को अमेरिकी डॉलर और अमेरिकी सरकारी बॉन्ड से होड़ लेनी पड़ती है। निवेशकों को सोने के ऊपर कोई यील्ड या ब्याज नहीं मिलता है। इसलिए अमेरिकी सरकारी बॉन्ड के यील्ड में गिरावट से निवेशकों के लिए सोने की चमक बढ़ जाती है। इस कैलेंडर वर्ष में अभी तक 10 वर्षीय अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड पर यील्ड में तकरीबन 35 फीसदी की गिरावट आई है। शुक्रवार को यह 3.53 फीसदी तक पहुंच गया। ठीक छह महीने पहले यह 4 फीसदी से ऊपर चला गया था।
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सोने की कीमतों का अमेरिकी डॉलर या डॉलर इंडेक्स के साथ भी मजबूत रिश्ता है। इसको ऐसे समझिए – जब डॉलर बढ़ता है तो सोने की कीमतें गिरती हैं, वहीं जब डॉलर कमजोर होता है तो सोने की चमक में इजाफा होता है। वर्ष 2023 में डॉलर इंडेक्स अब तक 1.53 फीसदी कमजोर हुआ है जिसकी वजह से सोना सहित अन्य कमोडिटी की कीमतों को सपोर्ट मिला है।
जानकारों के मुताबिक, भू-राजनीतिक तनाव (geo-political tensions) और वैश्विक मंदी की चिंताओं के बीच निवेश के ज्यादा सुरक्षित विकल्प (safe-haven) के तौर पर सोने में खरीदारी दिख रही है। अगर डॉलर में कमजोरी आगे भी रहती है तो सोने की कीमतों को सपोर्ट मिलना जारी रह सकता है।
मौजूदा परिस्थितियों में आप अपने पोर्टफोलियो में 15 फीसदी तक सोना रख सकते हैं। सोना पोर्टफोलियो में डाइवर्सिफिकेशन (diversification) की जरूरत भी पूरा करता है। भारत में लोगों की दिलचस्पी अभी भी फिजिकल सोने में है, लेकिन साथ में लोग अब यह भी समझने लगे हैं कि फिजिकल गोल्ड के बजाय पेपर/इलेक्ट्रॉनिक गोल्ड में निवेश करना ज्यादा बेहतर है।
इसलिए आज बात इलेक्ट्रॉनिक गोल्ड में निवेश के विभिन्न विकल्पों यानी सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड (Sovereign Gold Bond), गोल्ड ईटीएफ (Gold ETF) और गोल्ड सेविंग फंड (गोल्ड म्युचुअल फंड/Gold Mutual Fund) की करेंगे, ताकि लोगों को किसी एक विकल्प के चयन में आसानी हो सके।
सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड (Sovereign Gold Bond और गोल्ड ईटीएफ (Gold ETF) दोनों में कम से कम 1 ग्राम गोल्ड के बराबर वैल्यू के एक यूनिट में निवेश कर सकते हैं। जबकि गोल्ड म्युचुअल फंड (gold mutual fund) में आप न्यूनतम 1,000 रुपये से एसआईपी (SIP) शुरू कर सकते हैं। इस स्कीम यानी गोल्ड म्युचुअल फंड के तहत Gold ETF में निवेश किया जाता है। Gold ETF और गोल्ड फंड में अधिकतम निवेश की कोई सीमा नहीं है। जबकि सॉवरिन बॉन्ड में एक व्यक्ति एक वित्त वर्ष में अधिकतम 4 किलोग्राम सोने की कीमत के बराबर यूनिट में निवेश कर सकता है।
ध्यान रहे गोल्ड ईटीएफ, गोल्ड फंड और सॉवरिन बॉन्ड के रिडेम्प्शन (redemption) के बाद सोने के वैल्यू के बराबर कीमत भारतीय रुपये में ही मिलेगी, फिजिकल गोल्ड नहीं।
Gold ETF को आप स्टॉक एक्सचेंज (NSE) पर कैश ट्रेडिंग के लिए निर्धारित समय के दौरान कभी भी खरीद या बेच सकते हैं। वहीं गोल्ड फंड में निवेश को भी अन्य म्युचुअल फंड की तरह उसके नेट एसेट वैल्यू (NAV) पर दिन के कारोबार के बाद बेचा जा सकता है, जबकि निवेश करने के लिए आपको फंड हाउस को अप्रोच करना होगा। फंड हाउस को अप्रोच आप या तो सीधे या एग्रीगेटर्स (aggregators), एजेंट वगैरह के जरिए कर सकते हैं। वहीं सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड सरकार की तरफ से आरबीआई समय-समय/निश्चित अंतराल पर जारी करती है।
Gold ETF के लिए डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट (demat and trading account) का होना जरूरी है। जबकि सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड के लिए डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट का होना जरूरी नहीं है। हां, अगर आप सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड की एक्सचेंज पर ट्रेडिंग करना चाहते हैं तो आपको बॉन्ड को डीमैट फॉर्म में लेना होगा। जिसके लिए डीमैट अकाउंट का होना जरूरी है। गोल्ड फंड के लिए डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट का होना जरूरी नहीं है। मतलब सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड और गोल्ड ईटीएफ की तरह गोल्ड फंड की ट्रेडिंग नहीं की जा सकती।
सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड में शुरुआती इन्वेस्टमेंट पर 2.5 फीसदी वार्षिक ब्याज मिलता है। यह हर 6 महीने में देय होता है। लेकिन ब्याज की रकम टैक्सेबल है। हालांकि ब्याज पर कोई TDS नहीं कटता है। जबकि गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड फंड पर आपको कुछ भी ब्याज नहीं मिलता।
गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड फंड मैनेज करने के एवज में फंड हाउस निवेशक से चार्ज वसूलते हैं जिसे टोटल एक्सपेंस रेश्यो (Total Expense Ratio) कहते हैं। गोल्ड फंड को एक निश्चित अवधि से पहले रिडीम करने पर एग्जिट लोड (Exit Load) भी चुकाना होता है। जबकि सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड में इस तरह का कोई अतिरिक्त एक्सपेंस नहीं है।
जरूरत पड़ने पर गोल्ड बॉन्ड के एवज में बैंक से लोन भी लिया जा सकता है। लेकिन गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड फंड पर यह सुविधा नहीं है।
गोल्ड ईटीएफ को स्टॉक एक्सचेंज पर कभी भी खरीदा या बेचा जा सकता है। गोल्ड फंड को भी कभी भी रिडीम किया जा सकता है। मतलब लिक्विडिटी की समस्या यहां नहीं है। लेकिन सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को कभी भी बेचा नहीं जा सकता है। बॉन्ड की मैच्योरिटी पीरियड आठ वर्ष की है। लेकिन पांच साल के बाद बॉन्ड को बेचने का विकल्प यानी एग्जिट ऑप्शन है, जिसका इस्तेमाल ब्याज भुगतान की तारीख पर किया जा सकता है।
अगर आपने डीमैट फॉर्म में भी सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड लिया है तो आप इसे स्टॉक एक्सचेंज पर कभी भी शॉर्ट कर (बेच) सकते है। लेकिन यहां आपको या तो पर्याप्त खरीदार नहीं मिलेंगे या फिर आपको डिस्काउंट पर बेचना पड़ेगा। दूसरे मैच्योरिटी से पहले रिडीम करने पर इंडेक्सेशन का फायदा जाता रहेगा। यानी गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड फंड की तुलना में सॉवरिन बॉन्ड में लिक्विडिटी कम है।
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अगर सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को मैच्योरिटी के बाद रिडीम करते हैं तो आपको रिटर्न पर कोई टैक्स नहीं देना होगा। लेकिन गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड फंड पर इस तरह का टैक्स बेनिफिट नहीं है। गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड फंड पर टैक्स डेट फंड (35 फीसदी से ज्यादा इक्विटी नहीं) की तरह लगता है। मतलब अगर आप इन्हें बेचते हैं तो उससे होने वाली कमाई को आपकी कुल आय में जोड़ दिया जाएगा। इस पर आपको अपने टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स चुकाना होगा।
सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को अगर मैच्योरिटी से पहले यानी 8 साल से पहले रिडीम करते हैं तो फिजिकल गोल्ड की तरह ही टैक्स देना होगा। मतलब अगर आप इन्हें खरीदने के बाद 36 महीने पूरे होने से पहले ही बेचते हैं तो उससे होने वाली कमाई को शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन (STCG) माना जाएगा और आपकी कुल आय में जोड़ दिया जाएगा। जिस पर आपको अपने टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स चुकाना होगा। लेकिन अगर आप 36 महीने पूरे होने के बाद बेचते हैं तो आपको लाभ यानी कैपिटल गेन पर इंडेक्सेशन के फायदे के साथ 20 फीसदी (सेस मिलाकर 20.8 फीसदी) लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स (LTCG) चुकाना होगा। इंडेक्सेशन के तहत पर्चेज प्राइस को महंगाई (cost inflation index) के हिसाब से बढ़ा दिया जाता है, जिससे कैपिटल गेन कम हो जाता है और टैक्स देनदारी घटती है।
कहने का मतलब सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड पर टैक्स बेनिफिट तभी है जब आप उसे मैच्योरिटी पीरियड तक होल्ड करते हैं।
पेपर गोल्ड के अतिरिक्त आप डिजिटल गोल्ड (digital gold) में भी निवेश कर सकते हैं।
डिजिटल गोल्ड (Digital Gold) सोना खरीदने बेचने का सबसे नया जरिया है। Google Pay, Paytm, MobiKwik और PhonePe जैसे मोबाइल वॉलेट के अलावा पीसी ज्वैलर्स, कल्याण ज्वैलर्स, तनिष्क, सेनको गोल्ड ऐंड डायमंड जैसे कई ज्वैलरी ब्रांड भी डिजिटल गोल्ड उपलब्ध कराते हैं।
आप सीधे एमएमटीसी-पीएएमपी, ऑगमोंट गोल्ड और सेफगोल्ड से भी डिजिटल गोल्ड खरीद सकते हैं। आप न्यूनतम 1 रुपये से डिजिटल गोल्ड में निवेश कर सकते हैं। डिजिटल गोल्ड पर भी फिजिकल गोल्ड की तरह टैक्स लगता है।
अगर आप बॉन्ड को उसकी मैच्योरिटी पीरियड तक होल्ड कर सकते हैं तो आपके लिए सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड बेहतर है। लेकिन अगर आप कभी भी खरीदना या बेचना (लिक्विडिटी) चाहते हैं, यानी 8 साल तक होल्ड नहीं कर सकते हैं तो आपको गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड फंड में निवेश करना चाहिए।