वित्त मंत्रालय ने गलत तरीके से बीमा पॉलिसी बेचने के कारण पिछले दिनों सार्वजनिक बैंकों की जमकर खिंचाई की। केंद्रीय सतर्कता आयोग ने भी जबरदस्ती बीमा पॉलिसियां बेचने के मामले में आगाह किया है।
उसने कहा कि पॉलिसी की बिक्री से मिलने वाले कमीशन के लालच में दिए जा रहे कर्ज की गुणवत्ता पर असर पड़ता है। सरकार और उसके विभाग गलत तरीके से पॉलिसियों की बिक्री रोकने के लिए उपाय करेंगे मगर ग्राहकों को भी खरीदते समय पूरी सावधानी बरतनी चाहिए।
पैकेज डील से बचें
अक्सर बैंकर होम लोन मंजूर करने के लिए पहले बीमा पॉलिसी खरीदने की शर्त ग्राहकों पर थोप देते हैं। कभी-कभी वे प्रीमियम की रकम को कर्ज की रकम में भी जोड़ देते हैं। उस सूरत में कर्ज लेने वाला होम लोन पर तो ब्याज चुकाता ही है, बीमा पॉलिसी खरीदने के लिए उधार ली गई रकम पर भी उसे ब्याज भरना पड़ता है।
एमबी वेल्थ फाइनैंशियल सॉल्यूशंस के संस्थापक एम बर्वे समझाते हैं, ‘न तो बैंकिंग नियामक और न ही बीमा नियामक ने कहा है कि ग्राहक को कर्ज लेते समय बैंक से बीमा पॉलिसी खरीदनी ही पड़ेगी।’
अगर कोई बैंक इस बात पर जोर देता है कि बीमा पॉलिसी के जरिये कर्ज को सुरक्षित बनाया जाए तो इसमें कोई हर्ज नहीं है। वह ऐसा इसलिए करता है ताकि कर्ज लेने वाले की मौत या घर को नुकसान होने की सूरत में उसे नुकसान नहीं उठाना पड़े।
आप क्या करें
जब आप कोई मकान खरीदते हैं तो होम इंश्योरेंस खरीदें यानी घर का बीमा कराएं। अगर मकान को आग या किसी प्राकृतिक आपदा से नुकसान पहुंचता है तो इस पॉलिसी के तहत आपको मुआवजा मिलेगा।
इसके अलावा होम लोन की देनदारी से अपने परिवार को बचाने के लिए टर्म प्लान भी लेना चाहिए। यदि आपको कुछ हो जाता है तो टर्म प्लान से मिली रकम का इस्तेमाल कर्ज चुकाने में किया जा सकता है। इससे आपके परिवार को अचानक आर्थिक संकट से नहीं जूझना पड़ेगा।
बर्वे की सलाह है, ‘किसी बैंक से बीमा पॉलिसी खरीदने के बजाय विभिन्न बीमा कंपनियों की टर्म बीमा योजना खंगालिए, उनकी तुलना कीजिए और अपने हिसाब से सही विकल्प चुन लीजिए।
झूठे वादे
कभी-कभी विक्रेता पॉलिसी की विशेषताओं और लाभों के बारे में गलत जानकारी देकर खरीदारों को गुमराह करते हैं। पॉलिसीबाजार डॉट कॉम के कारोबार प्रमुख (जीवन बीमा) हर्षित गंगवार बताते हैं, ‘पॉलिसी की विशेषताएं बढ़ा-चढ़ाकर बताते हुए, गलत रिटर्न का वादा करते हुए या प्रीमियम की अवधि के बारे में गलत जानकारी देते हुए आपको गुमराह किया जा सकता है।’
जिन पॉलिसियों में बीमा और निवेश एक साथ होता है, उन्हें अक्सर गलत तरीके से बेचा जाता है क्योंकि टर्म बीमा के मुकाबले ऐसी पॉलिसियों पर विक्रेता को अधिक कमीशन मिलता है।
आनंद राठी इंश्योरेंस ब्रोकर्स में असिस्टेंट वाइस प्रेसिडेंट (जीवन बीमा) दिनेश भोई कहते हैं, ‘बिक्री के समय तमाम तरह के झूठे वादे किए जाते हैं। ग्राहकों से कहा जा सकता है कि यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (यूलिप) कम अवधि में गारंटीशुदा रिटर्न देते हैं। उनसे यह भी कहा जा सकता है कि प्रीमियम केवल पहले तीन साल तक देना होता है और उसके बाद पॉलिसी तीन साल में जमा हुए मुनाफे या ब्याज के बल पर ही चलती रहती है। रिटर्न बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा सकता है। कुछ विक्रेता चुकाए गए प्रीमियम पर कैशबैक की बात कहकर भी ग्राहकों को लुभाते हैं।’
आप क्या करें
गलत बिक्री के जाल में फंसने से बचने के लिए कुछ बुनियादी नियमों का पालन करें। पॉलिसीएक्स डॉट कॉम के संस्थापक एवं मुख्य कार्याधिकारी नवल गोयल ने कहा, ‘यदि किसी पॉलिसी का प्रतिफल काफी अच्छा दिखता है या एजेंट काफी दबाव डाल रहा हो तो खरीदने से पहले खुद उसके बारे में जानकारी जुटाएं।’
पॉलिसी की जांच-परख के लिए ऑनलाइन सर्च कर सकते हैं। गंगवार ने कहा, ‘पॉलिसी खरीदार पहले सूचना के ऐसे स्रोत पर भरोसा कर लेते थे, जिसकी सच्चाई का कोई सबूत नहीं होता। अब वे विभिन्न बीमा कंपनियों की पॉलिसियों, लाभ और प्रीमियम की तुलना आसानी से कर सकते हैं।’
खरीदारी के समय हामी भरने से पहले अन्य बिक्री मामलों पर गौर करें। सिक्योर नाउ के सह-संस्थापक एवं सीईओ कपिल मेहता ने कहा, ‘इस कवायद से स्पष्ट तौर पर भुगतान एवं लाभ- गारंटी एवं बिना गारंटी वाले दोनों- की सही जानकारी मिल जाएगी।’
बाद में जब आपको पॉलिसी दस्तावेज मिल जाए तो व्यक्तिगत विवरण, बिक्री विवरण और अपने प्रपोजल फॉर्म को जांच लें। प्रोपोजल फॉर्म की जांच करना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि खरीदार अक्सर खाली फॉर्म पर हस्ताक्षर करते हैं और उसे पूरा करने के लिए जिम्मेदारी एजेंट पर छोड़ देते हैं। ऐसे में यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि आपकी ओर से भरी गई जानकारी सही है।
फ्री-लुक प्रावधान को बदलना
ग्राहकों को 15 से 30 दिनों की फ्री-लुक अवधि प्रदान की जाती है। इस अवधि के दौरान ग्राहक पॉलिसी दस्तावेज देख सकता है। अगर उसे कुछ पसंद नहीं है तो वह पॉलिसी रद्द करने के लिए स्वतंत्र है। इससे बचने के लिए एजेंट बीमाकर्ताओं से पॉलिसी दस्तावेज ले लेते हैं और फ्री-लुक अवधि समाप्त होने के बाद उसे ग्राहक को सौंपते हैं।
आप क्या करें
पॉलिसी दस्तावेज प्राप्त करते समय डिलीवरी की तारीख के साथ एजेंट के हस्ताक्षर लेना बेहतर रहेगा।