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कब हों बाहर म्युचुअल फंड योजनाओं से

Last Updated- December 07, 2022 | 12:05 PM IST

सेंसेक्स के 13,000 के स्तर पर आने के बाद कई निवेशकों के मन में उथल-पुथल मच रही है कि क्या उन्हें अपनी म्युचुअल फंड योजनाओं से बाहर हो जाना चाहिए या योजनाबध्द निवेश योजनाओं (सिप) की मासिक किश्तें रोक दी जानी चाहिए।


हालांकि, अगर आपने अच्छे विशाखित इक्विटी फंडों में निवेश किया है तो उनके सिप की मासिक किश्तों को रोकने का कोई कारण नजर नहीं आता है। आमतौर पर म्युचुअल फंडों में निवेश करने का मतलब है कि आप दीर्घावधि के लिए एक संबंध बना रहे हैं जिसमें अच्छे समय के साथ-साथ बुरा वक्त भी देखने को मिलता है।

हालांकि, अधिकांश निवेशक बाजार में आई तेजी के दिनों में खुश नजर आते हैं लेकिन थोड़ी गिरावट आने की संभावनाओं पर हाय-तौबा भी मचाने लगते हैं। आज हम उन परिस्थितियों पर विचार करेंगे जिसके तहत आपको म्युचुअल फंड योजनाओं से बाहर होने का कठोर कदम उठाना चाहिए।

किसी फंड का लगातार खराब प्रदर्शन

वक्त ऐसा भी रहा है जब एक स्टार फंड प्रबंधक भी अच्छे प्रतिफल उपलब्ध नहीं करा पाया है। खास तौर से वर्तमान दौर में जब निवेश के अवसरों की कमी है तो सभी फंड नकदी लेकर बैठे हुए हैं। ऐसी परिस्थिति में फंड प्रबंधकों पर अंगुली उठाना गलत होगा। हालांकि, अगर बाजार के अच्छे समय में भी किसी फंड का प्रदर्शन बढ़िया नहीं रहता है तो उससे बाहर होने में ही भलाई है।

उदाहरण के लिए मान लीजिए कि कोई फंड अपनी शर्तों के मुताबिक इक्विटी में अपना सारा कोष लगा सकता है और बाजार के अच्छे दौर में वह इक्विटी में निवेश नहीं करता है तो उसका निर्णय गलत है। हालांकि, यह केवल अंदाजा लगाना भी हो सकता है। लेकिन अगर कोई फंड प्रबंधक लगातार ऐसे ही निर्णय लेता है तो वह गलत कर रहा है।

एचडीएफसी प्रूडेंस फंड इसका एक अच्छा उदाहरण है। पिछले वर्षों में इसका ट्रैक रेकॉर्ड बहुत बढ़िया रहा है लेकिन पिछले कई तिमाहियों में इसका प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। मिड-कैप शेयरों में निवेश करना इसका सबसे बड़ा कारण रहा है। इसलिए इक्विटी में कम निवेश (74 प्रतिशत) करने के बावजूद इसका प्रदर्शन एचडीएफसी टॉप 200 (इक्विटी में 95 प्रतिशत का निवेश) की तुलना में काफी बुरा रहा है।

पिछले एक साल में जहां एचडीएफसी प्रूडेंस ने -14.45 प्रतिशत का प्रतिफल दिया है (श्रेणी का औसत प्रतिफल -10.09 प्रतिशत) वहीं एचडीएफसी  टॉप 200 ने -8.92 प्रतिशत का प्रतिफल दिया है (श्रेणी का औसत प्रतिफल -17.25 प्रतिशत)।

फंड प्रबंधक छोड़ जाए

फंड हाउस अक्सर फंड प्रबंधकों के प्रदर्शन को प्रोत्साहित करते हैं और उन्हें भुनाते हैं। नई योजनाएं भी स्टार फंड प्रबंधकों के नामों पर लॉन्च की जाती हैं। हालांकि, जब फंड प्रबंधक अपनी नौकरी बदलते हैं तो फंड हाउस ये कहते नजर आते हैं कि हमारे फंड प्रोसेस ओरियेंटेड है और किसी व्यक्ति विशेष के जाने से इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला। उदाहरण के तौर पर जब संदीप सभरवाल एसबीआई म्युचुअल फंड में थे तो एसबीआई ब्लूचिप फंड के लॉन्च के दौरान उनके कौशल की तारीफ के पुल बांधे जा रहे थे।

लेकिन, जब उन्होंने एसबीआई म्युचुअल फंड छोड़ा तो किसी से कुछ भी इस बारे में सुनने को नहीं मिला। सौभाग्य की बात रही कि उनके बाद जो फंड प्रबंधक आए वे भी सभरवाल जैसे ही निपुण निकले। यद्यपि किसी स्टार फंड प्रबंधक के आने या जाने को मानदंड नहीं बनाना चाहिए लेकिन नवीनतम फैक्ट शीट देखने से आपको यह पता चल जाएगा कि शेयर, परिसंपत्ति आवंटन या नीतियों के मामले में पोर्टफोलियो में किस प्रकार का परिवर्तन किया गया है।

फंड का आकार

अक्सर यह देखा जाता है कि बाजार परिस्थितियों और फंड प्रबंधक की निवेश शैली से आकार के  नजरिये से फंड कितनी जल्दी बढ़ता है। रिलायंस ग्रोथ एक अरब डॉलर की सीमा पार करने के बावजूद बेहतर प्रदर्शन करने के साथ-साथ निरंतर चमकता रहा है। दूसरी तरफ कुछ ऐसे फंड भी हैं जिनका कोष 100 करोड़ रुपये जितना छोटा है लेकिन उनके द्वारा दिया गया प्रतिफल घटिया रहा है। अतिरिक्त कोष का निवेश कहां किया जाए इस कारण से अगर कोई फंड अभिदान बंद करता है तो यह संकेत है कि आप उस फंउ से अपने पैसे निकाल कर कहीं और निवेशित करें।

किसी खास वित्तीय लक्ष्य के लिए

किसी फंड को बेचने का यह सबसे महत्वपूर्ण कारण है। जब आप अपने वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त कर चुके हैं या नया लक्ष्य निर्धारित कर रहे हैं तो आप अपने कोष को अंशत: या पूर्णत: ऋण में निवेशित कर सकते हैं। जरुरत के ऐसे समय में किसी फंड के यूनिटों को बेचना तर्क संगत है क्योंकि आप अपने कोष को किसी ज्यादा जोखिम वाले जगह पर निवेशित नहीं कर रहे हैं।

पोर्टफोलियो के पुनर्संतुलन के लिए

हम सबके पोर्टफोलियो में परिसंपत्तियों का आवंटन जोखिम उठाने की क्षमता और निर्धारित लक्ष्य के अनुसार निवेश के विभिन्न विकल्पों में होता है। इसमें प्राय: ऋण, इक्विटी, रियल एस्टेट, सोना आदि शामिल होते हैं। वित्तीय व्यवस्था में बदलाव के साथ ही आपको अपने पोर्टफोलियो को पुनर्संतुलित करने की जरुरत पड़ सकती है। मान लीजिए आप ज्यादा जोखिम उठा सकते थे इसलिए आपने इक्विटी म्युचुअल फंड में निवेश किया लेकिन अब जोखिम उठाने की क्षमता कम हो गई है। ऐसे में आपको जोखिम से मुक्त होने के लिए अपने इक्विटी फंड के निवेश को घटाना चाहिए।
(लेखक माई फाइनैंसियल एडवाइजर के निदेशक हैं।)

First Published - July 20, 2008 | 11:04 PM IST

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