बेंचमार्क सूचकांकों में लंबे समय से जारी कमजोरी का असर बाजार में चढ़ने और गिरने वाले शेयरों के अनुपात पर पड़ता दिख रहा है। बाजार में ज्यादातर शेयर अब लंबी अवधि के मूविंग एवरेज से नीचे कारोबार कर रहे हैं। 200 दिन के सामान्य मूविंग एवरेज को लंबी अवधि का मूविंग एवरेज कहा जाता है। इससे ऊपर कारोबार करने वाले शेयरों को सकारात्मक यानी तेजी जबकि इससे नीचे वाले शेयरों को मंदी वाला माना जाता है।
शुक्रवार को निफ्टी-500 के 316 शेयर यानी 63 फीसदी इस अहम मूविंग एवरेज से नीचे फिसल गए। इसी तरह निफ्टी-50 के 31 शेयर 200 दिन के सामान्य मूविंग एवरेज से नीचे कारोबार कर रहे थे। निफ्टी मिडकैप-150 और स्मॉलकैप 250 सूचकांकों पर नजर डालें तो 150 मिडकैप में से 95 और 250 स्मॉलकैप में से 144 लंबी अवधि के औसत से नीचे कारोबार करते नजर आए।
एनएसई का निफ्टी-50 इंडेक्स 23,344 के निचले स्तर तक फिसल गया था। जब इसकी लंबी अवधि के मूविंग एवरेज से तुलना करते हैं तो इंडेक्स पिछले पांच कारोबारी सत्र में इससे नीचे चल रहा है। निफ्टी 200 का रोजाना सामान्य मूविंग एवरेज अभी 23,907 है। ऐंजल वन के शोध प्रमुख समीत चह्वाण के मुताबिक निफ्टी अपने अहम समर्थन स्तर करीब 23,500-23,450 की परख करता दिख रहा है जो दिसंबर के बाद से ठोस आधार रहा है।
उन्होंने कहा कि उपरोक्त स्तरों से लगातार गिरावट के बाद यह 23,200-23,000 की ओर जा सकता है। साथ ही तात्कालिक प्रतिरोध स्तर गिरावट की रेखा के ऊपरी सिरे यानी करीब 23,700-23,750 के पास नजर आता है। इसके बाद 23,900-24,000 का मजबूत बाधा है जो 200 दिन का सामान्य मूविंग एवरेज है। विश्लेषकों ने कहा कि फंडामेंटल के स्तर पर वैश्विक बाजार अमेरिका में नए नेतृत्व के संरक्षणवादी उपाय लागू करने और चीन में अवस्फीति के बनते हालात को लेकर चिंतित हैं।
इक्विनॉमिक्स रिसर्च के संस्थापक और शोध प्रमुख जी. चोकालिंगम ने कहा कि अमेरिकी डॉलर में लगातार मजबूती, चीन की अर्थव्यवस्था में कमजोरी के संकेत और अमेरिका में नए प्रशासन के संरक्षणवादी कदमों की संभावना से वैश्विक बाजारों में उतारचढ़ाव बना रह सकता है और अंततः अल्पावधि में इसका असर भारतीय बाजारों में एफआईआई के निवेश पर भी नजर आ सकता है।
चोकालिंगम ने कहा कि आमतौर पर एफआईआई कोई अहम फैसला लेने से पहले बजट का इंतजार करेंगे। साथ ही बड़ी निवेश प्रतिबद्धता से पहले वे स्थानीय मुद्रा के स्थिर होने का भी इंतजार करेंगे। ऐसे में बजट पेश होने या मार्च 2025 तक उनकी बिकवाली जारी रह सकती है।
पिछले चार महीने से विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय बाजार में आक्रामक तरीके से बिकवाल बने हुए हैं। एनएसई के आंकड़ों के मुताबिक जनवरी में अब तक उनकी बिकवाली 19,103 करोड़ रुपये की रही है। पिछले चार महीने में (अक्टूबर 2024 से) उन्होंने यहां 1.97 लाख करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं।
वेल्थमिल्स सिक्योरिटीज के निदेशक क्रांति बाथिनी ने कहा कि एफपीआई की लगातार बिकवाली और वैश्विक बाजारों में एकीकरण भारत में गिरावट की दो अहम वजह हैं। हालांकि उनका मानना है कि लंबी अवधि के मूविंग एवरेज की परख के बाद बाजारों में सुधार का रुझआन होता है। आगे चलकर तीसरी तिमाही के नतीजे और आम बजट बाजार की मनोदशा बहाल करने में मदद कर सकते हैं।