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अदाणी-हिंडनबर्ग मामले में विशेष जांच की जरूरत नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने क्यों किया CBI या SIT जांच से इनकार?

सेबी जांच को अ​धिक समय तक नहीं लटका सकता। इसलिए उसे जांच की प्रक्रिया अ​धिकतम तीन महीने के भीतर पूरी करनी होगी।

Last Updated- January 03, 2024 | 11:14 PM IST
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सर्वोच्च न्यायालय ने अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अदाणी समूह पर लगाए गए आरोपों की जांच किसी विशेष जांच टीम (एसआईटी) अथवा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपने से इनकार करते हुए आज कहा कि इसकी कोई वजह नहीं है। इसकी जांच फिलहाल भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) कर रहा है। अदालत ने उससे जांच तीन महीने के भीतर पूरी करने को कहा।

अदालत ने बाजार नियामक और केंद्र सरकार को यह जांचने का निर्देश भी दिया कि शॉर्ट सेलिंग पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट कानून का उल्लंघन तो नहीं है और इससे निवेशकों को कितना नुकसान हुआ है।

आदेश में कहा गया है, ‘सेबी ने अदाणी समूह के मामले में 24 में से 22 जांच पूरी कर ली है। उसने बताया है कि विदेशी नियामकों से जानकारी अभी तक नहीं मिल पाने के कारण दो मामलों में जांच पूरी नहीं हो सकी है। सेबी की ओर से सॉलीसिटर जनरल ने जांच तेजी से पूरी करने का आश्वासन दिया है। सेबी जांच को अ​धिक समय तक नहीं लटका सकता। इसलिए उसे जांच की प्रक्रिया अ​धिकतम तीन महीने के भीतर पूरी करनी होगी।’

अदालत ने यह भी कहा कि सेबी को एफपीआई (विदेशी पोर्टफोलियो निवेश) और एलओडीआर (सूचीबद्धता से जुड़े दायित्व एवं खुलासों की जरूरतें) नियमों में संशोधन वापस लेने के लिए कहने का कोई वैध आधार नहीं बताया गया है। इस मामले में याची ने सेबी को एफपीआई नियम में संशोधन को वापस लेने का निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया था।

उसकी दलील थी कि कंपनी का ढांचा अपारदर्शी रखने पर लगी रोक इस संशोधन के कारण हट गई है। याची ने यह भी कहा कि सेबी को एलओडीआर नियम में संशोधन रद्द करने का निर्देश मिलना चाहिए क्योंकि इससे ‘संबंधित पक्ष’ की परिभाषा बदल गई है।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी परदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा के पीठ ने कहा, ‘हम मानते हैं कि सेबी को एफपीआई और एलओडीआर नियमों में संशोधन रद्द करने का निर्देश देने की याचिका खारिज होनी चाहिए।’

फैसला आने के बाद उद्योगपति गौतम अदाणी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ‘सत्य की जीत हुई है। सत्यमेव जयते। मैं उन लोगों का आभारी हूं जो हमारे साथ खड़े रहे। भारत की विकास गाथा में हमारा छोटा सा योगदान जारी रहेगा।’

अदालत ने कहा कि ऑर्गनाइज्ड क्राइम ऐंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) की रिपोर्ट के कारण सेबी की जांच पर संदेह नहीं किया जा सकता। ओसीसीआरपी दुनिया भर के कुछ खोजी पत्रकारों का नेटवर्क है। उसकी रिपोर्ट में अदाणी समूह के प्रवर्तकों पर शेयरों में हेराफेरी का आरोप लगाया गया है।

अदालत ने कहा, ‘ओसीसीआरपी की रिपोर्ट पर निर्भरता को खारिज कर दिया गया है और बिना सत्यापन के किसी तीसरे संगठन की रिपोर्ट पर सबूत के तौर पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।… इस मामले की जांच को सेबी से हस्तांतरित करने का कोई आधार नहीं है।’

याची ने यह भी आरोप लगाया था कि जनवरी 2014 में डीआरआई (राजस्व खुफिया निदेशालय) द्वारा भेजे गए पत्र पर भरोसा करते हुए सेबी ने अपनी जांच में लापरवाही बरती थी। पत्र में अदाणी समूह द्वारा बिजली उपकरणों के आयात का अधिक मूल्यांकन दिखाकर शेयर बाजार में संभावित हेराफेरी के बारे में सेबी के चेयरपर्सन को आगाह किया गया था।

अदालत ने इस आरोप को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि याची एक ही मुद्दे को बार-बार उठा रहा है जिसे डीआरआई के अतिरिक्त महानिदेशक, सीईएसटीएटी और अदालत द्वारा उपयुक्त निष्कर्षों के जरिये पहले ही सुलझा लिया गया है।’

अदालत ने अदाणी-हिंडनबर्ग मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति के सदस्यों को लेकर हितों के टकराव की दलील को भी खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने सरकार और सेबी को भारतीय निवेशकों के हितों की रक्षा करने के लिए विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों पर विचार करने का निर्देश दिया।

कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने इस फैसले के बारे में एक्स पर लिखा, ‘जब हम उन लोगों को सत्यमेव जयते कहते हुए सुनते हैं, जिन्होंने पिछले दशक में खेल खेला, हेराफेरी की और व्यवस्था को नष्ट कर दिया, तो सत्य की हजारों बार मौत होती है।’

सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले साल नवंबर में अदाणी-हिंडनबर्ग मामले में अपना आदेश सुरक्षित रखते हुए संकेत दिया था कि सेबी को कुछ अतिरिक्त निर्देश दिए जा सकते हैं। इस पर सेबी ने अदालत से कहा था कि इस मामले की जांच पूरी करने के लिए उसे और समय लेने की जरूरत नहीं होगी।

First Published - January 3, 2024 | 10:23 PM IST

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