मैं एक सरकारी कर्मचारी हूं। हाल ही में मैंने यह सुना है कि अल्पावधि के पूंजीगत घाटे (एसटीसीएल) को अगले सात वर्षों तक समायोजित किया जा सकता है लेकिन दीर्घावधि के पूंजीगत घाटे का क्या होता है?
दीर्घावधि का पूंजीगत घाटे को अगर भविष्य के लाभों के साथ समायोजित नहीं किया जा सकता तो अभी घाटा उठाना कितना उचित होगा?
हां आप सही कह रहे हैं कि अल्पावधि के पूंजीगत घाटे को आप अगले आठ एसेसमेंट वर्षों तक ले जा सकते हैं अगर यहे वर्तमान वर्ष के दीर्घावधि या अल्पावधि के पूंजीगत लाभों के साथ पूर्णत: समायोजित नहीं हो पाता है। लेकिन आप दीर्घावधि के पूंजीगत घाटों को आप अगले वर्षों तक नहीं बढ़ा सकते हैं क्योंकि दीर्घावधि के पूंजीगत लाभों से प्राप्त हुई आय पर कर नहीं लगाया जाता है।
मेरे पोर्टफोलियो में 12 लाख के म्युचुअल फंड शामिल हैं और सारे लाभांश विकल्प वाले हैं। एक वित्तीय सलाहकार ने बताया कि मुझे अपने सभी फंडों को लाभांश विकल्प से ग्रोथ विकल्प में बदल देना चाहिए। क्या यह सलाह उचित है अगर हां तो इसके क्या लाभ है?
अपको सर्वप्रथम यह समझना चाहिए कि लाभांश और ग्रोथ विकल्प प्रतिफल के नजरिये भले ही एक जैसे लगते हों लेकिन कुछ मामलों में उनमें बड़ी भिन्नता है। लाभांश भुगतान वाले विकल्प के तहत जब लाभांश घोषित किया जाता है तो शुध्द परिसंपत्ति मूल्य (एनएवी) भी उसी अनुपात में घट जाता है। जबकि ग्रोथ विकल्प से प्राप्त होने वाले लाभ को एनएवी प्रतिबिंबित करता है।
एक और बात ध्यान रखने की है और वह है कि इन दोनों पर कर किस प्रकार लगाया जाता है। इक्विटी फंडों से प्राप्त लाभांशों पर कर नहीं लगाया जाता है लेकिन इक्विटी फंडों के पूंजीगत अभिलाभों पर कर लगाया जाता है अगर उनके यूनिटों को एक साल से पहले बेच दिया जाए। दीर्घावधि के पूंजीगत अभिलाभ करमुक्त होते हैं। इसलिए लाभांश भुगतान का विकल्प तभी लाभकारी है जब आप नियमित आय प्राप्त करना चाहते हों या फिर आप एक साल के भीतर अपना निवेश भुनाने की योजना रखते हों।
मेरे पिताजी सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी हैं। सेवानिवृत्ति के समय प्राप्त हुई राशि का कुछ हिस्सा अपने नाम से और कुछ हिस्सा मां के नाम से उन्होंने श्रीराम चिट्स में निवेश किया हुआ है। दोनों को अपने-अपने निवेश पर 350 रुपये का ब्याज प्राप्त हो रहा है।
बढ़ती महंगाई को देखते हुए मैं उन्हें सलाह दे रहा था कि श्रीराम चिट्स से मिलने वाली ब्याज की राशि में अतिरिक्त 150 रुपये जोड़ कर योजनाबध्द निवेश योजनाओं (सिप) के माध्यम से म्युचुअल फंडों में निवेश करें ताकि उन्हें महंगाई को मात देने वाला प्रतिफल प्राप्त हो सके। क्या मेरा सुझाव महंगाई को मात देने और अच्छा प्रतिफल प्राप्त करने की दृष्टि से उचित था? अगर हां, तो क्या आप कुछ वैसे म्युचुअल फंडों का सुझाव दे सकते हैं जिसमें मासिक 500 रुपये का निवेश कर वर्षिक 15-20 प्रतिशत तक का प्रतिफल प्राप्त किया जा सके।
यह एक अच्छा आयडिया हो सकता है अगर आपके मां-पिताजी को अपने खर्चे के लिए लिए पैसों की जरुरत न हो। इक्विटी और इक्विटी फंड दीर्घावधि में महंगाई को मात देने में सक्षम हो सकते हैं। लेकिन नियमित और एक समान आय के नजरिये से यह निवेश वांछनीय नहीं है। अगर आप इक्विटी फंडों में निवेश करना चाहते हैं तो अच्छी रेटिंग वाले सुविशाखित फंड जैसे बिड़ला फ्रंटलाइन इक्विटी, एचडीएफसी इक्विटी, कोटक 30 और मैग्नम कॉन्ट्रा में से किसी का चयन कर सिप के माध्यम से आवधिक रुप से निवेश करें।
आपके द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले आंकड़ो में प्रयुक्त होने वाले ‘रिस्क ग्रेड’ शब्द को मैं समझना चाहता हूं। जब आप यह कहते हैं कि रिस्क ग्रेड कम है तो क्या इसका यह मतलब होता है कि अमुक म्युचुअल फंड में निवेश करने में जोखिम कम है?
क्या इसलिए किसी म्युचुअल फंड को बेहतर विकल्प समझना चाहिए जिसका रिस्क ग्रेड अन्य की तुलना में कम हो भले ही अन्य बातें दूसरे फंड जैसी हो या इसका यह मतलब होता है कि जोखिम के नजरिये से उच्च गुणवत्ता वाले फंडों की तुलना में उस फंड की गुणवत्ता कम है और उसमें निवेश करने से बचना चाहिए? दो म्युचुअल फंडों के बीच अगर बाकि के मानदंड बराबर हों तो लो रिस्क ग्रेड वाले फंड में निवेश करना बेहतर है या हाई रिस्क ग्रेड वाले फंड में?
आपने सही समझा है। हाई रिस्क ग्रेड वाले फंड लो रिस्क ग्रेड वाले फंडों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक जोखिम भरे होते हैं। वैल्यू रिसर्च फंड रिस्क ग्रेड घाटे के जोखिम को प्रदर्शित करता है। हाई रिस्क वाले फंडों के घाटा उठाने की संभावना लो रिस्क ग्रेड वाले फंडों की तुलना में अधिक होती है।
फंड रिस्क की गणना के लिए फंड के मासिकसाप्ताहिक प्रतिफल की तुलना इक्विटी और हाईब्रिड फंडों के जोखिम रहित मासिक प्रतिफल और ऋण फंडों के साप्ताहिक जोखिम रहित फंडों से की जाती है। सभी महीनोंसप्ताहों के जोखिम रहित प्रतिफल की तुलना में फंड के खराब प्रदर्शन में उसकी तीव्रता जोड़ दी जाती है। इससे हमें फंड के खराब प्रदर्शन का औसत प्राप्त करने में मदद मिलती है। फंड के आपेक्षिक प्रदर्शन को रिस्क स्कोर के तौर पर व्यक्त किया जाता है।
किसी फंड का रिस्क स्कोर निम्लिखित के अनुसार तय किया जाता है-
रिस्क स्कोर
उच्च शीर्ष 10 %
औसत से अधिक अगला 22.5%
औसत मध्यम 35%
औसत से कम अगला 22.5%
कम निचला 10%