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अमेरिकी टैरिफ सिर्फ दिखावा, लॉन्ग टर्म निवेशकों के लिए मौजूदा गिरावट निवेश का अवसर: नीलेश शाह

बाजार की सामूहिक समझ अब भी यही मानती है कि भारत और अमेरिका के दीर्घाव​धि हित एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और यह (टैरिफ) एक दिखावा मात्र है।

Last Updated- August 28, 2025 | 10:56 PM IST
Nilesh Shah

कोटक महिंद्रा एएमसी के प्रबंध निदेशक नीलेश शाह ने पुनीत वाधवा को दिए टेलीफोन इंटरव्यू में कहा कि बाजार की ‘सामूहिक समझ’ अब भी यही मानती है कि भारत और अमेरिका के दीर्घाव​धि हित एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के टैरिफ सिर्फ दिखावा हैं। उन्होंने कहा कि दीर्घावधि निवेशकों के लिए मौजूदा गिरावट निवेश का अवसर है। मुख्य अंश:

क्या टैरिफ से जुड़ी घटनाओं पर बाजार ने वैसी ही प्रतिक्रिया दी है जैसी उसे देनी चाहिए थी?

मेरा मानना ​​है कि टैरिफ को लेकर बाजार अभी भी थोड़ा लापरवाह है और उसे लगता है कि यह (अमेरिका की) एक अल्पाव​धि चाल है जो जल्द ही हल हो जाएगी। इसलिए प्रतिक्रिया धीमी रही है। लेकिन अगर टैरिफ लंबे समय तक बने रहते हैं या किसी न किसी रूप में बढ़ते हैं तो बाजार गिरेगा।

कुछ लोगों को 27 अगस्त से पहले कुछ समाधान या कम से कम आंशिक राहत की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बाजार कब तक धैर्य रख सकता है?

बाजार की सामूहिक समझ अब भी यही मानती है कि भारत और अमेरिका के दीर्घाव​धि हित एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और यह (टैरिफ) एक दिखावा मात्र है। लेकिन यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि घटनाएं कैसे होती हैं। एक बात साफ है: अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ पूरी तरह पाखंड है। उदाहरण के लिए जब अमेरिकी वार्ताकार मॉस्को में थे तो उन्होंने कथित तौर पर रूसी ऊर्जा बाजारों में अमेरिकी तेल आयात पर चर्चा की थी। खुद अमेरिका ने भारत से आने वाले रिफाइन पेट्रोलियम को शुल्क मुक्त कर दिया है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में पाखंड लंबे समय तक भी रह सकता है। अगर टैरिफ जारी रहते हैं तो बाजारों में गिरावट आएगी।

जून तिमाही की कमाई और आगे की राह अन्य उभरते बाजारों की तुलना में भारत के महंगे मूल्यांकन को किस हद तक सही ठहराती है?

अल्पाव​धि निवेशकों के लिए भारतीय मूल्यांकन महंगे लगते हैं। लेकिन दीर्घाव​धि निवेशकों के लिए मौजूदा गिरावट जोड़ने का मौका है। पिछले एक दशक में चीन की ईपीएस (प्रति शेयर आय) (सीएसआई 300) वृद्धि 10 प्रतिशत रही है जबकि भारत के निफ्टी 50 ईपीएस में 180 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। एक साल के नजरिए से भारत महंगा लगता है मगर पांच साल के नजरिए से यह उचित लगता है। यह आपके समय और भारत की वृद्धि की कहानी में आपके विश्वास पर निर्भर करता है।

कई विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) बिकवाली कर रहे हैं। भारतीय म्युचुअल फंड किस हद तक बाजार को संभाल सकते हैं?

बाजार को थामे रखना हमारा काम नहीं है। हम अपने यूनिटधारकों के लिए पैसा कमाने के लिए हैं। मार्च 2020 में जब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक बिना किसी मूल्य सीमा के बिकवाली कर रहे थे, हम लगातार खरीदारी कर रहे थे। उस वक्त निफ्टी 12,500 से गिरकर 7,500 पर आ गया था। लेकिन आज, एफपीआई बिकवाली कर रहे हैं। वे समझदार हैं, शायद वे भारत की दीर्घाव​धि स्थिति जानते हैं। अल्पावधि में यह एक रस्साकशी है। अंततः घरेलू और विदेशी दोनों निवेशक चाहते हैं कि कीमतें बढ़ें।

क्या आपको अपने यूनिटधारकों के लिए पैसा कमाने के मौके मिल रहे हैं?

अगर निवेशक अल्पाव​धि रिटर्न की उम्मीद करते हैं तो जवाब है नहीं। अगर वे पिछले पांच वर्षों जैसा ही रिटर्न चाहते हैं, तो भी नहीं। लेकिन अगर वे उतार-चढ़ाव के साथ मध्यम रिटर्न की उम्मीद करते हैं तो हां। पिछले 10 कैलेंडर वर्षों में निफ्टी ने सकारात्मक रिटर्न दिया है।

आपको फिलहाल अवसर कहां दिख रहे हैं?

यह समय पूरी तरह से बॉटम-अप स्टॉक चुनने का है। आपको दूरदर्शी, क्रियान्वयन और संचालन वाले उद्यमियों की आवश्यकता है। सेक्टर नजरिए से देखें तो कंज्यूमर डिस्क्रेशनरी निवेश आकर्षक लगता है, वित्तीय सेवा क्षेत्र भी अच्छा है। बेहतर, सस्ते और तेज समाधान देने के लिए एआई (आर्टि​फिशल इंटेलिजेंस) का लाभ उठाने वाली चुनिंदा मिडकैप आईटी (सूचना प्रौद्योगिकी) कंपनियां आकर्षक नजर आ रही हैं। सीमेंट और घर सुधार से जुड़े क्षेत्र भी अच्छे लग रहे हैं।

First Published - August 28, 2025 | 10:34 PM IST

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