ईरान और इजरायल के बीच जारी युद्ध में अमेरिका के कूदने से पश्चिम एशिया समेत दुनिया में हलचल काफी बढ़ जाएगी। सोमवार को जब शेयर बाजार में कारोबार शुरू होगा तो वहां भी उथल-पुथल मच सकती है। तेजी से बदलते हालात के बीच बाजार में अनिश्चितता से जूझने के लिए निवेशकों को तैयार रहना होगा। विशेषज्ञों के मुताबिक पश्चिम एशिया में बिगड़ते हालात के कारण कच्चे तेल के दाम बढ़े तो मानक सूचकांक सेंसेक्स और निफ्टी दोनों 1.0-1.5 फीसदी तक फिसल सकते हैं। एशियाई बाजार में भी बिकवाली दिख सकती है।
हालांकि, घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) ने लिवाली जारी रखी तो बाजार काबू में रह सकता है। पिछले सप्ताह बाजार ने ईरान और इजरायल के बीच संघर्ष से बेपरवाह होकर 1.5 फीसदी से अधिक बढ़त दर्ज की।
ईरान के परमाणु संयंत्रों फोर्दो, नतांज और इस्फहान पर अमेरिका द्वारा बमबारी के बाद पश्चिम एशिया में हालात ने एक खतरनाक मोड़ ले लिया है। अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कहा कि ईरान ने जवाबी कार्रवाई की तो उस पर और हमले होंगे। अमेरिका के इस कदम के बाद पश्चिम एशिया में टकराव लंबे समय तक खिंचने की आशंका बढ़ गई है। इसका असर भी साफ देखा जा रहा है क्योंकि कच्चा तेल जून में 22.6 फीसदी उछल कर 76.6 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच गया है।
विश्लेषकों ने आगाह किया है कि अगर ईरान ने भी जवाबी हमला किया और होर्मुज जलडमरूमध्य बंद कर दिया तो कच्चा तेल 130 डॉलर प्रति बैरल के स्तर तक पहुंच सकता है। दुनिया में कुल तेल आपूर्ति का 20 फीसदी हिस्सा इसी मार्ग से होकर गुजरता है।
कच्चे तेल की आपूर्ति में बाधा पूरी दुनिया और खासकर भारत के लिए चिंता का सबब बन सकती है। भारत कच्चे तेल की कुल जरूरत का 90 फीसदी हिस्सा आयात करता है जिनमें से 40 फीसदी होर्मुज जलडमरूमध्य के रास्ते आता है। तेल के दाम बढ़ने से भारत में व्यापार संतुलन बिगड़ सकता है और मुद्रास्फीति के अनुमान भी पटरी से उतर सकते हैं। इससे आर्थिक वृद्धि पर आरबीआई के प्रयासों को झटका लग सकता है।
कोटक महिंद्रा एएमसी के प्रबंध निदेशक नीलेश शाह कहते हैं, ‘घरेलू शेयरों के लिए संबल और जोखिम दोनों की बराबर मौजूदगी दिख रही है। घरेलू कारक लंबी अवधि में सामान्य मुनाफे की उम्मीद रखने वाले निवेशकों के लिए मौजूदा मूल्यांकन के साथ खड़े हैं तो ट्रंप की नीतियों से लेकर तेल के दाम जोखिम बन कर खड़े हैं।’
विशेषज्ञों का कहना है कि निवेशकों को तेल के दाम पर पैनी नजर रखनी चाहिए और उसे देखते हुए आगे की रणनीति तय करनी चाहिए। पिछले अनुभव तो यही बताते हैं कि पश्चिम एशिया में मचने वाली उठापटक बाजार पर अधिक समय तक हावी नहीं रहती है लेकिन तात्कालिक झटके की आशंका दरकिनार नहीं की जा सकती। निवेशक अमेरिकी डॉलर और सोने पर दांव खेल सकते हैं।