बाजार इस हफ्ते अमेरिकी फेडरल रिजर्व से ब्याज कटौती की उम्मीद कर रहा है। जूलियस बेयर के मुख्य निवेश अधिकारी और निवेश प्रबंधन प्रमुख (एशिया) भास्कर लक्ष्मीनारायण ने पुनीत वाधवा के साथ साक्षात्कार में कहा कि अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के संदेश के साथ 25 आधार अंकों की कटौती न्यूनतम टिप्पणी के साथ 50 आधार अंकों की कटौती जैसी ही असरदार हो सकती है। उन्होंने कहा कि यह असर मोटे तौर पर दिए जाने वाले संदेश और इसकी व्याख्या पर निर्भर करेगा। बातचीत के मुख्य अंश…
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भारत हमारी प्राथमिकता है, खास तौर से इक्विटी के नजरिये से। यह प्राथमिक बाजार है, जिस पर हमारा ध्यान है। चीन अक्सर कारोबारी परिचालन के लिए आसान होता है लेकिन इक्विटी रिटर्न के लिए ज्यादा चुनौतीपूर्ण। दूसरी ओर, जापान के साथ सकारात्मक व नकारात्मक दोनों पहलू हैं। तकनीक और कारोबारी ऊंचाई में यह आगे बरकरार है और हालिया नियामकीय बदलाव कंपनियों को अपनी बैलेंस शीट सुव्यवस्थित करने को प्रोत्साहित कर रहे हैं। इसके साथ ही जापान का मौजूदा कम मूल्यांकन वाला बाजार काफी बढ़त की संभावना पेश कर रहा है। इसलिए जापान भी हमारे लिए भारत के साथ एशिया-प्रशांत क्षेत्र में तरजीही बाजार है।
नियामकीय अवरोधों के चलते भारतीय इक्विटी निवेशक पारंपरिक तौर पर घरेलू बाजार पर ज्यादा केंद्रित रहे हैं। यह अन्य बाजारों मसलन मलेशिया, सिंगापुर, हॉन्गकॉन्ग और थाइलैंड के उलट है जहां निवेशकों को अपनी पूंजी विदेश ले जाने की स्वतंत्रता लंबे समय से मिली हुई है, जिससे उनके पोर्टफोलियो में ज्यादा विविधता आई है। भारतीय शेयर अक्सर अमेरिकी शेयरों से ज्यादा महंगे नजर आते हैं जो बाहरी निवेशकों के लिए बाधा बनती है। भारत में वृद्धि की संभावना की बात हर कोई मान रहा है, लेकिन बाजार में उतरने की लागत अहम चिंता बनी हुई है।
मुझे लार्जकैप का मूल्यांकन उचित रुप से सहज दिखता है। मेरी चिंता मुख्य रूप से माइक्रोकैप, स्मॉलकैप और कुछ मिडकैप शेयरों को लेकर है। अगर कोई अगली कुछ तिमाहियों के लिए निवेश पर विचार कर रहा है तो लार्जकैप सुरक्षित दांव दिखते हैं। नाटकीय या अप्रत्याशित घटनाक्रम को छोड़ दें तो भारत में ढांचागत कहानी मजबूत और अक्षुण्ण बनी हुई है। अहम सवाल यह है कि क्या बाजार घरेलू केंद्रित बना रहेगा या विदेशी निवेशक वापस आएंगे और यह भविष्य के कीमत रुझानों पर निर्भर करेगा।
अगर वह सितंबर में ब्याज दरें नहीं घटाता है तो बाजार तुरंत ही शायद नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं जताएग लेकिन कटौती करीब-करीब अवश्यंभावी लग रही है। 25 आधार अंक की कटौती होगी या 50 आधार अंक की, इससे बहुत फर्क नहीं पड़ेगा। अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के संदेश के साथ 25 आधार अंकों की कटौती भी 50 आधार अंकों की कटौती जैसी ही प्रभावी हो सकती है। यह असर मोटे तौर पर दिए जाने वाले संदेश और इसकी व्याख्या के तरीके पर निर्भर करेगा। कुल मिलाकर दर कटौती पर तात्कालिक प्रतिक्रिया अनुकूल होनी चाहिए।
अभी अमेरिकी बाजार को बड़ी तकनीकी कंपनियां आगे बढ़ा रही हैं और निश्चित ही दर कटौती के चक्र से उनको लाभ होगा। हालांकि दरों के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों (जो बाजार पीई अनुपात व मूल्यांकन से उचित छूट पर कारोबार कर रहे हैं), को और ज्यादा फायदा होगा। इससे रोटेशन हो सकता है जहां साइक्लिकल कारक कम वैल्यू वाले इन क्षेत्रों को ऊपर उठाएंगे। इससे व्यापक बाजार में तेजी की संभावना है। इस परिदृश्य में वृद्धि व वैल्यू बढ़ाने वाले तत्व सही स्थिति में हैं। परिणामस्वरूप बाजार की धारणा व्यापक होगी जो कि सकारात्मक बात है।
भारतीय शेयरों की अमेरिकी वैल्यू शेयरों से तुलना करें तो आप पाएंगे कि अमेरिकी वैल्यू स्टॉक अक्सर ज्यादा आकर्षक कीमतों पर उपलब्ध रहते हैं। भारत में जहां मूल्यांकन के आंकड़े ज्यादा बढ़े हुए हो सकते हैं, ऐसे में अंतरराष्ट्रीय निवेशक उसी तरह की वृद्धि संभावना वाले सस्ते विकल्प चुन सकते हैं। यह तब तक बेहतर मूल्यांकन का फायदा उठाने का रणनीतिक चुनाव हो सकता है जब तक कि सही मौका न मिले।
मौजूदा पीई अनुपात भले ही ऊंचा दिख रहा हो लेकिन यह अक्सर भविष्य की सामान्य स्थिति के अनुमान से चुकाए गए प्रीमियम के भुगतान को बताता है। भारत ने पहले भी दिखाया है कि ऐसा प्रीमियम लंबे अवधि में बरकरार रह सकता है। भारत में अक्सर प्रीमियम का भुगतान ढांचागत वृद्धि की संभावना के लिए होता है। यह उपभोग और कुछ निश्चित पीएसयू जैसे क्षेत्रों में स्पष्ट है, जहां प्रीमियम लंबी अवधि की संभावित वृद्धि को दिखाता है, न कि तात्कालिक आय को।
आपको भारतीय उपभोग व बुनियादी ढांचा क्षेत्र की कहानी पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इस संदर्भ में बैंकिंग, वित्तीय सेवाएं और बीमा क्षेत्र पर विचार कर सकते हैं। हम बाजार की सक्रिय रुप से समीक्षा कर रहे हैं और लार्जकैप में निवेश को लेकर सहज हैं क्योंकि उन्होंने लगातार मजबूत प्रदर्शन किया है।