एमएससीआई उभरते बाजारों (ईएम) के इंडेक्स में भारत का भार करीब दो साल के निचले स्तर पर आ गया है। इसकी वजह घरेलू शेयरों का कमजोर प्रदर्शन है जिससे वैश्विक निवेशकों द्वारा व्यापक रूप से ट्रैक किए जाने वाले बेंचमार्क में इसकी स्थिति कमजोर हो गई है। अगस्त के अंत में भारत की हिस्सेदारी 16.21 फीसदी रही जो नवंबर 2023 के बाद से सबसे कम है। यह जुलाई 2024 के अपने उच्चतम स्तर 20 फीसदी से भारी गिरावट दर्शाती है। तब यह सूचकांक के सबसे बड़े भार वाले चीन से महज 4.5 फीसदी दूर था। भारत एक पायदान फिसलकर ताइवान के बाद तीसरे स्थान पर आ गया है।
एमएससीआई ईएम निवेश योग्य बाजार सूचकांक (आईएमआई) में भी यही रुझान देखने को मिल रहा है। पिछले अगस्त में शीर्ष स्थान हासिल करने के बाद भारत अब तीसरे स्थान पर खिसक गया है और इसका भार एक साल पहले के 22.3 फीसदी से घटकर 17.47 फीसदी रह गया है।
यह गिरावट एक साल के अपेक्षाकृत कमज़ोर प्रदर्शन के बाद आई है। पिछले 12 महीनों में एमएससीआई ईएम इंडेक्स में 16 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है जबकि भारत के बेंचमार्क निफ्टी 50 में 2 फीसदी की गिरावट आई है।
नुवामा इंस्टिट्यूशनल इक्विटीज में ऑल्टरनेटिव ऐंड क्वांटिटेटिव रिसर्च के प्रमुख अभिलाष पगारिया के अनुसार एमएससीआई ईएम सूचकांक में भारत के बढ़ते प्रतिनिधित्व के बावजूद यह गिरावट आई है। जुलाई 2024 में उसमें 146 कंपनियां थी जो अब 160 तक हो गई है। उन्होंने कहा, यह गिरावट मुख्य रूप से चीन में आई भारी तेजी के कारण हुई। तेजी ने उसके फ्री-फ्लोट बाजार पूंजीकरण में इजाफा किया जबकि भारतीय दिग्गज शेयरों का प्रदर्शन स्थिर रहा या कमजोर रहा।
पगारिया को उम्मीद है कि भारत का हिस्सा धीरे-धीरे बढ़ेगा और अगले साल तक इसमें करीब 170 कंपनियों का प्रतिनिधित्व हो सकता है। उन्होंने कहा, लेकिन अगर चीन में कोई उल्लेखनीय गिरावट नहीं हुई तो भारत को 20 फीसदी हिस्सेदारी पार करने में और समय लग सकता है।
एमएससीआई ईएम इंडेक्स में कम भार से आमतौर पर भारत में निवेश में कमी आती है। इस इंडेक्स को 700 अरब डॉलर से ज्यादा की परिसंपत्ति वाले वैश्विक फंड ट्रैक करते हैं। भारांक में गिरावट के अलावा कमजोर आय, वृद्धि दर में नरमी और अमेरिका के भारी शुल्कों जैसी चुनौतियों के बीच भारत सक्रिय फंड मैनेजरों की पसंद से भी बाहर हो गया है।
नोमूरा ने 45 बड़े ईएम फंडों का विश्लेषण किया है जिससे पता चलता है कि जुलाई में भारत में सापेक्ष आवंटन में मासिक आधार पर 100 आधार अंकों की गिरावट आई और 41 फंडों ने अपने निवेश में कटौती की। इससे भारत ईएम पोर्टफोलियो में सबसे बड़ा अंडरवेट बाजार बन गया है जहां आवंटन उसके एमएससीआई ईएम हिस्से से 2.9 फीसदी कम है।
मॉर्गन स्टेनली ने एक नोट में कहा है कि वैश्विक ईएम फंडों में भारत का भारांक एमएससीआई ईएम भार की तुलना में अब तक के सबसे कम में से एक है। ब्रोकरेज ने कहा कि लॉन्ग बॉन्ड, ईएम समकक्षों और सोने की तुलना में भारत के बाजार की रेटिंग घटी है। साथ ही यह भी कहा कि रेटिंग में बदलाव हो सकता है। अपने हालिया कमजोर प्रदर्शन के बावजूद भारत ईएम देशों में सबसे महंगा बाजार बना हुआ है। निफ्टी 50 वर्तमान में अनुमानित 12 माह की अग्रिम आय के 20 गुना पर कारोबार कर रहा है जबकि चीन के लिए यह 14 गुना से भी कम, ताइवान के लिए 16.6 गुना और एमएससीआई ईएम इंडेक्स के लिए 13.3 गुना है।
हालांकि भारत का मूल्यांकन प्रीमियम कम हो गया है और एमएससीआई ईएम सूचकांक का प्रीमियम अब 50 फीसदी पर आ गया है जो उसके ऐतिहासिक औसत 80 फीसदी से काफी नीचे है।
एचएसबीसी ने हाल में एक नोट में कहा कि यह प्रीमियम वैध कारणों से उचित है, जैसे कि इक्विटी पर उच्च रिटर्न (आरओई), मजबूत दीर्घकालिक वृद्धि संभावनाएं, मजबूत घरेलू इक्विटी मांग और भारत के नियामक एवं संस्थागत ढांचे के कारण कम जोखिम। हालांकि ब्रोकरेज ने आगाह किया कि आर्थिक वृद्धि में कोई भी नरमी या आरओई में संरचनात्मक गिरावट इस लाभ को कमजोर कर सकती है।