भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) पर ज्यादा सख्ती बरत ली है। बाजार नियामक का रुख नई पीढ़ी की तकनीकी कंपनियों के शेयर पिटने के बाद आया है क्योंकि उनकी वजह से निवेशकों को 3 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की चपत लगी है।
निवेश बैंकरों और उद्योग के अन्य भागीदारों के मुताबिक पूंजी बाजार नियामक ने कंपनियों को प्रवर्तक इकाइयों की यथासंभव पहचान बताने पर जोर देने को कहा है। इसके अलावा अधूरी जानकारी होने पर सेबी आईपीओ मसौदे (डीआरएचपी) भी लौटा रहा है। साथ ही जो कंपनी आईपीओ लाने जा रही है, उसके बयानों पर भी वह आईपीओ से पहले कड़ी नजर रख रहा है।
उद्योग के भागीदारों ने कहा कि इससे निर्गम जारी करने वालों पर दबाव बढ़ेगा। पिछले हफ्ते ही स्वास्थ्य तकनीक क्षेत्र की स्टार्टअप हेल्थविस्टा इंडिया (पोर्टिया मेडिकल) को 1,000 करोड़ रुपये का आईपीओ लाने की हरी झंडी तब मिली थी, जब कंपनी के कुछ शेयरधारकों ने खुद को शेयरधारक के बजाय प्रवर्तक घोषित किया था।
सूत्रों ने बताया कि दो या तीन कंपनियों से सेबी ने प्रवर्तकों का खुलासा करने को कहा है। मगर इन कंपनियों के नाम नहीं पता चले हैं। इस बारे में जानकारी के लिए सेबी को ईमेल भेजा गया था, लेकिन खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं आया।
देसाई ऐंड दीवानजी में वरिष्ठ पार्टनर सिद्धार्थ मोदी ने कहा, ‘अगर संस्थापक ने ही कंपनी की स्थापना की है तो सेबी कंपनी से उसे प्रवर्कत घोषित करने के लिए कह रहा है। अगर उन्होंने कंपनी का गठन किया है और उसमें पूंजी लगाई है तो उसे पेशेवरों द्वारा संचालित कंपनी बताकर वे खुद को छिपा नहीं सकते।’
कानून के विशेषज्ञों ने कहा कि कुछ इकाइयां नियम-कायदों से बचने के लिए जानबूझकर प्रवर्तक के दर्जे से बचती हैं। नायिका को छोड़कर हाल में सूचीबद्ध सभी चार प्रमुख स्टार्टअप में प्रवर्तकों की पहचान नहीं हो पाई है।
एक वकील ने कहा, ‘कुछ मामलों में संस्थापक अपनी शेयरधारिता को 10 फीसदी से कम रखते हैं और अतिरिक्त शेयर न्यास (ट्रस्ट) के नाम कर देते हैं। पहले ऐसा बहुत होता था मगर अब नहीं हो पाएगा।’
निवेश बैंकरों के अनुसार जोमैटो, नायिका, पेटीएम, पॉलिसीबाजार और डेलिवरी के शेयर अपने उच्चतम भाव से 54 से लेकर 71 फीसदी तक नीचे आ चुके हैं। संपत्तियों में भारी नुकसान को देखते हुए बाजार नियामक पर ज्यादा सख्त नियम बनाने का दबाव है।
पिछले वित्त वर्ष में सेबी ने 6 कंपनियों के निर्गम मसौदे लौटा दिए थे। उनमें से एक ने विवरण को अपडेट कर दोबारा मसौदा दाखिल किया। कुछ मामलों में कंपनियों को जरूरी खुलासे, चल रहे कानूनी मामलों या कर्मचारी शेयर स्वामित्व ढांचे आदि की जानकारी के साथ नया डीआरएचपी जमा करने के लिए कहा गया है।
लगातार पूंजी निवेश के साथ नई पीढ़ी की तकनीकी कंपनियों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है और उनका मूल्यांकन भी काफी बढ़ा है, जिससे उन्हें ज्यादा दस्तावेज और खुलासे करने की जरूरत है। साथ ही सेबी ने कई तरह के दस्तावेज और खुलासों के नियम लागू किए हैं जो पहले वित्तीय विवरण में शामिल नहीं थे, लेकिन कुछ मामलों में ये निजी इक्विटी निवेशकों के साथ साझा किए जाते थे। स्टार्टअप तथा घाटे वाली कंपनियों को ध्यान में रखकर ये जानकारी अनिवार्य की गई हैं क्योंकि पहले से लागू पैमानों के बल पर पारदर्शिता लाना संभव नहीं था।