अप्रैल 2006 में हुए पूंजी बाजार को हिलाकर रख देने वाले आईपीओ घोटाले की लंबी जांच का यह अंत हो सकता है, सेबी ने दो और हाई प्रोफाइल आईपीओ घोटले के मामले को कंसेन्ट ऑर्डर के जरिए सुलटा लिया है।
इस घोटाले में एक जैसे पते पर हजारों बेनामी डीमैट खातों के जरिए आईपीओ के ढेरों शेयर झटक लिए गए थे जो रीटेल और छोटे निवेशकों के लिए थे।
अप्रैल 2006 में सेबी ने अपने एक आदेश में सेबी के पास पंजीकृत डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट (डीपी) एचडीएफसी बैंक को अगले आदेश तक कोई भी नया डीमैट खाता खोलने पर रोक लगा दी थी और यह रोक नवंबर 2006 में हटाई गई।
सेबी ने बैंक के खिलाफ जांच भी की थी, हालांकि बाद में एचडीएफसी बैंक ने एक कंसेन्ट ऑर्डर के जरिए कार्रवाई को निपटाने का प्रस्ताव रखा जिसके बाद सेबी ने सेटलमेंट चार्ज के रूप में एक लाख रुपए लेकर इस मामले को सेटल किया।
इसी तरह सेबी ने एक अन्य कंसेन्ट ऑर्डर में स्टॉक ब्रोकर और डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट झावेरी सेक्योरिटीज को भी सेटलमेंट चार्ज के रूप में एक लाख रुपए अदा करने का निर्देश दिया है।
सूत्रों के मुताबिक सेबी ऐसे सभी मामलों को कंसेन्ट ऑर्डर के जरिए निपटाने की प्रक्रिया में है। अभी तक उसने ऐसे इस घोटाले से जुडे तीस मामले कंसेन्ट ऑर्डर के जरिए निपटाएं हैं।
इससे पहले आईपीओ घोटाले से जुड़े मामलों में नेशनल सेक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (एनएसडीएल) और सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेस इंडिया लिमिटेड को सेक्योरिटीज एपेलेट ट्रिब्यूनल (सैट) ने बरी कर दिया था, इन पर सेबी ने आईपीओ घोटाले के संबंध में कई आरोप लगाए थे। इस घोटाले में फर्जी डीमैट खाते खोलकर आईपीओ के एलाटमेंट करा लिए गए थे।
यह मामला इसलिए भी अहम हो जाता है क्योकि मौजूदा सेबी चेयरमैन सीबी भावे(तब एनएसडीएल के मुखिया) और सेबी के तत्कालीन चेयरमैन एम दामोदरन के कार्यकाल के दौरान यह मामला गरमाया था। लेकिन 2008 में भावे के सेबी के चेयरमैन बनने के साथ ही उन्होने खुद को इससे मुक्त कर लिया।