विदेशी फंडों के सही लाभार्थी हकदार की पहचान से जुड़े भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के नए प्रस्ताव की वजह से पोर्टफोलियो प्रवाह प्रभावित हो सकता है और ये निवेशक भारत से अपना ध्यान हटाने की रणनीति अपनाने के लिए बाध्य हो सकते हैं।
बाजार नियामक ने 25,000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश से जुड़े एफपीआई और परिसंपत्तियों के 50 प्रतिशत से अधिक के एकल समूह निवेश को ‘हाई-रिस्क’ के तौर पर श्रेणीबद्ध करने का प्रस्ताव रखा है। यानी इतना बड़ा निवेश करने वाले एफपीआई को अतिरिक्त खुलासे करने की जरूरत होगी।
विश्लेषकों का कहना है कि ‘हाई-रिस्क’ दर्जे की वजह से कुछ एफपीआई भारतीय बाजार में निवेश करने के अपने फैसलों की पुन: समीक्षा कर सकते हैं।
इकोनॉमिक लॉज प्रैक्टिस में पार्टनर मनेंद्र सिंह ने कहा, ‘निवेशक अपनी सूचनाओं का खुलासा करने में असहजता महसूस करेंगे। वहीं, जो एफपीआई ’हाई रिस्क एफपीआई’ के दायरे में आ सकते हैं, वे निश्चित तौर पर अपने निवेश प्रवाह पर पुनर्विचार करेंगे, क्योंकि उन्हें जरूरी खुलासे करने होंगे।’
इसके अलावा, सेबी ने प्रस्ताव रखा है कि उसके नए नियमों को अन्य क्षेत्राधिकारों के नियमों से स्वतंत्र रखा जाएगा। यह प्रस्ताव ऐसे समय में आया है जब अदाणी मामला गहराया हुआ है और बाजार नियामकों ने कुछ खास एफपीआई के मामले में सही लाभार्थियों की पहचान पर जोर दिया है।
कानूनी कंपनियों का मानना है कि गोपनीयता कानूनों को नजरअंदाज करना चुनौतीपूर्ण होगा, क्योंकि खुलासों की जिम्मेदारी डेजिनेटेड डिपोजिटरी पार्टिसिपेंट (डीडीपी) पर रहेगी, जो एफपीआई पंजीकरण और निवेश को आसान बनाते हैं।
खेतान ऐंड कंपनी में पार्टनर (कॉरपोरेट ऐंड कमर्शियल, रेग्युलेटरी प्रैक्टिस) मोइन लाढा ने कहा, ‘हालांकि इस कदम से एफपीआई प्रक्रिया ज्यादा जटिल हो जाएगी और कई विदेशी निवेशक एफपीआई के जरिये भारत में किए जाने वाले निवेश से परहेज कर सकते हैं। हालांकि यह पहल बेहतर पारदर्शिता को बढ़ावा देगी और एफपीआई श्रेणी के दुरुपयोग को भी रोकेगी। सही लाभार्थी स्वामित्व निर्धारित करने के लिए वैश्विक क्षेत्राधिकारों में कानूनी और संविदात्मक चुनौतियां पैदा हो सकती हैं।’
विश्लेषकों का मानना है कि एफपीआई ‘हाई-रिस्क’ ठप्पे से बचने के लिए अपने निवेश को पुनर्गठित कर सकते हैं। इसमें उनकी भारत में बिकवाली करना या पी-नोट्स जैसे विकल्पों का ज्यादा इस्तेमाल शामिल हो सकता है।
पीएनडीजे ऐंड एसोसिएट्स में पार्टनर धवल जरीवाला ने कहा, ‘ऐसे मामले देखने को मिले हैं जिनमें एफपीआई ने दीर्घावधि निवेश के लिए किसी खास कंपनी या समूह पर नजर बनाए रखी है। इसलिए, हम नए प्रस्ताव की वजह से भारत में एफपीआई के निवेश में कुछ बदलाव देख सकते हैं। इसके अलावा, सेबी एफपीआई के लिए एक खास सीमा में निवेश पर भी सख्ती बनाए रख सकता है।’
सेबी ने एफपीआई की एयूसी 2.6 लाख करोड़ रुपये या 6 प्रतिशत को हाई-रिस्क के तौर पर चिन्हित किया है। उद्योग के जानकारों का कहना है कि सेबी के प्रस्ताव को बाजार की प्रतिक्रिया के आधार पर अंतिम रूप दिया जाएगा और एफपीआई को ‘इंतजार करो और देखो’ की नीति अपनानी होगी। नियामक ने यह भी कहा है कि एफपीआई को नए नियम पर अमल करने के लिए 6 महीने की मोहलत दी जाएगी, जिसके बाद उनके लाइसेंस रद्द किए जा सकते हैं।