भारत के निवेशक और कंपनियां अब बिना किसी रोक के अमेरिका और सिंगापुर में स्थापित विदेशी फंडों सहित अन्य वैश्विक फंडों में भी निवेश कर सकेंगे। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा पिछले सप्ताह विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (ओपीआई) के बारे में किए गए संशोधन के बाद यह संभव हो सकेगा। आरबीआई ने शुक्रवार को विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेश में निवेश) निर्देश, 2022 में संशोधन के बारे में एक सर्कुलर जारी किया था।
संशोधनों के तहत वह सारी रोक हटा ली गई हैं जो भारतीय लिमिटेड पार्टनर्स (एलपी) को केवल विदेशी फंडों की ओर से जारी यूनिटों में निवेश करने की अनुमति देते थे। अब किसी भी योजना में निवेश की अनुमति है, चाहे वह यूनिट हो या नहीं।
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इसके अलावा, यह शर्त भी समाप्त कर दी गई है कि निवेश सिर्फ उन फंडों में किया जा सकेगा जिनका नियमन संबंधित देश का नियामक करता हो, न कि उनके इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स (आईएम) के जरिये उनका नियमन होता हो। उदाहरण के लिए, सिंगापुर और अमेरिका में नियामक (कुछ मामलों में), फंड के बजाय फंड मैनेजर का नियमन करते हैं।
उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि प्रतिबंधों के कारण, केमैन द्वीप और मॉरीशस जैसे क्षेत्रों में नए फंड स्थापित करने पड़ते थे, ताकि भारतीय एलपी से निवेश संभव हो सके। नियामकीय बदलावों से जनरल पार्टनर्स को व्यावसायिक रूप से अनुकूल क्षेत्राधिकारों में अपने फंड शुरू करने की स्वायत्तता भी मिलेगी । उन्हें इस बात की चिंता नहीं करनी होगी कि भारतीय निवेश आएगा या नहीं।
इलियोस फाइनैंशियल सर्विसेज के संस्थापक एवं कैपिटल मार्केट टास्क फोर्स, एफएससी मॉरीशस के सदस्य आनंद सिंह ने कहा, ‘आरबीआई के कदम से प्रवासी भारतीय निवेशकों और कंपनियों को सिंगापुर आधारित फंडों (वीसीसी) में सीधे निवेश करने का अवसर मिलेगा, जिससे वे इसकी वैश्विक फंड प्रबंधन विशेषज्ञता और विश्वस्तरीय, मजबूत निवेश क्षेत्राधिकार की प्रतिष्ठा का लाभ उठा सकेगें।’