पिछले दो वर्षों में कई नई कंपनियों के प्रवेश के साथ म्युचुअल फंड (एमएफ) उद्योग में प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है। करीब एक दशक से ज्यादा समय से म्युचुअल फंड कंपनियों की संख्या 40 के आसपास थी। लेकिन पिछले दो सालों में आठ नए लाइसेंस जारी होने से यह तादाद बढ़कर 50 हो गई है। हाल में शामिल कंपनियों में जियोब्लैकरॉक, द वेल्थ कंपनी और चॉइस शामिल हैं।
म्युचुअल फंड कारोबार में दिलचस्पी में इस तरह की उछाल लगभग पांच साल की तेज वृद्धि के बाद आई है। इस अवधि में उद्योग की परिसंपत्तियों में तीन गुना इजाफा हुआ है। इसकी वजह शेयर बाजार में तेजी से निवेशक आधार का विस्तार होना है। इस दौर में म्युचुअल फंडों में निवेश के लिए व्यवस्थित निवेश योजनाओं (एसआईपी) को अपनाने में भी वृद्धि हुई है, जिससे उद्योग में निरंतर निवेश सुनिश्चित हुआ है।
वैल्यू रिसर्च के मुख्य कार्याधिकारी धीरेंद्र कुमार ने कहा, भारतीयों के लिए बाजारों में निवेश का पसंदीदा तरीका म्युचुअल फंड बन रहे हैं और ये नए निवेशकों को आकर्षित कर रहे हैं। निवेशकों की बढ़ती भागीदारी, डिजिटल वितरण और नियामकीय स्पष्टता के कारण फंड हाउस चलाने का अर्थशास्त्र अब पहले से कहीं अधिक आशाजनक लग रहा है। प्रवेश संबंधी बाधाओं में ढील और हाल में विशेषीकृत निवेश कोषों (एसआईएफ) में नए कारोबारी खंड की शुरुआत ने इस उद्योग में नई कंपनियों को आकर्षित किया है।
बाजार विशेषज्ञ और फंड के पूर्व सीईओ सुनील सुब्रमण्यम ने कहा, फंड हाउसों के लिए अतिरिक्त श्रेणी के रूप में एसआईएफ की घोषणा के बाद कई पोर्टफोलियो प्रबंधन सेवा (पीएमएस) कंपनियां फंड लाइसेंस के लिए आवेदन कर रही हैं। इसके दो कारण हैं। पहला, ज्यादा कर-कुशल एसआईएफ की ओर ग्राहक रुख न कर जाएं, इससे बचने के लिए। दूसरा, अपनी पेशकशों का विस्तार ज्यादा बड़े ग्राहक आधार तक पहुंचाने के लिए क्योंकि एसआईएफ में न्यूनतम निवेश राशि केवल 10 लाख रुपये है जबकि पीएमएस के लिए यह 50 लाख रुपये है।
हाल ही में फंड लाइसेंस के लिए आवेदन करने वालों में पीएमएस और वैकल्पिक निवेश फंड मैनेजरों का दबदबा रहा है। इनमें अबेकस ऐसेट मैनेजर, मोनार्क नेटवर्थ कैपिटल, नुवामा वेल्थ मैनेजमेंट, आशिका क्रेडिट कैपिटल, कार्नेलियन ऐसेट मैनेजमेंट ऐंड एडवाइजर्स, अल्फा ऑल्टरनेटिव्स फंड एडवाइजर्स, एस्टी एडवाइजर्स और ओकलेन कैपिटल मैनेजमेंट शामिल हैं।
फंड कंपनियों की बढ़ती संख्या उद्योग के विस्तार की सेबी की योजनाओं के अनुरूप भी है। 2020 में नियामक ने लाभप्रदता की अनिवार्यता को पूरा करने में असमर्थ इच्छुक कंपनियों के लिए वैकल्पिक मानदंड पेश किए। इस कदम ने नई कंपनियों, खासकर फिनटेक कंपनियों के लिए म्युचुअल फंड के द्वार खोल दिए। बाद में 2023 में सेबी ने निजी इक्विटी फर्मों को म्युचुअल फंड का प्रायोजक बनने की अनुमति देने के लिए नियमों में संशोधन किया।
द वेल्थ कंपनी के मुख्य रणनीति अधिकारी देवाशिष मोहंती ने कहा, एमएफ नियमों में संशोधन भारत में समावेशी वित्तीय विकास के नए युग की नींव रख रहा है। नियमों को सरल बनाकर और निवेशकों के विकल्प का विस्तार करके नियामक सभी आय और स्थान वाले वर्गों के बचतकर्ताओं के लिए धन सृजन में भागीदारी को आसान बना रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार, उद्योग में प्रवेश करना आसान हो सकता है, लेकिन इसका विस्तार करना चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। कुमार ने कहा, शुरुआत करना आसान है, लेकिन विश्वास बनाना और दीर्घकालिक प्रदर्शन ही असली परीक्षा है। 10 अग्रणी म्युचुअल फंड कंपनियों का उद्योग के करीब 75 लाख करोड़ रुपये की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियों (एयूएम) में 75 फीसदी से अधिक का हिस्सा है।