Understanding switching costs in MF plans: म्युचुअल फंड निवेशकों के लिए स्विचिंग कॉस्ट पर ध्यान देना बेहद जरूरी है, क्योंकि यह उनके निवेश रिटर्न पर बड़ा असर डाल सकता है। अक्सर निवेशक इस अहम पहलू को नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे उनका अनावश्यक खर्च बढ़ सकता है। स्विचिंग का मतलब है निवेश को एक फंड से दूसरे फंड में ट्रांसफर करना, जिसमें एग्जिट लोड और कैपिटल गेन टैक्स जैसे खर्च शामिल होते हैं। म्युचुअल फंड में स्विच के अपने फायदे और नुकसान है। ऐसे में बेहतर वित्तीय निर्णय लेने के लिए स्विचिंग कॉस्ट को समझना बेहद जरूरी है।
म्युचुअल फंड में स्विचिंग का मतलब है अपनी निवेश राशि को एक स्कीम से दूसरी स्कीम में ट्रांसफर करना। यह ट्रांसफर आंशिक या पूरी तरह से किया जा सकता है और आमतौर पर एक ही फंड हाउस के अंदर होता है। हालांकि, अगर आप अपनी निवेश राशि को एक फंड हाउस से निकालकर किसी दूसरे फंड हाउस में लगाना चाहते हैं, तो इसे स्विच-इन और स्विच-आउट कहा जाता है।
इस प्रक्रिया के तहत, पहले आपको अपने मौजूदा फंड से निवेश रिडीम करना होगा और फिर दूसरे फंड में री-इन्वेस्ट करना होगा। लेकिन ध्यान दें कि इसमें एग्जिट लोड और कैपिटल गैन पर टैक्स का भुगतान करना पड़ सकता है, जो आपके रिटर्न को प्रभावित कर सकता है। निवेश से पहले स्विचिंग कॉस्ट को समझना बेहद जरूरी है।
आपके पास म्युचुअल फंड में रेगुलर प्लान से डायरेक्ट प्लान में स्विच करने का विकल्प भी होता है, जो एक ही फंड के अंतर्गत होता है। रेगुलर प्लान में डिस्ट्रीब्यूटर कमीशन शामिल होता है, जबकि डायरेक्ट प्लान में ऐसा नहीं होता, जिससे आपकी कुल निवेश लागत कम हो जाती है। हालांकि, डायरेक्ट प्लान में आपको अपना पोर्टफोलियो खुद ही मैनेज करना होता है।
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समय के साथ, इक्विटी, बॉन्ड और नकद जैसे विभिन्न एसेट क्लास का प्रदर्शन बदल सकता है। एसेट रीबैलेंसिंग के जरिए आप अपने पोर्टफोलियो को इस तरह एडजस्ट कर सकते हैं कि यह आपके वित्तीय लक्ष्यों और जोखिम सहनशीलता के अनुरूप बना रहे।
फंड्स को रणनीतिक रूप से स्विच करना बाजार के रुझानों का लाभ उठाने में मदद कर सकता है। उदाहरण के लिए, अगर स्टॉक मार्केट में गिरावट हो, तो आप इक्विटी म्युचुअल फंड्स से कंजरवेटिव विकल्प जैसे डेट या लिक्विड फंड्स में शिफ्ट कर सकते हैं। वहीं, बाजार में तेजी के दौरान, सुरक्षित फंड्स से इक्विटी-फोकस्ड फंड्स में स्विच करना आपके रिटर्न को अधिकतम कर सकता है।
जैसे-जैसे आपके वित्तीय लक्ष्य बदलते हैं, आपकी निवेश रणनीति में भी बदलाव की जरूरत हो सकती है। उदाहरण के लिए, रिटायरमेंट के करीब आने पर आप ग्रोथ की जगह पूंजी की सुरक्षा को प्राथमिकता दे सकते हैं और इक्विटी फंड्स से डेट या कम जोखिम वाले निवेश में स्विच कर सकते हैं। दूसरी ओर, अगर आप आक्रामक तरीके से संपत्ति बढ़ाना चाहते हैं, तो ज्यादा जोखिम वाले इक्विटी फंड्स में स्विच करना अधिक उपयुक्त हो सकता है।
अगर आप वर्तमान में डिस्ट्रीब्यूटर के माध्यम से रेगुलर म्युचुअल फंड्स में निवेश कर रहे हैं, तो डायरेक्ट प्लान में स्विच करना फायदेमंद हो सकता है। डायरेक्ट प्लान में इंटरमीडियरी फीस नहीं होती और ये आमतौर पर बेहतर रिटर्न देते हैं क्योंकि इनमें कमीशन शुल्क शामिल नहीं होता। डायरेक्ट प्लान चुनकर आप अपनी निवेश लागत को कम कर सकते हैं और अपने कुल रिटर्न को बढ़ा सकते हैं।
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आनंद राठी वेल्थ की म्युचुअल फंड एनालिस्ट नबनीता दत्ता ने कहा, “म्युचुअल फंड स्विच करने से पहले यह तय करना जरूरी है कि आप ऐसा क्यों करना चाहते हैं। जैसे, पोर्टफोलियो को रीबैलेंस करना, अपने वित्तीय लक्ष्यों के अनुरूप करना, या बेहतर रिटर्न पाना। यह स्पष्टता आपको भावनात्मक या जल्दबाजी में गलत फैसले लेने से बचाएगी।”
उन्होंने बताया कि स्विच करने में एग्जिट लोड और कैपिटल गेन टैक्स जैसे खर्च शामिल होते हैं, जो आपके रिटर्न को प्रभावित कर सकते हैं। अगर आपने इक्विटी म्युचुअल फंड में एक साल से कम समय तक निवेश किया है, तो एग्जिट लोड 0-2 प्रतिशत तक हो सकता है। इसके अलावा, शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन पर 20 प्रतिशत टैक्स और 1.25 लाख रुपये से अधिक के लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन पर 12.5 प्रतिशत टैक्स लगता है।
उन्होंने कहा, “अगर आप स्विचिंग के खर्च और इसके प्रभाव को नहीं समझते, तो अनावश्यक खर्च बढ़ सकता है। इसलिए, स्विच करने से पहले इन बातों का ध्यान जरूर रखें।”