facebookmetapixel
नवंबर में भारत से आईफोन का निर्यात 2 अरब डॉलर तक पहुंचा, बना नया रिकार्डएवेरा कैब्स ने 4,000 ब्लू स्मार्ट इलेक्ट्रिक कारें अपने बेड़े में शामिल करने की बनाई योजनाGST बढ़ने के बावजूद भारत में 350 CC से अधिक की प्रीमियम मोटरसाइकल की बढ़ी बिक्रीJPMorgan 30,000 कर्मचारियों के लिए भारत में बनाएगा एशिया का सबसे बड़ा ग्लोबल कैपेसिटी सेंटरIPL Auction 2026: कैमरन ग्रीन बने सबसे महंगे विदेशी खिलाड़ी, KKR ने 25.20 करोड़ रुपये में खरीदानिजी खदानों से कोयला बिक्री पर 50% सीमा हटाने का प्रस्ताव, पुराने स्टॉक को मिलेगा खुला बाजारदूरदराज के हर क्षेत्र को सैटकॉम से जोड़ने का लक्ष्य, वंचित इलाकों तक पहुंचेगी सुविधा: सिंधियारिकॉर्ड निचले स्तर पर रुपया: डॉलर के मुकाबले 91 के पार फिसली भारतीय मुद्रा, निवेशक सतर्कअमेरिका से दूरी का असर: भारत से चीन को होने वाले निर्यात में जबरदस्त तेजी, नवंबर में 90% की हुई बढ़ोतरीICICI Prudential AMC IPO: 39 गुना मिला सब्सक्रिप्शन, निवेशकों ने दिखाया जबरदस्त भरोसा

Mutual Fund: स्विचिंग कॉस्ट पर ध्यान दें, वरना घट सकता है आपका रिटर्न; समझें पूरा गणित और बेवजह के खर्चों से बचें

स्विचिंग का मतलब है निवेश को एक फंड से दूसरे फंड में ट्रांसफर करना, जिसमें एग्जिट लोड और कैपिटल गेन टैक्स जैसे खर्च शामिल होते हैं।

Last Updated- January 25, 2025 | 1:14 PM IST
Understanding switching costs in MF plans to avoid unnecessary expenses स्विचिंग कॉस्ट पर ध्यान दें, वरना घट सकता है आपका रिटर्न; समझें पूरा गणित और बेवजह के खर्चों से बचें

Understanding switching costs in MF plans: म्युचुअल फंड निवेशकों के लिए स्विचिंग कॉस्ट पर ध्यान देना बेहद जरूरी है, क्योंकि यह उनके निवेश रिटर्न पर बड़ा असर डाल सकता है। अक्सर निवेशक इस अहम पहलू को नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे उनका अनावश्यक खर्च बढ़ सकता है। स्विचिंग का मतलब है निवेश को एक फंड से दूसरे फंड में ट्रांसफर करना, जिसमें एग्जिट लोड और कैपिटल गेन टैक्स जैसे खर्च शामिल होते हैं। म्युचुअल फंड में स्विच के अपने फायदे और नुकसान है। ऐसे में बेहतर वित्तीय निर्णय लेने के लिए स्विचिंग कॉस्ट को समझना बेहद जरूरी है।

म्युचुअल फंड में स्विच क्या है?

म्युचुअल फंड में स्विचिंग का मतलब है अपनी निवेश राशि को एक स्कीम से दूसरी स्कीम में ट्रांसफर करना। यह ट्रांसफर आंशिक या पूरी तरह से किया जा सकता है और आमतौर पर एक ही फंड हाउस के अंदर होता है। हालांकि, अगर आप अपनी निवेश राशि को एक फंड हाउस से निकालकर किसी दूसरे फंड हाउस में लगाना चाहते हैं, तो इसे स्विच-इन और स्विच-आउट कहा जाता है।

इस प्रक्रिया के तहत, पहले आपको अपने मौजूदा फंड से निवेश रिडीम करना होगा और फिर दूसरे फंड में री-इन्वेस्ट करना होगा। लेकिन ध्यान दें कि इसमें एग्जिट लोड और कैपिटल गैन पर टैक्स का भुगतान करना पड़ सकता है, जो आपके रिटर्न को प्रभावित कर सकता है। निवेश से पहले स्विचिंग कॉस्ट को समझना बेहद जरूरी है।

रेगुलर प्लान से डायरेक्ट प्लान में भी कर सकते हैं स्विच

आपके पास म्युचुअल फंड में रेगुलर प्लान से डायरेक्ट प्लान में स्विच करने का विकल्प भी होता है, जो एक ही फंड के अंतर्गत होता है। रेगुलर प्लान में डिस्ट्रीब्यूटर कमीशन शामिल होता है, जबकि डायरेक्ट प्लान में ऐसा नहीं होता, जिससे आपकी कुल निवेश लागत कम हो जाती है। हालांकि, डायरेक्ट प्लान में आपको अपना पोर्टफोलियो खुद ही मैनेज करना होता है।

Also read: Flexi Cap के टॉप-5 फंड, 1 लाख के बनाए 3 लाख; बाजार की उठा-पटक में निवेश का फायदेमंद विकल्प?

म्युचुअल फंड में स्विचंग के फायदे

एसेट रीबैलेंसिंग

समय के साथ, इक्विटी, बॉन्ड और नकद जैसे विभिन्न एसेट क्लास का प्रदर्शन बदल सकता है। एसेट रीबैलेंसिंग के जरिए आप अपने पोर्टफोलियो को इस तरह एडजस्ट कर सकते हैं कि यह आपके वित्तीय लक्ष्यों और जोखिम सहनशीलता के अनुरूप बना रहे।

बाजार की परिस्थितियों का फायदा उठाना

फंड्स को रणनीतिक रूप से स्विच करना बाजार के रुझानों का लाभ उठाने में मदद कर सकता है। उदाहरण के लिए, अगर स्टॉक मार्केट में गिरावट हो, तो आप इक्विटी म्युचुअल फंड्स से कंजरवेटिव विकल्प जैसे डेट या लिक्विड फंड्स में शिफ्ट कर सकते हैं। वहीं, बाजार में तेजी के दौरान, सुरक्षित फंड्स से इक्विटी-फोकस्ड फंड्स में स्विच करना आपके रिटर्न को अधिकतम कर सकता है।

बदलते लक्ष्यों के साथ निवेश का फिर से तालमेल बिठाना

जैसे-जैसे आपके वित्तीय लक्ष्य बदलते हैं, आपकी निवेश रणनीति में भी बदलाव की जरूरत हो सकती है। उदाहरण के लिए, रिटायरमेंट के करीब आने पर आप ग्रोथ की जगह पूंजी की सुरक्षा को प्राथमिकता दे सकते हैं और इक्विटी फंड्स से डेट या कम जोखिम वाले निवेश में स्विच कर सकते हैं। दूसरी ओर, अगर आप आक्रामक तरीके से संपत्ति बढ़ाना चाहते हैं, तो ज्यादा जोखिम वाले इक्विटी फंड्स में स्विच करना अधिक उपयुक्त हो सकता है।

लोअर-कॉस्ट या डायरेक्ट प्लान में स्विच करना

अगर आप वर्तमान में डिस्ट्रीब्यूटर के माध्यम से रेगुलर म्युचुअल फंड्स में निवेश कर रहे हैं, तो डायरेक्ट प्लान में स्विच करना फायदेमंद हो सकता है। डायरेक्ट प्लान में इंटरमीडियरी फीस नहीं होती और ये आमतौर पर बेहतर रिटर्न देते हैं क्योंकि इनमें कमीशन शुल्क शामिल नहीं होता। डायरेक्ट प्लान चुनकर आप अपनी निवेश लागत को कम कर सकते हैं और अपने कुल रिटर्न को बढ़ा सकते हैं।

Also read: शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव से बुरी तरह प्रभावित हुए SmallCap Funds 

आनंद राठी वेल्थ की म्युचुअल फंड एनालिस्ट नबनीता दत्ता ने कहा, “म्युचुअल फंड स्विच करने से पहले यह तय करना जरूरी है कि आप ऐसा क्यों करना चाहते हैं। जैसे, पोर्टफोलियो को रीबैलेंस करना, अपने वित्तीय लक्ष्यों के अनुरूप करना, या बेहतर रिटर्न पाना। यह स्पष्टता आपको भावनात्मक या जल्दबाजी में गलत फैसले लेने से बचाएगी।”

उन्होंने बताया कि स्विच करने में एग्जिट लोड और कैपिटल गेन टैक्स जैसे खर्च शामिल होते हैं, जो आपके रिटर्न को प्रभावित कर सकते हैं। अगर आपने इक्विटी म्युचुअल फंड में एक साल से कम समय तक निवेश किया है, तो एग्जिट लोड 0-2 प्रतिशत तक हो सकता है। इसके अलावा, शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन पर 20 प्रतिशत टैक्स और 1.25 लाख रुपये से अधिक के लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन पर 12.5 प्रतिशत टैक्स लगता है।

उन्होंने कहा, “अगर आप स्विचिंग के खर्च और इसके प्रभाव को नहीं समझते, तो अनावश्यक खर्च बढ़ सकता है। इसलिए, स्विच करने से पहले इन बातों का ध्यान जरूर रखें।”

First Published - January 25, 2025 | 1:14 PM IST

संबंधित पोस्ट