इंडिया इंक के अधिकांश मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) तिमाही परिणामों की बजाय छमाही वित्तीय रिपोर्टिंग के पक्ष में हैं। लेकिन म्यूचुअल फंड उद्योग के वरिष्ठ प्रबंधन ने इसका जोरदार विरोध किया है।
एक ताजा सर्वे के मुताबिक, 64 प्रतिशत कॉरपोरेट लीडरों का कहना है कि छमाही रिपोर्टिंग से कंपनियों पर अल्पकालिक दबाव कम होगा और प्रबंधन को व्यवसाय रणनीति और निष्पादन पर बेहतर फोकस मिलेगा।
इसके विपरीत, 73 प्रतिशत फंड मैनेजरों ने कहा कि निवेशकों के लिए तिमाही परिणाम बेहद अहम हैं, क्योंकि वे इन्हीं समय पर मिलने वाले खुलासों के आधार पर निवेश निर्णय और पूंजी आवंटन करते हैं।
यह तीखा अंतर कंपनियों के बोर्ड्स की लचीलापन पाने की इच्छा और निवेशक समुदाय की पारदर्शिता व लगातार रिपोर्टिंग की मांग के बीच टकराव को दिखाता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने पहले ही अमेरिका में तिमाही रिपोर्टिंग की जगह छमाही रिपोर्टिंग की बहस को हवा दी थी। उनका तर्क था कि इससे कंपनियों का खर्च घटेगा और प्रबंधन को व्यापार संचालन पर ध्यान केंद्रित करने का समय मिलेगा।
हालांकि, भारतीय नियामक सूत्रों का कहना है कि घरेलू बाजारों के लिए फिलहाल ऐसा कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।
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एक रियल एस्टेट कंपनी के सीईओ ने कहा, “लागत और दबाव गौण हैं। कई बार एक तिमाही में साझा करने लायक कोई बड़ा इवेंट नहीं होता। छमाही रिपोर्ट एक सार्थक चर्चा का बेहतर साधन होगी।”
वित्तीय सेवा क्षेत्र की एक कंपनी के सीईओ ने कहा, “इससे योजनाओं के निष्पादन पर फोकस करने और बिजनेस पहल के असर को दिखाने में मदद मिलेगी।”
हालांकि, एक स्टील सेक्टर सीईओ का मानना है कि मौजूदा प्रणाली बेहतर गवर्नेंस कंट्रोल देती है और छमाही रिपोर्टिंग से निगरानी कमजोर हो सकती है।
अधिकांश मनी मैनेजर्स ने कहा कि तिमाही रिपोर्टिंग हटाने से पारदर्शिता घटेगी और अस्थिरता बढ़ सकती है।
एक म्यूचुअल फंड हाउस के मुख्य निवेश अधिकारी ने कहा, “स्टडीज बताती हैं कि बाजार उन कंपनियों को पसंद करता है जो लगातार और पारदर्शी खुलासे करती हैं। तिमाही रिपोर्टिंग हटाने से मैनेजमेंट इंटरैक्शन और अर्निंग कॉल्स घटेंगी, जिससे सूचना असमानता बढ़ सकती है। नतीजतन अनिश्चितता, स्टॉक वोलैटिलिटी और निवेशक विश्वास में कमी आ सकती है।”