म्युचुअल फंड (एमएफ) उद्योग में प्रतिस्पर्धा गहरा रही है और यह होड़ अब योजना के प्रदर्शन, लागत ढांचे और वितरण से आगे बढ़ रही है। हाल के महीनों में कई फंडों ने निवेश निकासी पर लागू एग्जिट लोड को तर्कसंगत बनाया है।
अगस्त में टाटा एमएफ ने अपनी इक्विटी और हाइब्रिड योजनाओं में 0.5 फीसदी का एक जैसा निकासी शुल्क लागू किया जो निवेश को 30 दिन के भीतर निकालने पर भी लागू होता है। यह पहले की तुलना में काफी कम है, जब अधिकांश ऐक्टिव योजनाओं में एक वर्ष के भीतर निकासी करने पर 1 फीसदी का शुल्क लगता था।
एसबीआई म्युचुअल फंड ने सितंबर में एग्जिट लोड में इसी तरह की कटौती की है। पहले इसकी ज्यादातर इक्विटी योजनाओं के लिए एक साल के अंदर निकासी पर एग्जिट लोड 1 फीसदी था जो अब 30 दिनों के अंदर निकासी पर 0.25 फीसदी और 90 दिनों के अंदर निकासी पर सिर्फ 0.1 फीसदी रह गया है। 90 दिनों के बाद निकासी पर कोई एग्जिट लोड नहीं है।
एसबीआई फंड के उप प्रबंध निदेशक (एमडी) और संयुक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) डी पी सिंह के अनुसार यह बदलाव निवेशकों के हित और प्रतिस्पर्धा को ध्यान में रखकर किया गया है। उन्होंने कहा, यह कुछ हद तक प्रतिस्पर्धा के कारण है। अगर हमारी योजनाओं का एग्जिट लोड प्रतिस्पर्धियों की तुलना में ज़्यादा है तो स्वाभाविक रूप से हमें नुकसान होगा। इसके अलावा, कम एग्जिट लोड से फंड ऑफ फंड्स के लिए अपने आवंटन में बदलाव करना भी आसान हो जाता है।
किसी म्युचुअल फंड की योजना से एक निश्चित अवधि से पहले बाहर निकलने या आंशिक रूप से निकासी करने पर निवेशकों द्वारा चुकाए जाने वाले शुल्क को एग्जिट लोड होते हैं। ये निकासी की पूरी राशि पर लागू होते हैं और योजना चुनते समय निवेशक इस लोड का ध्यान रखते हैं, खासकर वे जो अल्पकालिक निवेश चाहते हैं या सिस्टमैटिक ट्रांसफर प्लान की योजना बना रहे हैं।
इक्विटी योजनाओं के लिए एग्जिट लोड प्राथमिक कारक नहीं है क्योंकि ये आम तौर पर मध्यम अवधि के निवेश होते हैं, जहां एग्जिट लोड की अवधि निवेशकों के निकासी योजना बनाने से काफी पहले ही समाप्त हो जाती है। लेकिन अल्पकालिक निवेशों के लिए (विशेष रूप से तीन से 12 महीने की अवधि में) एग्जिट लोड अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं क्योंकि अधिकांश फंड हाउस पहले साल के भीतर निकासी करने पर 0.25 फीसदी से 1 फीसदी के बीच शुल्क लेते हैं। आनंद राठी वेल्थ के संयुक्त सीईओ फिरोज अजीज ने कहा, यह शुल्क अल्पावधि के निवेशकों के रिटर्न को प्रभावित कर सकता है और इसको जेहन में रखना चाहिए।
टाटा और एसबीआई एमएफ के अलावा कई अन्य फंडों ने भी एग्जिट लोड घटा या हटा दिए हैं। उद्योग का नया खिलाड़ी जियो ब्लैकरॉक एमएफ अपनी सभी योजनाओं पर कोई एग्जिट लोड नहीं लेता है। जियो ब्लैकरॉक ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी के एमडी और सीईओ सिड स्वामीनाथन ने कहा, हमारा लक्ष्य निवेश को आसान और अधिक सुलभ बनाना है। इसलिए हम यथासंभव बाधाओं को कम से कम करने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि यह हमेशा संभव नहीं भी हो सकता है। यह फंड के निवेश और उसकी रणनीति पर निर्भर करेगा।
अजीज के अनुसार एग्जिट लोड में गिरावट का रुझान ज्यादा निवेशकों के लिए म्युचुअल फंड की खरीद को आसान बना सकता है। उन्होंने कहा, यह दृष्टिकोण सिर्फ एक प्रतिस्पर्धी रणनीति से कहीं ज्यादा वित्तीय समावेशन की दिशा में व्यापक प्रयास दर्शाता है। निवेश निकासी यानी रीडम्पशन की बाधाओं को दूर करके जियो ने अपने म्युचुअल फंड को अन्य डिजिटल वित्तीय योजनाओं की तरह लचीला बनाया है। जिन अन्य फंड हाउसों ने एग्जिट लोड में बदलाव की घोषणा की है, उनमें कोटक एमएफ और यूटीआई एमएफ शामिल हैं। उन्होंने अपने बैलेंस्ड एडवांटेज फंडों के लिए एग्जिट लोड की अवधि एक साल से घटाकर क्रमशः 180 दिन और 90 दिन कर दी है। डीएसपी एमएफ, निप्पॉन इंडिया एमएफ और सैमको एमएफ ने भी हाल के महीनों में चुनिंदा योजनाओं के लिए एग्जिट लोड में कमी की है।