Mutual Funds Dividend: बाजार के जो खिमों के बावजूद म्युचुअल फंड्स में निवेश का क्रेज बना हुआ है। इसका अंदाजा म्युचुअल फंड्स में इनफ्लो से लगा सकते हैं। एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) के आंकड़ों के मुताबिक, इक्विटी स्कीम्स की बीते अप्रैल में लगातार 50वें महीने इनफ्लो रहा। वहीं, सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) के जरिए रिकॉर्ड 26,632 करोड़ रुपये का निवेश आया। यानी, बाजार में उतार-चढ़ाव के बावजूद लंबी अव धि में वेल्थ बनाने के लिए म्युचुअल फंड्स निवेशकों के बीच एक सबसे पसंदीदा विकल्प है। म्युचुअल फंड्स में अच्छे रिटर्न के अलावा रेगुलर इंटरवल पर डिविडेंड से भी इनकम का ऑप्शन होता है। इस ‘डिविडेंड ऑप्शन’ को अब इनकम डिस्ट्रीब्यूशन कम कैपिटल विदड्रॉल (IDCW) कहते हैं। हालांकि, डिविडेंड ऑप्शन से होने वाली कमाई पर निवेशकों को टैक्स भी देना होता है।
दरअसल, म्युचुअल फंड में डिविडेंड उस इनकम का हिस्सा होता है जो फंड हाउस अपने निवेशकों को बांटते हैं। यह डिविडेंड आमतौर पर उस इनकम से आता है जो म्युचुअल फंड ने शेयरों से मिलने वाले डिविडेंड, बॉन्ड से ब्याज या कैपिटल गेन के रूप में कमाई की होती है।
मार्केट रेगुलेटर SEBI ने जनवरी 2021 से म्युचुअल फंड योजनाओं की डिविडेंड सिस्टम में बदलाव किया। अप्रैल 2021 से सेबी ने’डिविडेंड’ का नाम बदलकर ‘डिस्ट्रीब्यूशन’ (IDCW) कर दिया। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह डिविडेंड कंपनी के मुनाफे का हिस्सा नहीं है बल्कि निवेशकों के ही पैसों से दी गई राशि है।
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डिविडेंड देने वाले फंड्स मुख्य रूप से उन शेयरों और बॉन्ड्स में निवेश करते हैं जो समय-समय पर लाभांश या ब्याज देते हैं। ये फंड साल में एक या चार बार अपने मुनाफे का हिस्सा निवेशकों में बांटते हैं। आपको यह पैसा नकद मिल सकता है या आप चाहें तो इसे फिर से उसी फंड में लगा सकते हैं और नए यूनिट खरीद सकते हैं। अगर आप पैसा वापस फंड में लगाते हैं तो आपकी निवेश राशि बढ़ती है और आपको ज्यादा फायदा हो सकता है।
एडलवाइस म्युचुअल फंड के प्रेसिडेंट और सेल्स हेड दीपक जैन कहते हैं, अब म्युचुअल फंड में डिविडेंड ऑप्शन को IDCW कहा जाता है, मतलब इनकम डिस्ट्रीब्यूशन कम कैपिटल विदड्रॉल ऑप्शन। इसका सीधा मतलब है कि इसमें निवेशक को समय-समय पर कुछ पैसा मिल सकता है, लेकिन यह तभी होता है जब फंड हाउस इसके लिए ऐलान करता है।
उन्होंने बताया कि ये पैसा उस फंड की कमाई और मुनाफे से दिया जाता है, जो स्कीम ने अपनी इन्वेस्टमेंट से कमाया होता है। लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि ये जो पैसा मिलता है, उस पर टैक्स देना होता है। ये पैसा सीधे आपके टैक्स स्लैब में जुड़ जाता है, यानी जितना टैक्स आप आम तौर पर देते हैं, उतना ही इस पर भी देना होगा।
HSBC म्युचुअल फंड के CIO (इक्विटी) वेणुगोपाल मंगत बताते हैं, कुछ फिक्स्ड इनकम स्कीम्स में IDCW समय-समय पर दिया जा सकता है, जैसेकि डेली, वीकली, मंथली, क्वार्टरली, या सालाना। लेकिन इक्विटी वाले फंड्स में यह आमतौर पर तभी दिया जाता है जब फंड के पास अच्छा मुनाफा हो। और यह जरूरी नहीं है कि हर बार पेआउट मिले, क्योंकि यह ट्रस्टीज की मंजूरी और स्कीम की स्थिति पर निर्भर करता है।
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जब फंड डिविडेंड देता है, तो फंड की कुल संपत्ति कम हो जाती है, इसलिए फंड की कीमत यानी NAV भी कम हो जाती है। जैसे अगर NAV ₹20 था और ₹1 डिविडेंड दिया तो NAV ₹19 हो जाएगा। यह आम बात है और इसका मतलब फंड कमजोर हो गया है, ऐसा नहीं है। अगर फंड की कंपनियां अच्छी तरह से काम करें तो NAV फिर बढ़ सकता है।
वेणुगोपाल मंगत बताते हैं कि इस ऑप्शन के तहत फंड हाउस, स्कीम की कमाई और बचत में से कुछ हिस्सा निवेशकों को बांट सकता है, लेकिन यह फिक्स नहीं होता। यह पूरी तरह फंड की परफॉर्मेंस और मार्केट हालात पर निर्भर करता है। जब ऐसा कोई पेआउट होता है तो स्कीम की NAV यानी नेट एसेट वैल्यू उतनी ही घट जाती है।
जब आप म्युचुअल फंड चुनते हैं तो सिर्फ उन फंड्स पर ध्यान न दें जो सबसे ज्यादा डिविडेंड देते हैं। डिविडेंड यील्ड का मतलब होता है कि फंड अपने कुल वैल्यू का कितना फीसदी डिविडेंड के रूप में देता है। हालांकि, ज्यादा यील्ड का मतलब है कि आपको ज्यादा पैसा मिलेगा, लेकिन इससे जोखिम भी बढ़ सकता है। इसलिए बेहतर है कि आप ऐसे फंड्स चुनें जो लगातार और भरोसेमंद तरीके से डिविडेंड देते हों।
इसके लिए फंड का पुराना रिकॉर्ड देखना जरूरी है ताकि आपको पता चल सके कि उसने समय पर डिविडेंड दिया या नहीं। अगर आपकी प्राथमिकता नियमित आय पाना है तो आप ऐसे फंड चुनें जो डिविडेंड देते हैं। वहीं, अगर आपका मकसद अपने निवेश को बढ़ाना है तो ऐसे फंड चुनना बेहतर होगा जो डिविडेंड को आपके लिए फिर से निवेशित कर देते हैं।
दीपक जैन ने साफ कहा कि म्युचुअल फंड का IDCW असल में कंपनी के डिविडेंड जैसा नहीं होता। ये कोई एक्स्ट्रा कमाई नहीं है, बल्कि आपके अपने ही इन्वेस्टमेंट का हिस्सा होता है जो आपको वापस दिया जाता है। इसलिए ये ऑप्शन उन लोगों के लिए ज्यादा फायदेमंद होता है, जिनकी टैक्स इनकम कम है या जो टैक्स नहीं भरते और जो अपनी इन्वेस्टमेंट से बीच-बीच में थोड़ा-थोड़ा पैसा चाहते हैं।
वेणुगोपाल मंगत बताते हैं कि म्युचुअल फंड से मिलने वाला IDCW अब निवेशक की आमदनी में जुड़ जाता है और उस पर उसी टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स देना होता है, जिसमें निवेशक आता है। 1 अप्रैल 2025 से नियम बदले हैं। अब अगर किसी निवेशक को सभी स्कीम्स से मिलाकर एक फाइनेंशियल ईयर में 10,000 रुपये से ज्यादा का IDCW मिलता है, तो फंड हाउस उस पर पहले ही 10% TDS यानी टैक्स काटकर देगा। पहले यह लिमिट 5,000 रुपये थी। यह नियम भारतीय निवेशकों पर लागू होता है।
मंगत साफ कहते हैं कि निवेशकों को IDCW लेने से पहले टैक्स का असर भी ध्यान में रखना चाहिए। जो पैसा IDCW के रूप में मिलता है, वह टेक्निकली ‘डिविडेंड’ की टैक्स परिभाषा में नहीं आता, इसलिए भारत और किसी दूसरे देश के बीच टैक्स ट्रीटी का फायदा इस पर नहीं लिया जा सकता।
(डिस्क्लेमर: म्युचुअल फंड्स में निवेश बाजार के जो खिमों के अधीन है। यहां निवेश की सलाह नहीं है। निवेश संबंधी फैसला करने से पहले अपने एडवाइजर से परामर्श कर लें।)