भारत का विंड एनर्जी सेक्टर अब तेज ग्रोथ के महत्वपूर्ण चरण में एंट्री कर रहा है। इस ग्रोथ को सरकार की स्थानीयकरण नीति, मैन्युफेक्चरिंग क्षमताओं में सुधार और तेज होती इंस्टॉलेशन गति का समर्थन मिल रहा है। वर्तमान में देश में 51.6 गीगावॉट क्षमता स्थापित है। जबकि 2030 तक का लक्ष्य 100 गीगावॉट है। इसका मतलब है कि अगले पांच वर्षों में लगभग 48.4 गीगावॉट और जोड़ना होगा। इसमें 25.5 गीगावॉट की निर्माणाधीन परियोजनाएं और आने वाली नई नीलामियां मदद करेंगी।
हाल ही में विंड टर्बाइन जनरेटर (WTG) के निर्माण में स्थानीय सामग्री को अनिवार्य किया गया है। यह नीति में बड़ा बदलाव माना जा रहा है। ब्लेड, टावर और गियरबॉक्स के लिए देश में मजबूत विनिर्माण क्षमताएं हैं। हालांकि, जेनरेटर और बेयरिंग के लिए कच्चे माल पर निर्भरता के कारण चुनौतियां बनी हुई हैं।
एनालिस्ट्स का मानना है कि यह कदम छोटे और आयात-निर्भर खिलाड़ियों को हतोत्साहित करेगा। इससे मौजूदा बड़ी कंपनियों को स्केल बढ़ाने का मौका मिलेगा और बाजार में हिस्सेदारी बढ़ेगी। इसके साथ ही, कीमतों पर दबाव भी धीरे-धीरे कम हो सकता है।
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भारत की विंड एनर्जी ग्रोथ वृद्धि के मुख्य कारणों में एक बड़ा लेकिन कम उपयोग हो रहा मैन्युफेक्चरिंग आधार शामिल है। लगभग 18 गीगावॉट की वार्षिक WTG क्षमता में से फिलहाल केवल 20–25% का ही उपयोग हो रहा है। साथ ही, देश में मज़बूत इंजीनियरिंग विशेषज्ञता भी एक बड़ा सहारा है। निर्माण और सेवाओं का लगभग 90-95% पहले ही देश में ही हो रहा है और यह वैश्विक आईएसओ (ISO) मानकों के अनुरूप है।
हालांकि, चुनौतियां अभी भी मौजूद हैं। बॉलसा वुड, रेयर अर्थ और एडवांस कंट्रोलर जैसे कंपोनेंट के लिए चीन पर भारी निर्भरता बनी हुई है। जबकि लैटिन अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों से वैकल्पिक आपूर्ति सीमित है। वहां खनन और एक्सट्रेक्शन क्षमता कम है। स्किल कर्मचारियों की कमी और गहराई वाले तकनीकी रिसर्च की सीमाएं भी उत्पादकता बढ़ाने में बाधा बन रही हैं। इसके अलावा, ट्रांसमिशन से जुड़ी समस्याएं भी एक संरचनात्मक जोखिम हैं।
मोतीलाल ओसवाल ने सुजलॉन एनर्जी पर ‘BUY’ रेटिंग दी है। ब्रोकरेज ने स्टॉक पर 82 रुपये का टारगेट प्राइस दिया है। यह शेयर के मौजूदा भाव 63 रुपये से 30 फीसदी ज्यादा है।
मोतीलाल ओसवाल के अनुसार, सुजलॉन का आउटलुक मजबूत बना हुआ है। कंपनी को वित्त वर्ष 2025-26 में लगभग 4 गीगावॉट ऑर्डर मिलने की उम्मीद है। इसमें 1.5 गीगावॉट NTPC से शामिल है। इससे वित्त वर्ष 2025-26 के अंत तक संभावित ऑर्डर बुक 6.5 गीगावॉट तक पहुंच सकती है। मीडियम टर्म में EPC (इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट और कंस्ट्रक्शन) का हिस्सा 20% से बढ़कर 50% होने की संभावना है। इससे प्रोजेक्ट एक्सीक्यूशन में पारदर्शिता और स्थिरता आएगी।
ब्रोकरेज का कहना है कि नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की स्थानीय सामग्री की अनिवार्यता सुजलॉन की प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति को मजबूत करेगी। इसकी वजह है कंपनी का कंसोलिडेट मैन्युफेक्चरिंग आधार, जो घरेलू स्रोतों से प्रमुख टरबाइन कंपोनेंट की सप्लाई को संभव बनाता है।
(डिस्क्लेमर: यहां शेयर में निवेश की सलाह ब्रोकरेज ने दी है। बाजार में निवेश जोमिखों के अधीन है। निवेश संबंधी फैसला करने से पहले अपने एडवाइजर से परामर्श कर लें।)